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अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव : विशेषज्ञों से जानें ट्रंप के भाषण की प्रमुख बातें - प्रियांक माथुर

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव नवंबर में होने हैं. चुनाव को लेकर राजनीतिक पार्टियों ने कमर कस ली है. इस समय अमेरिका में नस्लवाद, कासिम सुलेमानी की हत्या जैसे कई मुद्दे पर बहस तेज हो गई है. अमेरिका में लगातार घटनाक्रम बदल रहे हैं. इसके मद्देनजर वरिष्ठ पत्रकार स्मिता शर्मा ने ईटीवी भारत की ओर से कुछ विशेषज्ञों से बात की. विस्तार से पढ़ें पूरी खबर...

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अमेरिका राष्ट्रपति चुनाव
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Published : Aug 28, 2020, 10:26 PM IST

हैदराबाद : रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रीय सम्मेलन के समापन के साथ शुक्रवार को डोनाल्ड ट्रंप ने आगामी चुनाव में आधिकारिक रूप से सत्तारूढ़ पार्टी के लिए राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में पुनः नामांकित होना स्वीकार कर लिया. उनकी बेटी इवांका ट्रंप ने ह्वाइट हाउस के लॉन में अपने पिता को सबसे मिलवाया, जहां प्रतिनिधि मौजूदा महामारी के बीच बिना शारीरिक दूरी बनाए बैठे थे. वह भी तब जबकि अमेरिका में अब तक 1,80,000 से अधिक लोगों की मौत कोरोना संक्रमण के चलते हो चुकी है. इतना ही नहीं मौतों का सिलसिला अभी भी थमा नहीं है. इवांका ने अपने भाषण में अपने पिता को 'पीपल्स प्रेसिडेंट' यानी जनता के राष्ट्रपति के रूप में पेश किया, जो राजनीतिक रूप से गलत हो सकते हैं, लेकिन अमेरिका को एक बार फिर महान बनाने लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं.

राष्ट्रपति चुनाव को लेकर विशेष चर्चा

इवांका ट्रंप ने कहा, 'मेरे पिता दृढ़ विश्वास रखने वाले इंसान हैं. वह जानते हैं कि वह किन बातों पर विश्वास रखते हैं और वही कहते हैं जो वह सोचते हैं. आप उससे सहमत हों या नहीं हों, लेकिन आपको हमेशा पता होगा कि वह किन मुद्दों पर दृढ़ता से खड़े रहेंगे! मैं मानती हूं कि मेरे पिताजी की संवाद करने की शैली से हर व्यक्ति प्रभावित नहीं होगा और मुझे पता है कि उनके ट्वीट्स थोड़े असंतुलित (अनफिल्टर्ड) हो सकते हैं. लेकिन परिणाम खुद बोलते हैं.'

हालांकि ट्रंप ने अपने प्रतिद्वंद्वी जो बाइडेन और उनके 47 वर्षों के पिछले विधायी कार्यकाल पर अपने भाषण को केंद्रित किया. उन्होंने डेमोक्रेट को 'चरमपंथी होने की हद तक उग्र वामपंथी' के रूप में चित्रित किया और सवाल किया कि नस्लवाद के मुद्दों पर डेमोक्रेट नियंत्रित शहर जैसे कि मिनियापोलिस या केनोशा में ही हिंसा और आगजनी क्यों हुई.

ट्रंप ने कहा कि यह हमारे देश के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण चुनाव है. इससे पहले मतदाताओं को दो पक्षों, दो दर्शन, दो दर्शन या दो एजेंडों के बीच इतना ज्यादा स्पष्ट चुनाव करने का मौका नहीं मिला था. यह चुनाव तय करेगा कि क्या हम अमेरिकी अपने सपने को बचाते हैं या हम अपने अभिलषित भाग्य को नष्ट करने के लिए एक समाजवादी एजेंडे को आगे बढ़ने की अनुमति देते हैं.

