काठमांडू : राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सिफारिश पर पांच महीने के भीतर दूसरी बार 22 मई को प्रतिनिधि सभा को भंग कर दिया था और 12 व 19 नवंबर को मध्यावधि चुनाव कराए जाने की घोषणा की थी. ओली सदन में बहुमत खोने के बाद अल्पमत की सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं.
प्रधान न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर राणा ने मामले की सुनवाई के लिए गत 28 मई को पीठ का गठन किया था लेकिन न्यायमूर्ति तेज बहादुर केसी और न्यायमूर्ति बाम कुमार श्रेष्ठ की मौजूदगी पर सवाल उठने के बाद सुनवाई स्थगित कर दी गई थी. न्यायमूर्ति राणा ने न्यायाधीशों को उनकी वरिष्ठता के आधार पर शामिल करते हुए रविवार को पीठ का पुनर्गठन किया था.
नई पीठ में न्यायमूर्ति दीपक कुमार कार्की, न्यायमूर्ति मीरा खाडका, न्यायमूर्ति ईश्वर खाटीवाडा और न्यायमूर्ति आनंद मोहन भट्टारई सदस्य के रूप में शामिल हैं. बहरहाल प्रधानमंत्री ओली की पैरवी कर रहे अटॉर्नी जनरल रमेश बादल सहित अन्य वकीलों ने पीठ में न्यायमूर्ति कार्की और भट्टारई की मौजूदगी पर सवाल उठाए जिससे राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई में विलंब हुआ.
काठमांडू पोस्ट ने बृहस्पतिवार को कहा कि पीठ ने बुधवार को कड़ा रुख अख्तियार करते हुए अपनी संरचना पर आगे किसी और दलील पर विचार करने से इनकार कर दिया. पीठ ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाए गए मुद्दे गंभीर प्रकृति के हैं जिनका अविलंब समाधान किए जाने की आवश्यकता है. इसने कहा कि मामले में 23 जून से लगातार सुनवाई शुरू होगी.
नेपाल की 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा को भंग करने के मामले में शीर्ष अदालत ने न्याय मित्र के रूप में दो वरिष्ठ अधिवक्ताओं की मदद लेने का निर्णय किया है. इनमें से एक अधिवक्ता नेपाल बार एसोसिएशन से तथा एक अधिवक्ता उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन से होंगे.
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प्रतिनिधि सभा को भंग करने के खिलाफ विपक्षी गठबंधन की याचिका सहित 30 रिट याचिकाएं दायर की गई हैं. याचिकाओं में कहा गया है कि प्रतिनिधि सभा को भंग किया जाना 'असंवैधानिक' है.
(पीटीआई-भाषा)