नई दिल्ली : लगभग दो दशक से जहां भारत और अमेरिका के रिश्ते मजबूती की ओर हैं, वहीं वाशिंगटन ने शी जिंगपिंग के कमान संभालने के बाद दुनिया की नंबर एक शक्ति बनकर बीजिंग के उभार की कोशिशों पर कड़ा रुख अख्तियार कर रखा है. जनमत सर्वेक्षण बताते हैं कि अमेरिका में यदि अभी चुनाव होता है, तो बाइडेन बड़े विजेता बनकर उभरेंगे. फाइनेंसियल टाइम्स ने सर्वेक्षणों पर नजर रखने वाले ‘रियल क्लियर पॉलिटिक्स’ के ताजा आंकड़ों के आधार पर कहा है कि 'जो बिडन' 538 में से 308 निर्वाचक मंडल के वोट, जबकि ट्रंप केवल 113 वोट का जुटा सकते हैं. जीतने वाले प्रत्याशी को 538 में से 270 मतों की जरूरत होगी.
इस बीच वाशिंगटन डीसी स्थित अमेरिकी विश्वविद्याल के इतिहास विभाग के जाने-माने प्रोफेसर एलन लिच्टमैन ने भी भविष्यवाणी की है कि बाइडेन इस साल के चुनाव में विजेता के रूप में उभरेंगे. लिच्टमैन ने यह भविष्यवाणी 13 ऐतिहासिक कारकों को ध्यान में रखकर अपने बनाए गए ‘कीज’ मॉडल के आधार पर की है. वह पिछले चार दशकों से अपने मॉडल से राष्ट्रपति चुनावों के परिणामों के बिल्कुल सटीक भविष्यवाणी के लिए जाने जाते हैं. उनके मॉडल की कार्य प्रणाली ओपिनियन पोल से अलग होती हैं.
यह भविष्यवाणी ऐसे समय में की गई है, जब कोविड-19 के संकट से निबटने को लेकर ट्रंप की भारी आलोचना हो रही है. उन्होंने चुनाव के लिए तीन नवंबर की जगह कोई अन्य तारीख रखने को कहा है. यह कुछ ऐसा है, जो अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के इतिहास में कभी नहीं हुआ. उन्होंने इसके कारण के रूप में कहा है कि महामारी के कारण पोस्टल वोटिंग (डाक के जरिए डाले गए मतों) की वजह से गलत परिणाम आएंगे.
हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि बाइडेन चुनाव जीत जाते हैं, तो संभवत: ह्वाइट हाउस में जाने के बाद वह भी भारत के साथ रिश्ते की बात हो या चीन के साथ व्यापार युद्ध को लेकर ट्रंप प्रशासन की नीतियों से पीछे नहीं हटेंगे. खासकर बीजिंग के दक्षिण चीन सागर में युद्ध की स्थिति और हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती दखलंदाजा के मुद्दे पर.
विदेश मंत्रालय के पूर्व सचिव रहे पिनाक रंजन चक्रवर्ती ने ईटीवी भारत से कहा- भारत-अमेरिका के संबंध सीमा तक पहुंच चुके हैं. भारत और अमेरिका वैश्विक रणनीतिक हिस्सेदारी साझा करते हैं और इसे दोनों देशों में परस्पर समर्थन मिलता है. यह लोकतांत्रिक मूल्यों की साझेदारी और परस्पर बढ़ते हितों के साथ क्षेत्रीय व वैश्विक मुद्दों पर आधारित है. अमेरिका ने भारत को एक प्रमुख रक्षा साझीदार भी बनाया है और नई दिल्ली को वाशिंगटन की बराबरी का सबसे करीबी और कूटनीतिक मित्र राष्ट्र के रूप में ले आया है.