ट्रंप ने 71 मिनट के लंबे भाषण में कहा कि यह चुनाव तय करेगा कि क्या हम अमेरिकी जीवन पद्धति का बचाव करेंगे या क्या हम एक कट्टरपंथी आंदोलन को पूरी तरह से इसे खंडित करने और बर्बाद करने की अनुमति देंगे. डेमोक्रेट राष्ट्रीय सम्मेलन में, जो बाइडेन और उनकी पार्टी ने बार-बार अमेरिका को नस्लीय, आर्थिक और सामाजिक अन्याय की भूमि होने का आरोप लगाया.

ट्रंप ने कहा कि आज रात मैं आपसे एक बहुत ही सरल सवाल पूछता हूं. डेमोक्रेट पार्टी हमारे देश का नेतृत्व करने के विषय में सोच भी कैसे सकती है, जब वह हमारे देश को बेइज्जत करने में इतना समय बिताती है.

तो पिछले सप्ताह आयोजित आभासी डेमोक्रेटिक कन्वेंशन पर शारीरिक रूप से मौजूदगी दर्ज करते हुए रिपब्लिकन नेशनल कन्वेंशन ने कितने अंक दर्ज किए? ऐतिहासिक ह्वाइट हाउस, जिसने इतिहास में अमेरिकी राष्ट्रपतियों की सेवा की है. उसे राजनीतिक अवलंब के रूप में इस्तेमाल करने के लिए कई लोगों नें आलोचना की है. क्या ट्रंप का मानवीयकरण करने और संबोधित करने वाले प्रतिनिधियों की मदद से उन्हें अधिक दयालु और देखभाल करने वाला दिखाने का प्रयास किया गया था? नवंबर के राष्ट्रपति चुनावों के नतीजे तय करने वाले मुख्य मुद्दे क्या होंगे? विशेष श्रृंखला #बैटलग्राउंडयूएसए2020 की इस कड़ी में वरिष्ठ पत्रकार स्मिता शर्मा ने रिपब्लिकन राष्ट्रीय सम्मेलन और ट्रंप के आधिकारिक स्वीकृति भाषण के प्रमुख पहलुओं पर चर्चा की.

वॉशिंगटन से बोलते हुए, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार सीमा सिरोही ने कहा, 'ह्वाइट हाउस के लॉन में लगभग 1500 लोग थे, उनमें से शायद ही किसी ने मास्क पहना हो. यह बहुत ही ध्यान देने योग्य था. कुर्सियां एक-दूसरे के बहुत करीब थीं. मानो महामारी थी ही नहीं. वक्ताओं में से एक ने महामारी के बारे में ऐसी बात की जैसा कि वह बहुत पहले की घटना हो. तो यह एक अलग वास्तविकता, एक वैकल्पिक ब्रह्मांड की तरह था. ह्वाइट हाउस के प्रवेश द्वार पर प्रदर्शनकारी थे और पुलिस भी मौजूद, जो फाटकों की रखवाली कर रहे थे. कल वॉशिंगटन में एक बड़ा जुलूस निकलेगा. मुझे ऐसा लगा कि यह दो अलग-अलग देश हैं. कुछ समय से ऐसा ही है, लेकिन आज जिन शब्दों में बात होती है वे प्रत्यक्ष रूप से सामने थे.'

'आपने आज एक कहानी सुनी कि अमेरिका क्या है और यह एक ट्रंप के दृष्टिकोण से क्या होना चाहिए और कुछ दिनों पहले हमने यह भी सुना है कि अमेरिका क्या है और बाइडेन के मुताबिक उसे कैसा होना चाहिए. एक स्तर पर दोनों कहानियां समान रूप से मान्य या अमान्य हैं. अपनी कहानी के लिए वास्तव में कौन बहुमत में समर्थन जुटाने में सफल होता है, तय करेगा कि चुनाव का निर्णय किसके हक में होगा.' हिंदू के एसोसिएट एडिटर वर्गीस के जॉर्ज ने तर्क दिया. वर्गीज ओपन एम्ब्रेस: इंडो-यूएस टाईज इन द एज ऑफ मोदी एंड ट्रंप' के लेखक हैं.

