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यूएनएचआरसी के 2015 के प्रस्ताव को मौजूदा स्वरूप में नहीं अपना सकते : श्रीलंका

राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने कहा कि वह 2015 के यूएनएचआरसी के प्रस्ताव का मौजूदा स्वरूप नहीं अपना सकते हैं. जानें, राष्ट्रपति ने क्यों कही ये बात.

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राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे
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Published : Dec 20, 2019, 6:48 PM IST

कोलंबो : श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने कहा कि सरकार के लिए अपने ही देश के खिलाफ कार्रवाई करना संभव नहीं है. इसलिए वह 2015 के संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) के प्रस्ताव का उसके मौजूदा रूप में अनुपालन नहीं कर सकते.

यह प्रस्ताव देश में तीन दशक के दौरान चले गृहयुद्ध के समय हुए कथित युद्ध अपराधों को लेकर बनाया गया था. पूर्ववर्ती सिरिसेना सरकार इस प्रस्ताव की सहप्रायोजक थी.

राजनीतिक स्वायत्तता की तमिलों की मांग पर टिप्पणी करते हुए राजपक्षे ने गुरुवार को कहा कि बहुमत की सहमति के बिना सत्ता का हस्तांतरण नहीं हो सकता.
उन्होंने कहा, 'किसी भी तरह के सत्ता साझेदारी के राजनीतिक समाधान को लागू करना संभव नहीं है.'

सिरिसेना सरकार द्वारा सह प्रस्तावित यूएनएचआरसी प्रस्ताव के बारे में टिप्पणी मांगे जाने पर श्रीलंका के नए राष्ट्रपति ने कहा कि इसे मौजूदा स्वरूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता.

उन्होंने कहा, 'सरकार के लिए अपने ही देश के खिलाफ कार्रवाई करना संभव नहीं है.'

पढ़ें : गोटाबाया राजपक्षे : तीन दशक लंबे गृह युद्ध को खत्म करने वाले विवादित युद्ध नायक

यूएनएचआरसी प्रस्ताव 2013 से ही कथित मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर श्रीलंका की आलोचना करता रहा है. वे लिट्टे और सरकारी सैनिकों दोनों द्वारा किए एक कथित मानवाधिकार उल्लंघनों की जांच की मांग करते हैं और इसके लिये अंतरराष्ट्रीय जांच बैठाने की मांग की जाती रही है.

कोलंबो : श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने कहा कि सरकार के लिए अपने ही देश के खिलाफ कार्रवाई करना संभव नहीं है. इसलिए वह 2015 के संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) के प्रस्ताव का उसके मौजूदा रूप में अनुपालन नहीं कर सकते.

यह प्रस्ताव देश में तीन दशक के दौरान चले गृहयुद्ध के समय हुए कथित युद्ध अपराधों को लेकर बनाया गया था. पूर्ववर्ती सिरिसेना सरकार इस प्रस्ताव की सहप्रायोजक थी.

राजनीतिक स्वायत्तता की तमिलों की मांग पर टिप्पणी करते हुए राजपक्षे ने गुरुवार को कहा कि बहुमत की सहमति के बिना सत्ता का हस्तांतरण नहीं हो सकता.
उन्होंने कहा, 'किसी भी तरह के सत्ता साझेदारी के राजनीतिक समाधान को लागू करना संभव नहीं है.'

सिरिसेना सरकार द्वारा सह प्रस्तावित यूएनएचआरसी प्रस्ताव के बारे में टिप्पणी मांगे जाने पर श्रीलंका के नए राष्ट्रपति ने कहा कि इसे मौजूदा स्वरूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता.

उन्होंने कहा, 'सरकार के लिए अपने ही देश के खिलाफ कार्रवाई करना संभव नहीं है.'

पढ़ें : गोटाबाया राजपक्षे : तीन दशक लंबे गृह युद्ध को खत्म करने वाले विवादित युद्ध नायक

यूएनएचआरसी प्रस्ताव 2013 से ही कथित मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर श्रीलंका की आलोचना करता रहा है. वे लिट्टे और सरकारी सैनिकों दोनों द्वारा किए एक कथित मानवाधिकार उल्लंघनों की जांच की मांग करते हैं और इसके लिये अंतरराष्ट्रीय जांच बैठाने की मांग की जाती रही है.

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LANKA-UNHRC-WARCRIMES
Cannot entertain 2015 UNHRC resolution on war crime in its current form: Lanka Prez
         Colombo, Dec 19 (PTI) Sri Lankan President Gotabaya Rajapaksa on Thursday said that he cannot entertain the 2015 UN Human Rights Council resolution co-sponsored by the previous Sirisena government on alleged war crimes during the country's three-decade long civil war with the LTTE in its current form.
          Commenting on the Tamil demand for political autonomy, Rajapaksa stressed that no devolution of power would be possible without the consent of the majority.
         "It is not possible to implement any form of power sharing political solution," he said.
         Asked to comment on the UN Human Rights Council resolution co-sponsored by the Sirisena government, the new Sri Lankan president said it cannot be entertained in its current form.
         "It is not possible for the government to act against its own country," he said.
         The UNHRC resolutions since 2013 had censured Sri Lanka on its alleged human rights abuses. They called for probing of rights abuses by both LTTE and the government troops by setting up an international investigation.
         Sri Lankan government troops were accused of killing at least 40,000 ethnic Tamil civilians in the final months of the island's 37-year guerrilla war that ended in May 2009 with the death of LTTE supremo Velupillai Prabhakaran.
         The previous government led by Maithripla Sirisena had co-sponsored a resolution in 2015 to address war crimes.
          Rajapaksa also said Sri Lanka was not looking to change commercial terms in an agreement with China over a port in Hambantota, but will review its security aspects.          "Hambantota Port will not be renegotiated as it is a commercial contract. However, it is important that the security aspects pertaining to the agreement analysed," he said.
         The Sirisena government in 2017 entered a 99 year lease on the Hambantota port.          Rajapaksa said it was important that Sri Lanka had the control of all security aspects of the port.
         "This concern has been understood by the Chinese," he said. PTI Corr AKJ




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