यूएस इंडिया पॉलिटिकल एक्शन कमेटी के संस्थापक सदस्य रबिन्दर सचदेव के अनुसार, यदि बिडन सत्ता में आते हैं, तो दोनों देशों के रिश्ते उसी राह पर आगे बढ़ते रहेंगे, क्योंकि भारत–अमेरिका के संबंधों की चौड़ाई और गहराई कुछ ऐसी व्यापक स्थिति में पहुंच चुकी है कि उम्मीद है कि रिश्ते हमेशा ऊपर की ओर ही उठेंगे.
सचदेव ने कहा कि आप जानते हैं कि ऊपर की ओर जाने में प्रक्षेपणकोण बदल सकता है. किसी प्रशासन में यह बहुत तेजी से ऊपर जाए, किसी प्रशासन में उसी राह पर थोड़ा धीरे बढ़े, लेकिन उतनी तीव्रता और गति नहीं हो. उन्होंने कहा कि किसी को यह भी दिमाग में रखना चाहिए कि अमेरिकी संसद के उच्च और निचले सदन दोनों के चुनाव होने हैं. प्रतिनिधि सभा (हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव) पर डेमोक्रेट्स का जबकि उच्च सदन सीनेट पर रिपब्लिकन का कब्जा है. सचदेव ने कहा कि यदि सीनेट में भी डेमोक्रेट का बहुमत हो जाए और बाइडेन ह्वाइट हाउस पहुंच जाएं, तो मैं समझता हूं कि अमेरिका और भारत के संबंधों की राह कठिन हो जाएगी, क्योंकि कुछ मुद्दे हैं, जिन्हें लेकर बहुत सारे डेमोक्रेट्स भारत की आलोचना करते हैं. निचले सदन और सीनेट दोनों पर नियंत्रण मिल जाने से उन्हें परिस्थिति का बहुत अधिक फायदा मिल जाएगा.
यह याद रखें कि अमेरिकी प्रशासन में निश्चितरूप से राष्ट्रपति के पास सारे अधिकार हैं, लेकिन सदन और सीनेट दोनों मिलकर ताकतवर हो जाते हैं. आप जानते हैं कि वह कई कमियां निकाल सकते हैं और कई संशोधन व शर्तें लगा सकते हैं. वह विधेयक और संकल्प पत्र ला सकते हैं और किसी अन्य विधेयकों में कुछ संशोधन जोड़ सकते हैं. अमेरिका भारत के साथ एक साफ-सुथरा और पारस्परिक विस्तारित व्यापारिक रिश्ता चाहता है. वर्ष 2019 में अमेरिका-भारत का वस्तु एवं सेवा क्षेत्र का द्विपक्षीय व्यापार 149 अरब डॉलर तक पहुंच गया. अमेरिका का ऊर्जा निर्यात क्षेत्र इस व्यापारिक रिश्ते में विकास का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है.
जिसका यहां सबसे अधिक कयास लगाया जा रहा है, वह बाइडेन के ह्वाइट हाउस पहुंचने पर चीन के साथ अमेरिका के रिश्ते को लेकर है. चक्रवर्ती के अनुसार, हालांकि बाइडेन चीन पर अमेरिका के रुख से पीछे हटने में कामयाब नहीं होंगे, क्योंकि कोविड-19 महामारी चीन के शहर वुहान से ही शुरू हुआ है, जो एक बड़ा कारण है. इसके अलावा जब से ट्रंप ने चीनी उत्पादों पर सीमा शुल्क और अन्य पाबंदियां लगानी शुरू की हैं, तबसे अमेरिका और चीन के बीच आर्थिक टकराव भी जारी है. अमेरिका का मानना है कि चीन व्यापार के गलत तरीके अपना रहा है और इस उपाय से वह इसे बदलने के लिए बाध्य होगा. व्यापार के उन तरीकों का प्रभाव व्यापार घाटा बढ़ोतरी, बौद्धिक संपदा की चोरी और अमेरिकी तकनीक को जबरन चीन को हस्तांतरण के रूप में सामने आ रहा है. चक्रवर्ती ने कहा, इस समय चीन एक रणनीतिक चुनौती देने वाला बन गया है और बाइडेन यह नहीं चाह सकते कि वह इसे दूर नहीं कर सकते है.
