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हिरोशिमा-नागासाकी से सबक लेते हुए क्या हम परमाणु मुक्त विश्व बन सकते हैं ...

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Published : Aug 6, 2020, 10:09 AM IST

Updated : Aug 6, 2020, 1:03 PM IST

परमाणु युद्द की विभीषिका को समझने के बाद हम सभी एक ऐसे विश्व की कल्पना करना चाहेंगे जो परमाणु हथियारों से मुक्त हो और आने वाली पीढ़ियां डर के साए से दूर हंसता-खेलता स्वस्थ जीवन बिता सकें. क्या ऐसा संभव है. आइये विचार करते हैं...

हिरोशिमा और नागासाकी से सबक
हिरोशिमा और नागासाकी से सबक

हैदराबादः हिरोशिमा - शांति के बारे में सोचने का स्थान, हिरोशिमा - शांति के लिए प्रतिबद्ध जगह, हिरोशिमा - भविष्य के बारे में सोचने के लिए एक जगह. इस जगह के बारे में यदि आंखें मूंदकर सोचा जाए तो एक क्षण में हम युद्द की विभीषका को महसूस कर सकते हैं. जैसा कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने महसूस किया. उन्होंने कहा....

  • हम इस शहर के बीचो-बीच खड़े हैं और उस समय बम गिरने से हुई त्रासदी की कल्पना करते हैं. हमें महसूस होता मासूम और भ्रमित हुए बच्चों को डर. हमें सुनाई देती हैं सिसकियां. हमें याद आते हैं वो मासूम जो इस तबाही में मारे गए. हमें इस तबाही से पहले और बाद में हुए युद्धों की भयावहता के बारे में विचार करना चाहिए. – बराक ओबामा

परमाणु युद्द की विभीषिका को समझने के बाद हम सभी एक ऐसे विश्व की कल्पना करना चाहेंगे जो परमाणु हथियारों से मुक्त हो और आने वाली पीढ़ियां डर के साए से दूर हंसता-खेलता स्वस्थ जीवन बिता सकें. क्या ऐसा संभव है. आइये विचार करते हैं.

कोविड महामारी के दौरान - हिरोशिमा और नागासाकी से सबक

जापानी रेड क्रॉस अस्पतालों ने आज भी हिरोशिमा और नागासाकी के 1945 बम विस्फोटों से विकिरण के कारण होने वाले कैंसर और पुरानी बीमारी के कई हजारों पीड़ितों का इलाज जारी रखा है.

परमाणु विस्फोट से पैदा हुई स्वास्थ्य समस्याएं फैल गई हैं. यह महामारी पर नियंत्रण पाने जैसा नहीं है. विकिरण कोई सीमा नहीं जानता है. परमाणु परीक्षणों से उत्पन्न रेडियोधर्मी समस्थानिक पूरे विश्व में वायुमंडल, महासागर और हमारे सभी निकायों में फैल गए हैं.

जलवायु अध्ययनों ने प्रदर्शित किया है कि जहां परमाणु युद्ध हुए उसके सीमित क्षेत्र में करीब सौ परमाणु हथियार (वैश्विक परमाणु शस्त्रों के एक प्रतिशत से भी कम) गिराए जाने जैसा प्रभाव वहां की जलवायु और खाद्य आपूर्ति पर होगा.

एक उदाहरण के तौर पर यदि भारत और पाकिस्तान के इलाकों में 100 हिरोशिमा के आकार के परमाणु हथियारों का उपयोग होता है तो सूरज की रोशनी और बारिश में कमी हो सकती है, जिससे दुनिया के मुख्य अनाज का उत्पादन बाधित किया जा सकता है, जो दुनिया भर में खाद्य श्रृंखला और वैश्विक अर्थव्यवस्था को अस्थिर कर सकता है. एक ट्रिगर वैश्विक अकाल पड़ सकता है जिसके कारण लाखों लोगों का जीवन समाप्त हो जाने की संभावना है.

महामारी और परमाणु युद्ध के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर है. हमारे पास पहले से ही परमाणु हथियार पर रोक लगाने का उपकरण है. इसे परमाणु हथियारों के निषेध पर संधि कहा जाता है और इसे 2017 में संयुक्त राष्ट्र में 122 देशों द्वारा अपनाया गया था.

