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वायरस के खिलाफ जंग : चीन में बनी कोरोना वैक्सीन बंदरों पर प्रभावी

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Published : May 8, 2020, 11:52 AM IST

कोरोना का प्रभाव कम होने की बजाय बढ़ता ही जा रहा है. ऐसे में चीन ने एक वैक्सीन तैयार किया है. हालांकि इसे पहली बार बंदरों पर इस्तेमाल किया गया है. कोरोना वायरस की वैक्सीन बंदरों पर प्रभावी साबित हुई है. अब यह वैक्सीन मानव पर टेस्ट किया जाएगा.

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प्रतीकात्मक तस्वीर.

बीजिंग : पूरी दुनिया वैश्विक संकट कोविड-19 से जूझ रही है. दुनिया के सभी देशों में कोरोना की वैक्सीन को तैयार करने का काम जारी है. मरने वालों की संख्या बढ़कर करीब ढाई लाख हो गई है और संक्रमित लोगों की संख्या 37 लाख के पार है. ऐसी स्थिति में दुनिया भर में वैक्सीन को लेकर काम तेज हो गया है. लेकिन इस समय चीन से राहत देने वाली एक खबर सामने आयी है कि चीन में बनी कोरोना वायरस की वैक्सीन बंदरों पर प्रभावी साबित हुई है.

पाइकोवैक नाम की इस वैक्सीन को पेइचिंग स्थित सिनोवैक बायोटेक कंपनी ने तैयार की है. यह वैक्सीन शरीर में जाते ही प्रतिरक्षा प्रणाली को एंटीबॉडी बनाने पर जोर देती है, और एंटीबॉडी वायरस को खत्म करने लगती है.

दरअसल, इस वैक्सीन पर काम करने वाले शोधकर्ताओं ने एक तरह के प्रजाति के बंदरों (रीसस मैकाक्स) को यह वैक्सीन लगायी, और फिर तीन सप्ताह बाद बंदरों को नोवल कोरोनोवायरस से ग्रसित करवाया. एक सप्ताह बाद, जिन बंदरों को भारी संख्या में वैक्सीन दी गई थी, उनके फेफड़ों में वायरस नहीं मिला, जिसका साफ अर्थ है कि यह वैक्सीन असरदार और कामयाब है. इस बीच, जिन बंदरों को पाइकोवैक नाम की यह वैक्सीन नहीं दी गई थी, वे कोरोना वायरस से ग्रसित हैं और उन्हें गंभीर निमोनिया हो गया है. यह वैक्सीन अब मानव पर टेस्ट किया जाएगा.

ऐसा नहीं है कि पाइकोवैक ही एकमात्र वैक्सीन है, जो दुनिया भर में सैकड़ों हजारों लोगों की जान लेने वाली महामारी को समाप्त करने की आशा बांधती है, बल्कि चीनी सैन्य संस्थान द्वारा बनाए गए एक अन्य वैक्सीन का मनुष्यों पर परीक्षण किया जा रहा है. सिनोफर्म कंपनी का उत्पाद, जिसमें पाइकोवैक के समान विधि का उपयोग किया गया है, नैदानिक परीक्षणों के दूसरे चरण में प्रवेश कर गया है.

लेकिन, इस समय वैक्सीन के अंतिम पड़ाव पर पहुंचने की डगर थोड़ा मुश्किल है। आने वाले समय में इस वैक्सीन के निमार्ताओं को वैक्सीन टेस्ट के लिए स्वयंसेवकों को ढूंढना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि इस समय चीन में कोरोनावायरस के रोगियों की संख्या सिर्फ सैकड़ों में ही है. यही स्थिति 2003 में सार्स की वैक्सीन बनाने के दौरान भी हुई थी, लेकिन चीन चाहेगा कि जल्द-से-जल्द दुनिया के लिए वैक्सीन बनायी जाओ, ताकि पूरी दुनिया के लोगों का भला हो सके. वैसे भी मानव जीवन के कल्याण से बड़ा कल्याण और कुछ हो भी नहीं सकता.

हालांकि, विश्व स्वास्थ्य संगठन कई बार कह चुका है कि बिना प्रभावी वैक्सीन या दवा के कोरोना वायरस पर काबू पाना मुश्किल है. संयुक्त राष्ट्र का भी कहना है कि सामान्य जीवन में लौटने के लिए वैक्सीन ही एकमात्र विकल्प है. उसके लिए दुनिया को वैक्सीन बनाने में साथ आने की जरूरत है, साथ ही इसकी फंडिंग के लिए भी एकजुट होने की भी आवश्यकता है.

ट्रंप का सैन्य सहायक कोरोना संक्रमित, हर दिन जांच कराएंगे अमेरिकी राष्ट्रपति

खैर, इस समय सभी की आशा है कि कोरोना का वैक्सीन जल्दी तैयार हो, और पूरी दुनिया को इस जानलेवा बीमारे से मुक्ति मिले. मौजूदा समय में चीन के अलावा अमेरिका, इटली, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इजराइल आदि देश भी वैक्सीन बनाने में जुटे हुए हैं. यदि ये देश वैक्सीन बना लेते हैं, तो ये 21वीं सदी में दुनिया के लोगों के भले के लिए वाकई अनोखी बात होगी.