पूर्व राजनयिक ने यह भी उल्लेख किया कि चीन ने महामारी की छाया में कुछ कार्रवाई की है, लेकिन व्यापक रूप से अमेरिकी नीति तय हो चुकी है. दूसरा कारण, जिससे अमेरिका और चीन के रिश्ते प्रभावित हो रहे हैं, वह बीजिंग का हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ता प्रभाव है. यह क्षेत्र जापान के पूर्वी तट से लेकर अफ्रीका के पूर्वी तट तक फैला हुआ है. भारत, अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया के साथ उस चतुष्कोण का हिस्सा है, जो प्रत्यक्ष रूप से इस क्षेत्र में शांति और समृद्धि के लिए काम कर रहा है और बीजिंग की मुश्किलें बढ़ा रहा है. इसके साथ चीन की दक्षिण चीन सागर में बढ़ती युद्ध की स्थिति भी है, जहां कई देशों के साथ चीन का सीमा विवाद चल रहा है और इसे लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चिंता व्याप्त है.
चक्रवर्ती के अनुसार, वर्ष 2017 में जारी यूएस नेशनल सिक्योरिटी स्ट्रेटजी में चीन को ‘संशोधनवादी ताकत’ कहा गया है. ट्रंप ने दक्षिण चीन सागर पर अमेरिका की नीति को बदल दिया और आज समुद्री कानून पर यूएन कंवेन्शन (यूएनसीएलओएस) का समर्थन करते हैं. चक्रवर्ती ने कहा कि भारत-अमेरिका-जापान-आस्ट्रेलिया का यह चतुष्कोण और आगे जाएगा और चीन इसका विरोध करेगा.
सचदेव के अनुसार, चीन पर ट्रंप प्रशासन की स्थिति और चीन की भौगोलिक राजनीति अधिक से अधिक गहन और आक्रामक होती जाएगी. नवंबर तक वैश्विक भू-राजनीति खुद बदल जाएगी. वह आगे कहते हैं कि इसका कारण है कि आप देखते हैं कि एक बार आप किसी रास्ते पर आगे की तरफ चले जाते हैं, तो कुछ ऐसा होगा जिसे बदला नहीं जा सकेगा. चाहें जो भी पद पर हो, चाहें जो भी राष्ट्रपति आए, चाहें वह ट्रंप हों या बाइडेन, व्यापक अर्थों में कहें तो वह चीन विरोधी नीति को जारी रखेंगे. उन्होंने कहा कि अमेरिका का मानना था कि चीन विश्व महाशक्ति 2050 या 2060 तक बनेगा. सचदेव ने कहा कि पहले अमेरिका ने इस एशियाई बड़े देश को सुपरपावर बनने में देर करने की कोशिश कर रहा था. अब ट्रंप के शासनकाल में क्या हुआ कि अमेरिका को यह लगने लगा कि हमें चीन को उभरने में सिर्फ देर नहीं करनी, बल्कि हमें किसी भी हाल में चीन को उभरने ही नहीं देना है, ताकि चीन कभी भी महाशक्ति के रूप में नंबर एक का स्थान नहीं ले पाए.
इसलिए यह एक बड़ी लड़ाई है, जिसकी शुरुआत ट्रंप ने चीन के साथ की है. अब यदि बाइडेन प्रशासन सत्ता में आता है, तो उम्मीद की जाती है कि वह भी कमोबेश इसी रास्ते पर बढ़ेगा, क्योंकि जब एक बार अमेरिका ने परख लिया कि यह सही है कि हम चीन के नंबर एक बनने के अवसर में केवल देर नहीं उससे वंचित भी कर सकते हैं. इसलिए हमें उसी रास्ते पर चलना जारी रखना चाहिए.
(अरुणिम भुयान)