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शी-बाइडन बैठक मैत्रीपूर्ण है, लेकिन क्या विश्व शक्तियों के बीच कुछ बदलाव आएगा ?

अमेरिका(US) और चीन के बीच शिखर(Summit) वार्ता की कूटनीति चलती रहती है लेकिन जो बाइडन और शी चिनफिंग की ताजा वार्ता के मुकाबले दोनों नेताओं के बीच और अधिक परिणामी बैठक नहीं होगी.

बीच कुछ बदलाव
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Published : Nov 17, 2021, 1:59 PM IST

मेलबर्न: अमेरिका और चीन के बीच शिखर वार्ता की कूटनीति चलती रहती है लेकिन जो बाइडन और शी चिनफिंग की ताजा वार्ता के मुकाबले दोनों नेताओं के बीच और अधिक परिणामी बैठक नहीं होगी. अगर कोई यह देखना चाहता है कि अमेरिका और चीन के बीच संबंधों में कितना बदलाव आया है तो उसे 1972 में रिचर्ड निक्सन और उस वक्त बीमार रहे माओ त्से तुंग के बीच चीनी क्रांति के बाद हुए पहले शिखर सम्मेलन को देखना होगा.

किसी ने यह अनुमान नहीं लगाया होगा कि एक पीढ़ी में ही दोनों देशों के बीच रणनीतिक प्रतिस्पर्धा होगी. न ही उन्होंने दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए आर्थिक रूप से चीन के इतना आगे बढ़ने का अंदाजा लगाया होगा. अमेरिका-चीन शिखर वार्ताओं की रूपरेखा 1972 में निक्सन और चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री चाउ एनलाई के बीच शंघाई घोषणा पर हस्ताक्षर के साथ तय की गयी थी. इसमें ‘एक-चीन’ नीति स्वीकार की गई और ताइवान के मुद्दे को किनारे कर दिया गया.

शी चिनफिंग के साथ ऑनलाइन बैठक में बाइडन ने अमेरिका की तरफ से 'एक चीन' नीति स्वीकार करने की बात दोहराई लेकिन साथ ही वाशिंगटन के इस रुख को भी दोहराया कि ताइवान जलडमरूमध्य में यथास्थिति बलपूर्वक नहीं बदली जाए. अभी अमेरिका-चीन संबंधों को नए सिरे से तय करने के बारे में बात करना बहुत जल्दबाजी होगी लेकिन एक तर्कसंगत निष्कर्ष यह है कि ट्रंप के अस्तव्यस्त प्रशासन के बाद बाइडन और शी कम से कम संबंधों को पटरी पर ला पाए हैं.

साढ़े तीन घंटे से अधिक समय तक चली बैठक पर दोनों पक्षों की टिप्पणियों से यह संकेत मिलता है कि काफी मुद्दों पर चर्चा की गयी. दोनों देशों ने संवाद जारी रखने की जरूरत पर जोर दिया. व्हाइट हाउस की एक विज्ञप्ति के अनुसार,'राष्ट्रपति बाइडन ने इस पर जोर दिया कि अमेरिका अपने हितों और मूल्यों के लिए खड़ा रहेगा. साथ ही अपने सहयोगियों एवं साझेदारों के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करेगा कि 21वीं सदी के लिए आगे बढ़ने के नियम एक अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था पर आधारित हों जो स्वतंत्र, मुक्त और निष्पक्ष हो.'

ऑस्ट्रेलिया की नजर से कैनबरा और बीजिंग के बीच खराब संबंधों को देखते हुए 'सहयोगियों और साझेदारों' के लिए समर्थन की यह अभिव्यक्ति स्वागत योग्य होगी. बाइडन ने संभावित टकरावों से बचने के लिए वृहद सहयोग का भी आह्वान किया.'राष्ट्रपति बाइडन ने रणनीतिक जोखिमों के प्रबंधन के महत्व पर भी जोर दिया. उन्होंने यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया कि प्रतिस्पर्धा संघर्ष में न बदले.' चीन ने विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग के जरिए बयान दिया, जिसमें कहा गया है कि बैठक 'व्यापक, गहन, स्पष्ट, सार्थक, ठोस और रचनात्मक' रही.