आज 81 देशों ने इस पर हस्ताक्षर किए हैं और 36 ने इसकी पुष्टि की है. वर्ल्ड मेडिकल एसोसिएशन ने 2018 में TPNW का स्वागत किया और सभी राज्यों से, "चिकित्सकों के मिशन के रूप में" इसे तुरंत शामिल होने और इसे लागू करने के लिए कहा. वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ पब्लिक हेल्थ एसोसिएशंस, इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ नर्स और इंटरनेशनल रेड क्रॉस एंड रेड क्रीसेंट मूवमेंट ने भी यही किया.

स्वास्थ्य पेशेवरों का स्पष्ट कहना है कि परमाणु युद्ध के बाद प्राप्त हुई स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज हमारे पास कोई रास्ता नहीं है. हमारा एकमात्र समाधान युद्ध को रोकने के लिए एक वैश्विक समुदाय के रूप में एक साथ काम करना है. किसी भी देश के पास कोई भी परमाणु हथियार होने पर दूसरे देश भी अपने पास परमाणु हथियार रखने के लिए प्रेरित करते हैं. परमाणु हथियार रखने की होड़ समस्त मानव जाति को खतरे में डालती है.

डॉक्टर और नर्स वैश्विक स्वास्थ्य संकट का जवाब दे रहे हैं लेकिन जिम्मेदार देशों को सामूहिक वैश्विक कार्रवाई करते हुए परमाणु हथियारों के निषेध पर संधि में शामिल होना चाहिए.

क्या हिरोशिमा और नागासाकी वाकई परमाणु हमले के बाद उबर सके

बम विस्फोट होने के लगभग सत्तर साल बाद हमले के दौरान जीवित रहने वाली अधिकांश पीढ़ी का निधन हो गया है.

अब बचे हुए बच्चों की ओर अधिक ध्यान दिया गया है. उन व्यक्तियों के बारे में जो जन्म से पहले (गर्भाशय में) विकिरण के संपर्क में थे, जैसे कि 1994 में ई नकाशिमा के नेतृत्व में एक अध्ययन में पता चला है कि परमाणु हमलों की वजह से बच्चों के सिर का आकार छोटा हो गया और मानसिक विकलांगता के साथ-साथ शारीरिक विकास में भी कमजोरी आई.

हमले के समय बचे हुए बच्चों की तुलना में गर्भाशय में रहे व्यक्तियों में भी कैंसर के लक्षण मिले.

हिरोशिमा और नागासाकी पर हमलों के बाद तात्कालिक चिंताओं में से एक यह था कि बम विस्फोट के बाद जीवित बचे लोगों के बच्चों पर विकिरण का स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा.

हालांकि हिरोशिमा और नागासाकी की नई पीढ़ियों में ऐसी स्वास्थ्य समस्या नहीं देखी गई जिससे लोगों में एक नया विश्वास पैदा होता है ओलियंडर फूल की तरह जो अपने पिछले विनाश से उठते रहेंगे.

कुछ के बीच निराधार भय है कि हिरोशिमा और नागासाकी अभी भी रेडियोधर्मी हैं. वास्तव में यह सच नहीं है.

परमाणु विस्फोट के बाद अवशिष्ट रेडियोधर्मिता के दो रूप हैं. पहला परमाणु सामग्री विखंडन उत्पादों का पतन. इसमें से अधिकांश वायुमंडल में फैल गए थे या हवा से उड़ गए थे. हालांकि कुछ काली बारिश के रूप में शहर पर गिर गए थे.

आज रेडियोधर्मिता का स्तर इतना कम है कि इसे 1950 और 1960 के दशक में वायुमंडलीय परीक्षणों के परिणामस्वरूप दुनिया भर में मौजूद ट्रेस मात्रा से अलग किया जा सकता है.

विकिरण का दूसरा रूप न्यूट्रॉन का सक्रिय होना है. न्यूट्रॉन गैर-रेडियोधर्मी सामग्री को रेडियोधर्मी बनने का कारण बन सकते हैं.

हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए बमबारी से कई लोगों को लगा कि परमाणु हथियार से लक्षित कोई भी शहर बंजर भूमि बन जाएगा.

हांलाकि परमाणु बम विस्फोटों का तात्कालिक परिणाम असंख्य हताहतों के साथ भयावह था मगर फिर भी हिरोशिमा और नागासाकी की आबादी ने अपने शहरों को बंजर भूमि नहीं बनने दिया.

लगभग 78 प्रतिशत लोग जो परमाणु बम के हमले के बाद जीवित बचे रहे उन्होंने उम्र बढ़ने के साथ पेश आ रही चुनौतियों और सीमाओं के बारे में बताया.