उन्होंने कहा कि ट्रंप और बाइडेन द्वारा प्रस्तुत इन दो कहानियों के बीच इस प्रतियोगिता में आज पेश की जाने वाली ट्रंप की कहानी जो साफ तौर पर कहती है कि हम वायरस की परवाह नहीं करते हैं. हम एक सभ्यता हैं, जो वायरस के सामने आत्मसमर्पण नहीं करेंगे, बल्कि उससे लड़ेंगे और वायरस को हराकर जीत हासिल करेंगे. यह अमेरिकी इतिहास का एक रेखीय आख्यान है, जिसे उसके नागरिकों और दुनिया के सामने पेश किया जाता है. यह एक ऐसा देश है, जो वास्तव में मानता है कि अमेरिकी मध्य पूर्व में लोकतंत्र की लड़ाई लड़ने और स्थापित करने के लिए इराक गए थे.

वर्गीज जॉर्ज ने, रिपब्लिकन और भाजपा के राजनीतिक वैचारिक अभियानों के बीच समानताएं देखते हुए, रेखांकित किया कि जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने एक बड़े हिंदुत्व के एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए जाति बाधाओं को पार किया. उसी तरह अश्वेत जीवन के मुद्दे पर ट्रंप ने व्यापक रूप से रूढ़िवादी प्रचारक के माध्यम से कैथोलिक धर्म में विश्वास रखने वाले नागरिकों को संबोधित करने का प्रयास किया है, जिसमें व्यवस्थित नस्लवाद के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे अफ्रीकी-अमेरिकी समुदाय का एक बड़ा हिस्सा शामिल है. ट्रंप ने अपने भाषण में बाइडेन पर बीजिंग पर नर्म होने का आरोप लगाते हुए कहा कि यदि बाइडेन चुने गए तो चीन हमारे देश पर कब्जा कर लेगा. उन्होंने यरूशलम में अमेरिकी दूतावास को स्थानांतरित करने और अमेरिका द्वारा संयुक्त अरब अमीरात और इजराइल के बीच शांति समझौते की पहल करने पर भी प्रकाश डाला. वर्गीज जॉर्ज 2016 के अमेरिकी चुनावों के दौरान वॉशिंगटन में कार्यरत थे.

ट्रंप ने कहा कि जब मैंने पदभार संभाला, तो मध्य पूर्व में केवल अराजकता का माहौल था. आईएसआईएस उग्र था, ईरान लगातार आगे बढ़ रहा था और अफगानिस्तान में युद्ध का कोई अंत नजर नहीं आ रहा था. मैं एकतरफा हुए ईरान के साथ परमाणु समझौते से हट गया. मेरे पहले आए कई राष्ट्रपतियों के विपरीत मैंने अपना वादा पूरा किया, इजराइल की वास्तविक राजधानी को मान्यता दी और अपने दूतावास को यरूशलम में स्थानांतरित किया, लेकिन न केवल हमने भविष्य के स्थान रूप में इसके बारे में बात की, हमने इसे स्थापित भी किया.

ट्रंप ने कहा, 'हमने गोलान हाइट्स पर इजराइल की संप्रभुता को मान्यता दी और इस महीने हमने 25 वर्षों में पहली मध्य पूर्व में शांति स्थापित करने के लिए मसौदा किया. इसके अलावा हमने आईएसआईएस के 100 फीसदी प्रभुता के इलाके को खत्म कर दिया और इसके संस्थापक और नेता अबू बक्र अल-बगदादी को मार डाला. फिर एक अलग ऑपरेशन में हमने दुनिया के नंबर एक आतंकवादी, कासिम सुलेमानी को मार दिया. पिछले प्रशासनों के विपरीत मैंने अमेरिका को नए युद्धों से बाहर रखा है और अब हमारे सैनिक घर आ रहे हैं.'

