टोक्यो : जापान ने शुक्रवार को चीन, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संघ के बीच क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership ) मुक्त व्यापार समझौते (ree trade agreement) की पुष्टि की.
इसके साथ ही टोक्यो समझौते की पुष्टि करने वाला तीसरा सदस्य बन गया. इस समझौते परपिछले साल नवंबर में 15 देशों ने हस्ताक्षर किए थे. हस्ताक्षरकर्ताओं में, सिंगापुर और चीन ने समझौते की प्रक्रियाओं को पूरा कर लिया है.
क्योडो न्यूज ने बताया कि इसने आसियान सचिवालय (ASEAN Secretariat) के पास अपना अनुसमर्थन साधन (ratification instrument ) जमा कर दिया है.जापान की कैबिनेट ने शुक्रवार को समझौते को मंजूरी दी, जिससे टोक्यो में रेटिफिकेशन के लिए आवश्यक घरेलू प्रक्रियाओं को पूरा किया गया.
बता दें कि यह जापान का पहला व्यापार सौदा (first trade deal ) होगा, जिसमें चीन और दक्षिण कोरिया दोनों शामिल होंगे.
जापान का आर्थिक विकास बढ़ेगा
जापान के अर्थव्यवस्था, व्यापार और उद्योग मंत्री (force, Economy, Trade and Industry Minister ) हिरोशी काजियामा (Hiroshi Kajiyama) ने एक प्रेस में कहा सम्मेलन कहा, 'यह सौदा जापान और (एशिया-प्रशांत) क्षेत्र के बीच की कड़ी को मजबूत करेगा, जो दुनिया का विकास केंद्र (world's growth center) है और यह लागू होने पर जापान के आर्थिक विकास ( Japan's economic growth) में योगदान देगा.'
जापानी सरकार (Japanese government ) ने इस साल की शुरुआत में अनुमान लगाया था कि व्यापार संधि (trade treaty ) दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के सकल घरेलू उत्पाद (gross domestic product) को लगभग 2.7 प्रतिशत तक बढ़ा सकती है.
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सबसे बड़ा क्षेत्रीय व्यापार समझौता
इस समझौते पर पिछले नवंबर में 15 देशों ने हस्ताक्षर किए. यह कम से कम छह आसियान सदस्यों और तीन अन्य हस्ताक्षरकर्ता देशों की पुष्टि के 60 दिनों के बाद प्रभावी होगा.क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी 10 आसियान राज्यों - ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, न्यूजीलैंड और दक्षिण कोरिया को समूहित करता है. इसे आज तक का सबसे बड़ा क्षेत्रीय व्यापार समझौता बताया जा रहा है.
भारत का शामिल होने से इनकार
क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी पर मूल रूप से भारत सहित 16 देशों के बीच बातचीत चल रही थी.पिछले साल नवंबर में भारत ने क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते में शामिल नहीं होने का फैसला किया, क्योंकि इसकी प्रमुख चिंताओं का समाधान नहीं किया गया था.
दुनिया के सबसे बड़े व्यापार समझौते से बाहर रहने के नई दिल्ली के फैसले के पीछे प्रमुख कारणों में आयात वृद्धि के खिलाफ अपर्याप्त सुरक्षा, चीन के साथ अपर्याप्त अंतर, शुल्क बाधाएं, मूल के नियमों की संभावित धोखाधड़ी, आधार वर्ष को 2014 के रूप में रखना और बाजार पहुंच और गैर पर कोई विश्वसनीय आश्वासन शामिल नहीं है.