ये लोग मानते हैं कि कोरोनोवायरस का वैश्विक प्रकोप उन्हें परमाणु हथियारों के उन्मूलन को बढ़ावा देने से कुछ हद तक रोक रहा है.

बम विस्फोटों की भयानकता के बारे में लोगों को बताना और भी जरूरी हो गया है क्योंकि इसके प्रत्यक्ष गवाह संख्या में घट रहे हैं.

सर्वेक्षण के लिए तैयार की गई एक प्रश्नावली मई में लगभग 4,700 जीवित बचे लोगों को भेजी गई. 74 वर्ष की आयु के बीच 1661 लोगों से वैध प्रतिक्रियाएं मिलीं जो अपनी मां के गर्भ में विकिरण के संपर्क में थे.

कोरोनोवायरस महामारी ने अपने अनुभवों को साझा करने में बचे हुए लोगों की गतिविधियों को और अधिक बाधित किया है क्योंकि वरिष्ठ नागरिकों को इससे खतरा है. जिससे सेमिनार और बैठक रद्द कर दिए जाते हैं.

दुनिया का पहला परमाणु बम 6 अगस्त 1945 को हिरोशिमा पर गिरा और तीन दिन बाद नागासाकी पर एक और बम गिराया गया. वे उस वर्ष के अंत तक अनुमानित 214,000 लोगों की मृत्यु का कारण बने.

उत्तर-पूर्व जापान के शहर अओमोरी में एक 93 वर्षीय शोजी तनाका ने कहा कि बचे हुए लोग आखिरकार मर जाएंगे लेकिन हम अगली पीढ़ी को एक परमाणु हथियारों से मुक्त संसार देकर जाएंगे. मैं परमाणु हथियार प्रतिबंध संधि को प्रभावी रूप से देखना और इसपर बल देना चाहूंगा.

जापान जो अपनी सुरक्षा के लिए अमेरिकी परमाणु निरोध पर निर्भर है, ने भी इस पर हस्ताक्षर नहीं किया.

परमाणु हथियारों पर प्रतिबंध लगाने के लिए 2017 की संधि के बारे में पूछे जाने पर, जो कि ज्यादातर यू.एन. सदस्यों द्वारा समर्थन किया गया था केवल 45.2 प्रतिशत लोग ही मानते हैं कि यह हथियारों के उन्मूलन को बढ़ावा देगा.

जुलाई 2017 में परमाणु हथियारों के निषेध पर संधि को अपनाया गया था. लेकिन यह सुरक्षा परिषद के पांच सदस्यों यूके, चीन, फ्रांस, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका के द्वारा समर्थित नहीं था.

हैदराबादः हिरोशिमा - शांति के बारे में सोचने का स्थान, हिरोशिमा - शांति के लिए प्रतिबद्ध जगह, हिरोशिमा - भविष्य के बारे में सोचने के लिए एक जगह. इस जगह के बारे में यदि आंखें मूंदकर सोचा जाए तो एक क्षण में हम युद्द की विभीषका को महसूस कर सकते हैं. जैसा कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने महसूस किया. उन्होंने कहा....

  • हम इस शहर के बीचो-बीच खड़े हैं और उस समय बम गिरने से हुई त्रासदी की कल्पना करते हैं. हमें महसूस होता मासूम और भ्रमित हुए बच्चों को डर. हमें सुनाई देती हैं सिसकियां. हमें याद आते हैं वो मासूम जो इस तबाही में मारे गए. हमें इस तबाही से पहले और बाद में हुए युद्धों की भयावहता के बारे में विचार करना चाहिए. – बराक ओबामा

परमाणु युद्द की विभीषिका को समझने के बाद हम सभी एक ऐसे विश्व की कल्पना करना चाहेंगे जो परमाणु हथियारों से मुक्त हो और आने वाली पीढ़ियां डर के साए से दूर हंसता-खेलता स्वस्थ जीवन बिता सकें. क्या ऐसा संभव है. आइये विचार करते हैं.

कोविड महामारी के दौरान - हिरोशिमा और नागासाकी से सबक

जापानी रेड क्रॉस अस्पतालों ने आज भी हिरोशिमा और नागासाकी के 1945 बम विस्फोटों से विकिरण के कारण होने वाले कैंसर और पुरानी बीमारी के कई हजारों पीड़ितों का इलाज जारी रखा है.