वरिष्ठ पत्रकार स्मिता शर्मा ने हिंसक चरमपंथियों का मुकाबला करने पर ध्यान केंद्रित करने वाली एजेंसी मायथोस लैब्स के सीईओ प्रियांक माथुर से सवाल पूछा, क्या मध्य पूर्व के लिए ट्रंप की शांति योजना और बगदादी या सुलेमानी की हत्या जैसे सुरक्षा मुद्दे चुनावी मुद्दे के रूप में गूंजेंगे? आम तौर पर विदेश नीति अमेरिकी चुनावों में बहुत महत्वपूर्ण कारक नहीं है, लेकिन इसके दो परिदृश्य हो सकते हैं. यह एक विशेष मामला है क्योंकि इजराइल विदेश नीति की एक विशेष उप-श्रेणी में शामिल है. धर्म दक्षिणपंथ का एक बड़ा हिस्सा है. इजराइल के दक्षिणपंथी विश्वास के साथ बहुत निकटता से जुड़ा हुआ है.

प्रियांक माथुर ने तर्क देते हुए कहा कि यह साफ तौर पर इशारा करता है कि धार्मिक आधार शांति समझौते के गुण या अवगुणों की परवाह नहीं करता है. कासिम सुलेमानी या बगदादी ओसामा बिन लादेन की तरह बड़े नाम नहीं हैं. आप कह सकते हैं कि वह उस जादू को दोबारा चलाने की कोशिश कर रहे हैं.

ओबामा के शासनकाल में नौसेना के जवानों द्वारा ओसामा बिन लादेन की हत्या के बाद अमेरिका की सड़कों पर जश्न समारोह को याद करते हुए प्रियांक माथुर ने कहा कि वह यह कहना चाह रहे थे कि यह हमारे लादेन थे और हमने उन्हें मार गिराया. इस मामले का तथ्य यह है कि ज्यादातर अमेरिकी यह नहीं जानते हैं कि कासिम सुलेमानी कौन था.

अमेरिका में कोरोना वायरस के कारण डाक मत-पत्रों के इस्तेमाल पर होने वाले विवादों पर चर्चा हुई और इस पर क्या मतदाताओं की चिंता जायज है. पैनल वादियों ने इस बात पर सहमति जताई कि इससे चुनावी नतीजे पर बुरा असर पड़ सकता है, क्योंकि चुनाव के बाद चार नवंबर को नतीजे घोषित नहीं किए जाएंगे, जैसा कि अतीत में हुआ था, लेकिन इसमें एक हफ्ते तक की देरी हो सकती है.

हैदराबाद : रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रीय सम्मेलन के समापन के साथ शुक्रवार को डोनाल्ड ट्रंप ने आगामी चुनाव में आधिकारिक रूप से सत्तारूढ़ पार्टी के लिए राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में पुनः नामांकित होना स्वीकार कर लिया. उनकी बेटी इवांका ट्रंप ने ह्वाइट हाउस के लॉन में अपने पिता को सबसे मिलवाया, जहां प्रतिनिधि मौजूदा महामारी के बीच बिना शारीरिक दूरी बनाए बैठे थे. वह भी तब जबकि अमेरिका में अब तक 1,80,000 से अधिक लोगों की मौत कोरोना संक्रमण के चलते हो चुकी है. इतना ही नहीं मौतों का सिलसिला अभी भी थमा नहीं है. इवांका ने अपने भाषण में अपने पिता को 'पीपल्स प्रेसिडेंट' यानी जनता के राष्ट्रपति के रूप में पेश किया, जो राजनीतिक रूप से गलत हो सकते हैं, लेकिन अमेरिका को एक बार फिर महान बनाने लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं.

राष्ट्रपति चुनाव को लेकर विशेष चर्चा

इवांका ट्रंप ने कहा, 'मेरे पिता दृढ़ विश्वास रखने वाले इंसान हैं. वह जानते हैं कि वह किन बातों पर विश्वास रखते हैं और वही कहते हैं जो वह सोचते हैं. आप उससे सहमत हों या नहीं हों, लेकिन आपको हमेशा पता होगा कि वह किन मुद्दों पर दृढ़ता से खड़े रहेंगे! मैं मानती हूं कि मेरे पिताजी की संवाद करने की शैली से हर व्यक्ति प्रभावित नहीं होगा और मुझे पता है कि उनके ट्वीट्स थोड़े असंतुलित (अनफिल्टर्ड) हो सकते हैं. लेकिन परिणाम खुद बोलते हैं.'