ये भी पढ़ें- चीन के आंतरिक मामले में दखल बर्दाशत नहीं : जिनपिंग

चीन की सरकारी मीडिया ने शी के हवाले से बातचीत को 'नया युग' बताया कि जिसमें 'परस्पर सम्मान, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और दोनों के फायदे पर आधारित परस्पर सहयोग के सिद्धांतों का पालन किया जाना चाहिए.' बाइडन और शी के बयानों से और बातचीत के जरिए संबंधों में सुधार लाने की इच्छा का संकेत मिलता है. बैठक शुरू होने से पहले बाइडन की टिप्पणियों से यह पता चलता है कि वह कम युद्धक संबंध स्थापित करने के इच्छुक हैं। उन्होंने कहा, 'चीन और अमेरिका के नेता होने के नाते यह हमारी जिम्मेदारी प्रतीत होती है कि हमारे देशों के बीच प्रतिस्पर्धा जान-बूझ कर या अनजाने में संघर्ष में न बदले बल्कि सामान्य स्पष्ट प्रतिस्पर्धा हो.'

शी ने बाइडन को 'पुराना मित्र' बताया और ‘श्रीमान राष्ट्रपति, आप के साथ मिलकर काम करने, आम सहमति बनाने, सक्रिय कदम उठाने और चीन-अमेरिका संबंधों को सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ाने' की इच्छा जतायी.
एक जटिल विश्व में, जिसमें अमेरिका और चीन दोनों घरेलू रूप से बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहे है ऐसे में रिश्तों को उलझाना दोनों में से किसी के भी हित में नहीं है. हाल के सीओपी26 जलवायु शिखर सम्मेलन में अमेरिका और चीन के बीच जलवायु लक्ष्यों की ओर रचनात्मक रूप से काम करने के लिए समझौता एक तहत की भागीदारी का उदाहरण है जिसमें एक-दूसरे के हित साधे जा सकते हैं.
दोनों देशों के बीच संबंधों में बदलाव के बारे में अभी कुछ कहा नहीं जा सकता.

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अमेरिका और उसके मित्रों के लिए सबसे चिंताजनक बात चीन के लगातार सैन्य ढांचों का निर्माण करने का मुद्दा है. इसमें उसका परमाणु शस्त्रागार और अंतरिक्ष में जाने में सक्षम हाइपरसोनिक मिसाइलों का विकास करना शामिल है जिससे हिंद-प्रशांत में अमेरिकी सेना के वर्चस्व को गंभीर खतरा पहुंचेगा. ऐसी कई वजहें हैं कि संबंध कम विवादास्पद क्यों हो सकते हैं. लेकिन साथ ही ऐसे कई तर्क भी हैं कि क्यों गहरे और बढ़ते मतभेद ऐसे हैं कि बिगड़ते संबंधों की आशंका बनी हुई है.
(पीटीआई-भाषा)

मेलबर्न: अमेरिका और चीन के बीच शिखर वार्ता की कूटनीति चलती रहती है लेकिन जो बाइडन और शी चिनफिंग की ताजा वार्ता के मुकाबले दोनों नेताओं के बीच और अधिक परिणामी बैठक नहीं होगी. अगर कोई यह देखना चाहता है कि अमेरिका और चीन के बीच संबंधों में कितना बदलाव आया है तो उसे 1972 में रिचर्ड निक्सन और उस वक्त बीमार रहे माओ त्से तुंग के बीच चीनी क्रांति के बाद हुए पहले शिखर सम्मेलन को देखना होगा.

किसी ने यह अनुमान नहीं लगाया होगा कि एक पीढ़ी में ही दोनों देशों के बीच रणनीतिक प्रतिस्पर्धा होगी. न ही उन्होंने दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए आर्थिक रूप से चीन के इतना आगे बढ़ने का अंदाजा लगाया होगा. अमेरिका-चीन शिखर वार्ताओं की रूपरेखा 1972 में निक्सन और चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री चाउ एनलाई के बीच शंघाई घोषणा पर हस्ताक्षर के साथ तय की गयी थी. इसमें ‘एक-चीन’ नीति स्वीकार की गई और ताइवान के मुद्दे को किनारे कर दिया गया.

शी चिनफिंग के साथ ऑनलाइन बैठक में बाइडन ने अमेरिका की तरफ से 'एक चीन' नीति स्वीकार करने की बात दोहराई लेकिन साथ ही वाशिंगटन के इस रुख को भी दोहराया कि ताइवान जलडमरूमध्य में यथास्थिति बलपूर्वक नहीं बदली जाए. अभी अमेरिका-चीन संबंधों को नए सिरे से तय करने के बारे में बात करना बहुत जल्दबाजी होगी लेकिन एक तर्कसंगत निष्कर्ष यह है कि ट्रंप के अस्तव्यस्त प्रशासन के बाद बाइडन और शी कम से कम संबंधों को पटरी पर ला पाए हैं.