परमाणु विस्फोट से पैदा हुई स्वास्थ्य समस्याएं फैल गई हैं. यह महामारी पर नियंत्रण पाने जैसा नहीं है. विकिरण कोई सीमा नहीं जानता है. परमाणु परीक्षणों से उत्पन्न रेडियोधर्मी समस्थानिक पूरे विश्व में वायुमंडल, महासागर और हमारे सभी निकायों में फैल गए हैं.

जलवायु अध्ययनों ने प्रदर्शित किया है कि जहां परमाणु युद्ध हुए उसके सीमित क्षेत्र में करीब सौ परमाणु हथियार (वैश्विक परमाणु शस्त्रों के एक प्रतिशत से भी कम) गिराए जाने जैसा प्रभाव वहां की जलवायु और खाद्य आपूर्ति पर होगा.

एक उदाहरण के तौर पर यदि भारत और पाकिस्तान के इलाकों में 100 हिरोशिमा के आकार के परमाणु हथियारों का उपयोग होता है तो सूरज की रोशनी और बारिश में कमी हो सकती है, जिससे दुनिया के मुख्य अनाज का उत्पादन बाधित किया जा सकता है, जो दुनिया भर में खाद्य श्रृंखला और वैश्विक अर्थव्यवस्था को अस्थिर कर सकता है. एक ट्रिगर वैश्विक अकाल पड़ सकता है जिसके कारण लाखों लोगों का जीवन समाप्त हो जाने की संभावना है.

महामारी और परमाणु युद्ध के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर है. हमारे पास पहले से ही परमाणु हथियार पर रोक लगाने का उपकरण है. इसे परमाणु हथियारों के निषेध पर संधि कहा जाता है और इसे 2017 में संयुक्त राष्ट्र में 122 देशों द्वारा अपनाया गया था.

आज 81 देशों ने इस पर हस्ताक्षर किए हैं और 36 ने इसकी पुष्टि की है. वर्ल्ड मेडिकल एसोसिएशन ने 2018 में TPNW का स्वागत किया और सभी राज्यों से, "चिकित्सकों के मिशन के रूप में" इसे तुरंत शामिल होने और इसे लागू करने के लिए कहा. वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ पब्लिक हेल्थ एसोसिएशंस, इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ नर्स और इंटरनेशनल रेड क्रॉस एंड रेड क्रीसेंट मूवमेंट ने भी यही किया.

स्वास्थ्य पेशेवरों का स्पष्ट कहना है कि परमाणु युद्ध के बाद प्राप्त हुई स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज हमारे पास कोई रास्ता नहीं है. हमारा एकमात्र समाधान युद्ध को रोकने के लिए एक वैश्विक समुदाय के रूप में एक साथ काम करना है. किसी भी देश के पास कोई भी परमाणु हथियार होने पर दूसरे देश भी अपने पास परमाणु हथियार रखने के लिए प्रेरित करते हैं. परमाणु हथियार रखने की होड़ समस्त मानव जाति को खतरे में डालती है.

डॉक्टर और नर्स वैश्विक स्वास्थ्य संकट का जवाब दे रहे हैं लेकिन जिम्मेदार देशों को सामूहिक वैश्विक कार्रवाई करते हुए परमाणु हथियारों के निषेध पर संधि में शामिल होना चाहिए.

क्या हिरोशिमा और नागासाकी वाकई परमाणु हमले के बाद उबर सके

बम विस्फोट होने के लगभग सत्तर साल बाद हमले के दौरान जीवित रहने वाली अधिकांश पीढ़ी का निधन हो गया है.

अब बचे हुए बच्चों की ओर अधिक ध्यान दिया गया है. उन व्यक्तियों के बारे में जो जन्म से पहले (गर्भाशय में) विकिरण के संपर्क में थे, जैसे कि 1994 में ई नकाशिमा के नेतृत्व में एक अध्ययन में पता चला है कि परमाणु हमलों की वजह से बच्चों के सिर का आकार छोटा हो गया और मानसिक विकलांगता के साथ-साथ शारीरिक विकास में भी कमजोरी आई.

हमले के समय बचे हुए बच्चों की तुलना में गर्भाशय में रहे व्यक्तियों में भी कैंसर के लक्षण मिले.

हिरोशिमा और नागासाकी पर हमलों के बाद तात्कालिक चिंताओं में से एक यह था कि बम विस्फोट के बाद जीवित बचे लोगों के बच्चों पर विकिरण का स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा.

हालांकि हिरोशिमा और नागासाकी की नई पीढ़ियों में ऐसी स्वास्थ्य समस्या नहीं देखी गई जिससे लोगों में एक नया विश्वास पैदा होता है ओलियंडर फूल की तरह जो अपने पिछले विनाश से उठते रहेंगे.