हालांकि ट्रंप ने अपने प्रतिद्वंद्वी जो बाइडेन और उनके 47 वर्षों के पिछले विधायी कार्यकाल पर अपने भाषण को केंद्रित किया. उन्होंने डेमोक्रेट को 'चरमपंथी होने की हद तक उग्र वामपंथी' के रूप में चित्रित किया और सवाल किया कि नस्लवाद के मुद्दों पर डेमोक्रेट नियंत्रित शहर जैसे कि मिनियापोलिस या केनोशा में ही हिंसा और आगजनी क्यों हुई.

ट्रंप ने कहा कि यह हमारे देश के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण चुनाव है. इससे पहले मतदाताओं को दो पक्षों, दो दर्शन, दो दर्शन या दो एजेंडों के बीच इतना ज्यादा स्पष्ट चुनाव करने का मौका नहीं मिला था. यह चुनाव तय करेगा कि क्या हम अमेरिकी अपने सपने को बचाते हैं या हम अपने अभिलषित भाग्य को नष्ट करने के लिए एक समाजवादी एजेंडे को आगे बढ़ने की अनुमति देते हैं.

ट्रंप ने 71 मिनट के लंबे भाषण में कहा कि यह चुनाव तय करेगा कि क्या हम अमेरिकी जीवन पद्धति का बचाव करेंगे या क्या हम एक कट्टरपंथी आंदोलन को पूरी तरह से इसे खंडित करने और बर्बाद करने की अनुमति देंगे. डेमोक्रेट राष्ट्रीय सम्मेलन में, जो बाइडेन और उनकी पार्टी ने बार-बार अमेरिका को नस्लीय, आर्थिक और सामाजिक अन्याय की भूमि होने का आरोप लगाया.

ट्रंप ने कहा कि आज रात मैं आपसे एक बहुत ही सरल सवाल पूछता हूं. डेमोक्रेट पार्टी हमारे देश का नेतृत्व करने के विषय में सोच भी कैसे सकती है, जब वह हमारे देश को बेइज्जत करने में इतना समय बिताती है.

तो पिछले सप्ताह आयोजित आभासी डेमोक्रेटिक कन्वेंशन पर शारीरिक रूप से मौजूदगी दर्ज करते हुए रिपब्लिकन नेशनल कन्वेंशन ने कितने अंक दर्ज किए? ऐतिहासिक ह्वाइट हाउस, जिसने इतिहास में अमेरिकी राष्ट्रपतियों की सेवा की है. उसे राजनीतिक अवलंब के रूप में इस्तेमाल करने के लिए कई लोगों नें आलोचना की है. क्या ट्रंप का मानवीयकरण करने और संबोधित करने वाले प्रतिनिधियों की मदद से उन्हें अधिक दयालु और देखभाल करने वाला दिखाने का प्रयास किया गया था? नवंबर के राष्ट्रपति चुनावों के नतीजे तय करने वाले मुख्य मुद्दे क्या होंगे? विशेष श्रृंखला #बैटलग्राउंडयूएसए2020 की इस कड़ी में वरिष्ठ पत्रकार स्मिता शर्मा ने रिपब्लिकन राष्ट्रीय सम्मेलन और ट्रंप के आधिकारिक स्वीकृति भाषण के प्रमुख पहलुओं पर चर्चा की.

