ताइपे : चीन के सरकारी टेलीविजन में इंटर्नशिप का अनुभव झोउ जियाओजुआन के लिए काफी कड़वा रहा. टीवी में काम करने के दौरान एक होस्ट ने उनका उत्पीड़न किया और आवाज उठाने पर उन्हें अपनी शिकायत वापस लेने के लिए उन पर दबाव बनाया गया.
झोउ ने 2018 में एक मामला दर्ज कराया और यौन उत्पीड़न के खिलाफ वैश्विक 'मी टू' मुहिम में शामिल हो गईं. सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ने शिकायत वापस लेने के लिए कई बार उन पर दबाव बनाया. झोउ सुनवाई के लिए दो साल तक इंतजार करती रहीं जबकि कार्यक्रम के होस्ट ने भी मानहानि का एक मामला दर्ज करवा दिया.
अब झोउ के मामले पर बुधवार को बीजिंग की एक अदालत में सुनवाई होगी. यह घटना दिखाती है कि चीनी महिलाएं तमाम दबाव के बावजूद यौन उत्पीड़न के बारे में खुलकर आवाज उठा रही हैं.
झोउ ने कहा, 'यौन उत्पीड़न के कम ही मामले अदालतों तक पहुंच पाते हैं. हमें उम्मीद है कि हर मामला हमें आगे बढ़ाने वाला होगा.'
वैश्विक स्तर पर 'मी टू' मुहिम के जोर पकड़ने के बाद चीन में भी महिलाओं को उत्पीड़न के खिलाफ बोलने का साहस मिला. हालांकि, यह मुहिम ऐसे वक्त शुरू हुई थी जब राष्ट्रपति शी चिनफिंग की सरकार असहमति के स्वर को दबाने के लिए अपना अभियान तेज कर रही थी.
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झोउ ने आरोप लगाया था कि सरकारी चैनल सीसीटीवी के होस्ट झू जून ने 2014 में जबरन उन्हें पकड़ लिया और चुंबन लिया . झोउ ने झू से सार्वजनिक तौर पर माफी मांगने और 50,000 युआन का मुआवजा देने को कहा है. झोउ ने सोशल मीडिया पर पोस्ट में कहा था कि यह घटना उस वक्त हुई थी जब वह ड्रेसिंग रूम में थी.