कुछ के बीच निराधार भय है कि हिरोशिमा और नागासाकी अभी भी रेडियोधर्मी हैं. वास्तव में यह सच नहीं है.

परमाणु विस्फोट के बाद अवशिष्ट रेडियोधर्मिता के दो रूप हैं. पहला परमाणु सामग्री विखंडन उत्पादों का पतन. इसमें से अधिकांश वायुमंडल में फैल गए थे या हवा से उड़ गए थे. हालांकि कुछ काली बारिश के रूप में शहर पर गिर गए थे.

आज रेडियोधर्मिता का स्तर इतना कम है कि इसे 1950 और 1960 के दशक में वायुमंडलीय परीक्षणों के परिणामस्वरूप दुनिया भर में मौजूद ट्रेस मात्रा से अलग किया जा सकता है.

विकिरण का दूसरा रूप न्यूट्रॉन का सक्रिय होना है. न्यूट्रॉन गैर-रेडियोधर्मी सामग्री को रेडियोधर्मी बनने का कारण बन सकते हैं.

हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए बमबारी से कई लोगों को लगा कि परमाणु हथियार से लक्षित कोई भी शहर बंजर भूमि बन जाएगा.

हांलाकि परमाणु बम विस्फोटों का तात्कालिक परिणाम असंख्य हताहतों के साथ भयावह था मगर फिर भी हिरोशिमा और नागासाकी की आबादी ने अपने शहरों को बंजर भूमि नहीं बनने दिया.

लगभग 78 प्रतिशत लोग जो परमाणु बम के हमले के बाद जीवित बचे रहे उन्होंने उम्र बढ़ने के साथ पेश आ रही चुनौतियों और सीमाओं के बारे में बताया.

ये लोग मानते हैं कि कोरोनोवायरस का वैश्विक प्रकोप उन्हें परमाणु हथियारों के उन्मूलन को बढ़ावा देने से कुछ हद तक रोक रहा है.

बम विस्फोटों की भयानकता के बारे में लोगों को बताना और भी जरूरी हो गया है क्योंकि इसके प्रत्यक्ष गवाह संख्या में घट रहे हैं.

सर्वेक्षण के लिए तैयार की गई एक प्रश्नावली मई में लगभग 4,700 जीवित बचे लोगों को भेजी गई. 74 वर्ष की आयु के बीच 1661 लोगों से वैध प्रतिक्रियाएं मिलीं जो अपनी मां के गर्भ में विकिरण के संपर्क में थे.

कोरोनोवायरस महामारी ने अपने अनुभवों को साझा करने में बचे हुए लोगों की गतिविधियों को और अधिक बाधित किया है क्योंकि वरिष्ठ नागरिकों को इससे खतरा है. जिससे सेमिनार और बैठक रद्द कर दिए जाते हैं.

दुनिया का पहला परमाणु बम 6 अगस्त 1945 को हिरोशिमा पर गिरा और तीन दिन बाद नागासाकी पर एक और बम गिराया गया. वे उस वर्ष के अंत तक अनुमानित 214,000 लोगों की मृत्यु का कारण बने.

उत्तर-पूर्व जापान के शहर अओमोरी में एक 93 वर्षीय शोजी तनाका ने कहा कि बचे हुए लोग आखिरकार मर जाएंगे लेकिन हम अगली पीढ़ी को एक परमाणु हथियारों से मुक्त संसार देकर जाएंगे. मैं परमाणु हथियार प्रतिबंध संधि को प्रभावी रूप से देखना और इसपर बल देना चाहूंगा.

जापान जो अपनी सुरक्षा के लिए अमेरिकी परमाणु निरोध पर निर्भर है, ने भी इस पर हस्ताक्षर नहीं किया.

परमाणु हथियारों पर प्रतिबंध लगाने के लिए 2017 की संधि के बारे में पूछे जाने पर, जो कि ज्यादातर यू.एन. सदस्यों द्वारा समर्थन किया गया था केवल 45.2 प्रतिशत लोग ही मानते हैं कि यह हथियारों के उन्मूलन को बढ़ावा देगा.

जुलाई 2017 में परमाणु हथियारों के निषेध पर संधि को अपनाया गया था. लेकिन यह सुरक्षा परिषद के पांच सदस्यों यूके, चीन, फ्रांस, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका के द्वारा समर्थित नहीं था.

Last Updated : Aug 6, 2020, 1:03 PM IST
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