वॉशिंगटन से बोलते हुए, वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार सीमा सिरोही ने कहा, 'ह्वाइट हाउस के लॉन में लगभग 1500 लोग थे, उनमें से शायद ही किसी ने मास्क पहना हो. यह बहुत ही ध्यान देने योग्य था. कुर्सियां एक-दूसरे के बहुत करीब थीं. मानो महामारी थी ही नहीं. वक्ताओं में से एक ने महामारी के बारे में ऐसी बात की जैसा कि वह बहुत पहले की घटना हो. तो यह एक अलग वास्तविकता, एक वैकल्पिक ब्रह्मांड की तरह था. ह्वाइट हाउस के प्रवेश द्वार पर प्रदर्शनकारी थे और पुलिस भी मौजूद, जो फाटकों की रखवाली कर रहे थे. कल वॉशिंगटन में एक बड़ा जुलूस निकलेगा. मुझे ऐसा लगा कि यह दो अलग-अलग देश हैं. कुछ समय से ऐसा ही है, लेकिन आज जिन शब्दों में बात होती है वे प्रत्यक्ष रूप से सामने थे.'

'आपने आज एक कहानी सुनी कि अमेरिका क्या है और यह एक ट्रंप के दृष्टिकोण से क्या होना चाहिए और कुछ दिनों पहले हमने यह भी सुना है कि अमेरिका क्या है और बाइडेन के मुताबिक उसे कैसा होना चाहिए. एक स्तर पर दोनों कहानियां समान रूप से मान्य या अमान्य हैं. अपनी कहानी के लिए वास्तव में कौन बहुमत में समर्थन जुटाने में सफल होता है, तय करेगा कि चुनाव का निर्णय किसके हक में होगा.' हिंदू के एसोसिएट एडिटर वर्गीस के जॉर्ज ने तर्क दिया. वर्गीज ओपन एम्ब्रेस: इंडो-यूएस टाईज इन द एज ऑफ मोदी एंड ट्रंप' के लेखक हैं.

उन्होंने कहा कि ट्रंप और बाइडेन द्वारा प्रस्तुत इन दो कहानियों के बीच इस प्रतियोगिता में आज पेश की जाने वाली ट्रंप की कहानी जो साफ तौर पर कहती है कि हम वायरस की परवाह नहीं करते हैं. हम एक सभ्यता हैं, जो वायरस के सामने आत्मसमर्पण नहीं करेंगे, बल्कि उससे लड़ेंगे और वायरस को हराकर जीत हासिल करेंगे. यह अमेरिकी इतिहास का एक रेखीय आख्यान है, जिसे उसके नागरिकों और दुनिया के सामने पेश किया जाता है. यह एक ऐसा देश है, जो वास्तव में मानता है कि अमेरिकी मध्य पूर्व में लोकतंत्र की लड़ाई लड़ने और स्थापित करने के लिए इराक गए थे.

वर्गीज जॉर्ज ने, रिपब्लिकन और भाजपा के राजनीतिक वैचारिक अभियानों के बीच समानताएं देखते हुए, रेखांकित किया कि जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने एक बड़े हिंदुत्व के एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए जाति बाधाओं को पार किया. उसी तरह अश्वेत जीवन के मुद्दे पर ट्रंप ने व्यापक रूप से रूढ़िवादी प्रचारक के माध्यम से कैथोलिक धर्म में विश्वास रखने वाले नागरिकों को संबोधित करने का प्रयास किया है, जिसमें व्यवस्थित नस्लवाद के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे अफ्रीकी-अमेरिकी समुदाय का एक बड़ा हिस्सा शामिल है. ट्रंप ने अपने भाषण में बाइडेन पर बीजिंग पर नर्म होने का आरोप लगाते हुए कहा कि यदि बाइडेन चुने गए तो चीन हमारे देश पर कब्जा कर लेगा. उन्होंने यरूशलम में अमेरिकी दूतावास को स्थानांतरित करने और अमेरिका द्वारा संयुक्त अरब अमीरात और इजराइल के बीच शांति समझौते की पहल करने पर भी प्रकाश डाला. वर्गीज जॉर्ज 2016 के अमेरिकी चुनावों के दौरान वॉशिंगटन में कार्यरत थे.