बीजिंग : पूरी दुनिया वैश्विक संकट कोविड-19 से जूझ रही है. दुनिया के सभी देशों में कोरोना की वैक्सीन को तैयार करने का काम जारी है. मरने वालों की संख्या बढ़कर करीब ढाई लाख हो गई है और संक्रमित लोगों की संख्या 37 लाख के पार है. ऐसी स्थिति में दुनिया भर में वैक्सीन को लेकर काम तेज हो गया है. लेकिन इस समय चीन से राहत देने वाली एक खबर सामने आयी है कि चीन में बनी कोरोना वायरस की वैक्सीन बंदरों पर प्रभावी साबित हुई है.

पाइकोवैक नाम की इस वैक्सीन को पेइचिंग स्थित सिनोवैक बायोटेक कंपनी ने तैयार की है. यह वैक्सीन शरीर में जाते ही प्रतिरक्षा प्रणाली को एंटीबॉडी बनाने पर जोर देती है, और एंटीबॉडी वायरस को खत्म करने लगती है.

दरअसल, इस वैक्सीन पर काम करने वाले शोधकर्ताओं ने एक तरह के प्रजाति के बंदरों (रीसस मैकाक्स) को यह वैक्सीन लगायी, और फिर तीन सप्ताह बाद बंदरों को नोवल कोरोनोवायरस से ग्रसित करवाया. एक सप्ताह बाद, जिन बंदरों को भारी संख्या में वैक्सीन दी गई थी, उनके फेफड़ों में वायरस नहीं मिला, जिसका साफ अर्थ है कि यह वैक्सीन असरदार और कामयाब है. इस बीच, जिन बंदरों को पाइकोवैक नाम की यह वैक्सीन नहीं दी गई थी, वे कोरोना वायरस से ग्रसित हैं और उन्हें गंभीर निमोनिया हो गया है. यह वैक्सीन अब मानव पर टेस्ट किया जाएगा.

ऐसा नहीं है कि पाइकोवैक ही एकमात्र वैक्सीन है, जो दुनिया भर में सैकड़ों हजारों लोगों की जान लेने वाली महामारी को समाप्त करने की आशा बांधती है, बल्कि चीनी सैन्य संस्थान द्वारा बनाए गए एक अन्य वैक्सीन का मनुष्यों पर परीक्षण किया जा रहा है. सिनोफर्म कंपनी का उत्पाद, जिसमें पाइकोवैक के समान विधि का उपयोग किया गया है, नैदानिक परीक्षणों के दूसरे चरण में प्रवेश कर गया है.

लेकिन, इस समय वैक्सीन के अंतिम पड़ाव पर पहुंचने की डगर थोड़ा मुश्किल है। आने वाले समय में इस वैक्सीन के निमार्ताओं को वैक्सीन टेस्ट के लिए स्वयंसेवकों को ढूंढना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि इस समय चीन में कोरोनावायरस के रोगियों की संख्या सिर्फ सैकड़ों में ही है. यही स्थिति 2003 में सार्स की वैक्सीन बनाने के दौरान भी हुई थी, लेकिन चीन चाहेगा कि जल्द-से-जल्द दुनिया के लिए वैक्सीन बनायी जाओ, ताकि पूरी दुनिया के लोगों का भला हो सके. वैसे भी मानव जीवन के कल्याण से बड़ा कल्याण और कुछ हो भी नहीं सकता.

हालांकि, विश्व स्वास्थ्य संगठन कई बार कह चुका है कि बिना प्रभावी वैक्सीन या दवा के कोरोना वायरस पर काबू पाना मुश्किल है. संयुक्त राष्ट्र का भी कहना है कि सामान्य जीवन में लौटने के लिए वैक्सीन ही एकमात्र विकल्प है. उसके लिए दुनिया को वैक्सीन बनाने में साथ आने की जरूरत है, साथ ही इसकी फंडिंग के लिए भी एकजुट होने की भी आवश्यकता है.

ट्रंप का सैन्य सहायक कोरोना संक्रमित, हर दिन जांच कराएंगे अमेरिकी राष्ट्रपति

खैर, इस समय सभी की आशा है कि कोरोना का वैक्सीन जल्दी तैयार हो, और पूरी दुनिया को इस जानलेवा बीमारे से मुक्ति मिले. मौजूदा समय में चीन के अलावा अमेरिका, इटली, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इजराइल आदि देश भी वैक्सीन बनाने में जुटे हुए हैं. यदि ये देश वैक्सीन बना लेते हैं, तो ये 21वीं सदी में दुनिया के लोगों के भले के लिए वाकई अनोखी बात होगी.

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