साढ़े तीन घंटे से अधिक समय तक चली बैठक पर दोनों पक्षों की टिप्पणियों से यह संकेत मिलता है कि काफी मुद्दों पर चर्चा की गयी. दोनों देशों ने संवाद जारी रखने की जरूरत पर जोर दिया. व्हाइट हाउस की एक विज्ञप्ति के अनुसार,'राष्ट्रपति बाइडन ने इस पर जोर दिया कि अमेरिका अपने हितों और मूल्यों के लिए खड़ा रहेगा. साथ ही अपने सहयोगियों एवं साझेदारों के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करेगा कि 21वीं सदी के लिए आगे बढ़ने के नियम एक अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था पर आधारित हों जो स्वतंत्र, मुक्त और निष्पक्ष हो.'

ऑस्ट्रेलिया की नजर से कैनबरा और बीजिंग के बीच खराब संबंधों को देखते हुए 'सहयोगियों और साझेदारों' के लिए समर्थन की यह अभिव्यक्ति स्वागत योग्य होगी. बाइडन ने संभावित टकरावों से बचने के लिए वृहद सहयोग का भी आह्वान किया.'राष्ट्रपति बाइडन ने रणनीतिक जोखिमों के प्रबंधन के महत्व पर भी जोर दिया. उन्होंने यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया कि प्रतिस्पर्धा संघर्ष में न बदले.' चीन ने विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग के जरिए बयान दिया, जिसमें कहा गया है कि बैठक 'व्यापक, गहन, स्पष्ट, सार्थक, ठोस और रचनात्मक' रही.

ये भी पढ़ें- चीन के आंतरिक मामले में दखल बर्दाशत नहीं : जिनपिंग

चीन की सरकारी मीडिया ने शी के हवाले से बातचीत को 'नया युग' बताया कि जिसमें 'परस्पर सम्मान, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और दोनों के फायदे पर आधारित परस्पर सहयोग के सिद्धांतों का पालन किया जाना चाहिए.' बाइडन और शी के बयानों से और बातचीत के जरिए संबंधों में सुधार लाने की इच्छा का संकेत मिलता है. बैठक शुरू होने से पहले बाइडन की टिप्पणियों से यह पता चलता है कि वह कम युद्धक संबंध स्थापित करने के इच्छुक हैं। उन्होंने कहा, 'चीन और अमेरिका के नेता होने के नाते यह हमारी जिम्मेदारी प्रतीत होती है कि हमारे देशों के बीच प्रतिस्पर्धा जान-बूझ कर या अनजाने में संघर्ष में न बदले बल्कि सामान्य स्पष्ट प्रतिस्पर्धा हो.'

शी ने बाइडन को 'पुराना मित्र' बताया और ‘श्रीमान राष्ट्रपति, आप के साथ मिलकर काम करने, आम सहमति बनाने, सक्रिय कदम उठाने और चीन-अमेरिका संबंधों को सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ाने' की इच्छा जतायी.
एक जटिल विश्व में, जिसमें अमेरिका और चीन दोनों घरेलू रूप से बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहे है ऐसे में रिश्तों को उलझाना दोनों में से किसी के भी हित में नहीं है. हाल के सीओपी26 जलवायु शिखर सम्मेलन में अमेरिका और चीन के बीच जलवायु लक्ष्यों की ओर रचनात्मक रूप से काम करने के लिए समझौता एक तहत की भागीदारी का उदाहरण है जिसमें एक-दूसरे के हित साधे जा सकते हैं.
दोनों देशों के बीच संबंधों में बदलाव के बारे में अभी कुछ कहा नहीं जा सकता.

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अमेरिका और उसके मित्रों के लिए सबसे चिंताजनक बात चीन के लगातार सैन्य ढांचों का निर्माण करने का मुद्दा है. इसमें उसका परमाणु शस्त्रागार और अंतरिक्ष में जाने में सक्षम हाइपरसोनिक मिसाइलों का विकास करना शामिल है जिससे हिंद-प्रशांत में अमेरिकी सेना के वर्चस्व को गंभीर खतरा पहुंचेगा. ऐसी कई वजहें हैं कि संबंध कम विवादास्पद क्यों हो सकते हैं. लेकिन साथ ही ऐसे कई तर्क भी हैं कि क्यों गहरे और बढ़ते मतभेद ऐसे हैं कि बिगड़ते संबंधों की आशंका बनी हुई है.
(पीटीआई-भाषा)

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