ट्रंप ने कहा कि जब मैंने पदभार संभाला, तो मध्य पूर्व में केवल अराजकता का माहौल था. आईएसआईएस उग्र था, ईरान लगातार आगे बढ़ रहा था और अफगानिस्तान में युद्ध का कोई अंत नजर नहीं आ रहा था. मैं एकतरफा हुए ईरान के साथ परमाणु समझौते से हट गया. मेरे पहले आए कई राष्ट्रपतियों के विपरीत मैंने अपना वादा पूरा किया, इजराइल की वास्तविक राजधानी को मान्यता दी और अपने दूतावास को यरूशलम में स्थानांतरित किया, लेकिन न केवल हमने भविष्य के स्थान रूप में इसके बारे में बात की, हमने इसे स्थापित भी किया.

ट्रंप ने कहा, 'हमने गोलान हाइट्स पर इजराइल की संप्रभुता को मान्यता दी और इस महीने हमने 25 वर्षों में पहली मध्य पूर्व में शांति स्थापित करने के लिए मसौदा किया. इसके अलावा हमने आईएसआईएस के 100 फीसदी प्रभुता के इलाके को खत्म कर दिया और इसके संस्थापक और नेता अबू बक्र अल-बगदादी को मार डाला. फिर एक अलग ऑपरेशन में हमने दुनिया के नंबर एक आतंकवादी, कासिम सुलेमानी को मार दिया. पिछले प्रशासनों के विपरीत मैंने अमेरिका को नए युद्धों से बाहर रखा है और अब हमारे सैनिक घर आ रहे हैं.'

वरिष्ठ पत्रकार स्मिता शर्मा ने हिंसक चरमपंथियों का मुकाबला करने पर ध्यान केंद्रित करने वाली एजेंसी मायथोस लैब्स के सीईओ प्रियांक माथुर से सवाल पूछा, क्या मध्य पूर्व के लिए ट्रंप की शांति योजना और बगदादी या सुलेमानी की हत्या जैसे सुरक्षा मुद्दे चुनावी मुद्दे के रूप में गूंजेंगे? आम तौर पर विदेश नीति अमेरिकी चुनावों में बहुत महत्वपूर्ण कारक नहीं है, लेकिन इसके दो परिदृश्य हो सकते हैं. यह एक विशेष मामला है क्योंकि इजराइल विदेश नीति की एक विशेष उप-श्रेणी में शामिल है. धर्म दक्षिणपंथ का एक बड़ा हिस्सा है. इजराइल के दक्षिणपंथी विश्वास के साथ बहुत निकटता से जुड़ा हुआ है.

प्रियांक माथुर ने तर्क देते हुए कहा कि यह साफ तौर पर इशारा करता है कि धार्मिक आधार शांति समझौते के गुण या अवगुणों की परवाह नहीं करता है. कासिम सुलेमानी या बगदादी ओसामा बिन लादेन की तरह बड़े नाम नहीं हैं. आप कह सकते हैं कि वह उस जादू को दोबारा चलाने की कोशिश कर रहे हैं.

ओबामा के शासनकाल में नौसेना के जवानों द्वारा ओसामा बिन लादेन की हत्या के बाद अमेरिका की सड़कों पर जश्न समारोह को याद करते हुए प्रियांक माथुर ने कहा कि वह यह कहना चाह रहे थे कि यह हमारे लादेन थे और हमने उन्हें मार गिराया. इस मामले का तथ्य यह है कि ज्यादातर अमेरिकी यह नहीं जानते हैं कि कासिम सुलेमानी कौन था.

अमेरिका में कोरोना वायरस के कारण डाक मत-पत्रों के इस्तेमाल पर होने वाले विवादों पर चर्चा हुई और इस पर क्या मतदाताओं की चिंता जायज है. पैनल वादियों ने इस बात पर सहमति जताई कि इससे चुनावी नतीजे पर बुरा असर पड़ सकता है, क्योंकि चुनाव के बाद चार नवंबर को नतीजे घोषित नहीं किए जाएंगे, जैसा कि अतीत में हुआ था, लेकिन इसमें एक हफ्ते तक की देरी हो सकती है.

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