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नेपाली उच्चतम न्यायालय संसद भंग करने के मामले में सोमवार को सुना सकता है फैसला - dissolution of Parliament

संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा को भंग करने के मामले में नेपाल का उच्चतम न्यायालय सोमवार (कल, 12 जुलाई) को फैसला सुना सकता है.

नेपाली उच्चतम न्यायालय
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Published : Jul 11, 2021, 8:32 PM IST

काठमांडू : नेपाल का उच्चतम न्यायालय राष्ट्रपति विद्या भंडारी द्वारा संसद को भंग किए जाने के खिलाफ दायर विभिन्न याचिकाओं पर सोमवार को अपना फैसला सुना सकता है. उम्मीद की जा रही है कि न्यायालय के इस फैसले से देश में महीनों से चल रहा राजनीतिक गतिरोध समाप्त हो जाएगा.

प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली की सिफारिश पर राष्ट्रपति भंडारी ने पांच महीने में दूसरी बार 22 मई को संसद के निचले सदन को भंग कर दिया था और 12 नवंबर तथा 19 नवंबर को मध्यावधि चुनाव कराने की घोषणा की थी.

उनके इस कदम के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में 30 याचिकाएं दायर की गई हैं. 275 सदस्यीय सदन में विश्वास मत हारने के बाद प्रधानमंत्री ओली अभी अल्पमत सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं.

विपक्षी दलों के गठबंधन द्वारा भी एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें संसद के निचले सदन की बहाली और नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा को प्रधानमंत्री नियुक्त करने का अनुरोध किया गया है. इस याचिका पर 146 सांसदों के हस्ताक्षर हैं.

पढ़ें :- नेपाल उच्चतम न्यायालय ने संसद भंग करने के मामले में सुनवाई पूरी की

न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने पांच जुलाई को विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई पूरी कर ली थी. इस संबंध में चार सदस्यीय न्याय मित्र ने भी अपनी राय दी है.

याचिकाकर्ताओं में से एक वरिष्ठ वकील दिनेश त्रिपाठी ने कहा कि न्यायालय सोमवार को अपना फैसला सुना सकता है. त्रिपाठी ने कहा कि न्यायालय अपना फैसला देते समय संविधान के प्रावधानों और अतीत के उदाहरणों को ध्यान में रखेगा और यह ऐतिहासिक फैसला होगा.

चुनाव आयोग ने पिछले हफ्ते आगामी मध्यावधि चुनाव के कार्यक्रम की घोषणा की थी, जिसके तहत चुनाव प्रक्रिया 15 जुलाई से शुरू हो रही है.

(पीटीआई-भाषा)

काठमांडू : नेपाल का उच्चतम न्यायालय राष्ट्रपति विद्या भंडारी द्वारा संसद को भंग किए जाने के खिलाफ दायर विभिन्न याचिकाओं पर सोमवार को अपना फैसला सुना सकता है. उम्मीद की जा रही है कि न्यायालय के इस फैसले से देश में महीनों से चल रहा राजनीतिक गतिरोध समाप्त हो जाएगा.

प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली की सिफारिश पर राष्ट्रपति भंडारी ने पांच महीने में दूसरी बार 22 मई को संसद के निचले सदन को भंग कर दिया था और 12 नवंबर तथा 19 नवंबर को मध्यावधि चुनाव कराने की घोषणा की थी.

उनके इस कदम के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में 30 याचिकाएं दायर की गई हैं. 275 सदस्यीय सदन में विश्वास मत हारने के बाद प्रधानमंत्री ओली अभी अल्पमत सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं.

विपक्षी दलों के गठबंधन द्वारा भी एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें संसद के निचले सदन की बहाली और नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा को प्रधानमंत्री नियुक्त करने का अनुरोध किया गया है. इस याचिका पर 146 सांसदों के हस्ताक्षर हैं.

पढ़ें :- नेपाल उच्चतम न्यायालय ने संसद भंग करने के मामले में सुनवाई पूरी की

न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने पांच जुलाई को विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई पूरी कर ली थी. इस संबंध में चार सदस्यीय न्याय मित्र ने भी अपनी राय दी है.

याचिकाकर्ताओं में से एक वरिष्ठ वकील दिनेश त्रिपाठी ने कहा कि न्यायालय सोमवार को अपना फैसला सुना सकता है. त्रिपाठी ने कहा कि न्यायालय अपना फैसला देते समय संविधान के प्रावधानों और अतीत के उदाहरणों को ध्यान में रखेगा और यह ऐतिहासिक फैसला होगा.

चुनाव आयोग ने पिछले हफ्ते आगामी मध्यावधि चुनाव के कार्यक्रम की घोषणा की थी, जिसके तहत चुनाव प्रक्रिया 15 जुलाई से शुरू हो रही है.

(पीटीआई-भाषा)

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