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अफगानिस्तान में अमेरिकी जंग रणनीतिक विफलता : शीर्ष अमेरिकी जनरल

अमेरिका के शीर्ष जनरल ने अफगानिस्तान में 20 साल के युद्ध को रणनीतिक विफलता करार दिया है. ज्ञात हो कि अमेरिकी सेना के अफगानिस्तान छोड़ने की घोषणा के बाद तालिबान ने बेहद कम समय में अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था.

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Published : Sep 29, 2021, 8:35 PM IST

वाशिंगटन : अमेरिका के शीर्ष जनरल ने अफगानिस्तान में 20 साल के युद्ध को रणनीतिक विफलता करार दिया है. पेंटागन के अधिकारियों ने सांसदों से कहा है कि उन्होंने काबुल में पश्चिमी देशों के समर्थन वाली सरकार को गिरने से बचाने के लिए अफगानिस्तान में 2500 सैनिकों को रोकने की सिफारिश की थी लेकिन राष्ट्रपति जो बाइडन ने इसे खारिज कर दिया.

हालांकि व्हाइट हाउस ने राष्ट्रपति के फैसले का बचाव करते हुए कहा कि बाइडेन के सलाहकारों और सैन्य अधिकारियों की अलग-अलग सिफारिशें थीं. अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन अमेरिकी ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ के अध्यक्ष जनरल मार्क मिले और अमेरिकी केंद्रीय कमान के कमांडर, जनरल फ्रेंक मैककेंजी ने मंगलवार को सीनेट की सशस्त्र समिति के सदस्यों से कहा कि पेंटागन ने बाइडन से सिफारिश की थी कि अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी के बाद वहां 2500 अमेरिकी सैनिकों को रखा जाए.

मैककेंजी ने सीनेटरों से कहा कि मैं राष्ट्रपति से की गई अपनी व्यक्तिगत सिफारिश साझा नहीं करूंगा लेकिन मैं आपको अपनी ईमानदार राय दूंगा और मेरी ईमानदार राय और दृष्टिकोण ने मेरी सिफारिश को आकार दिया. मैंने सिफारिश की थी कि हम अफगानिस्तान में 2500 सैनिक बनाए रखें और मैंने पहले भी 2020 में सिफारिश की थी कि हम उस समय 4500 सैनिक बनाए रखें. ये मेरे निजी विचार हैं.

मिले ने सांसदों को बताया कि वह भी अफगानिस्तान में 2500 सैनिकों को रखने की सिफारिश से सहमत थे. उन्होंने कहा कि इस तरह की जंग का यह परिणाम रणनीतिक विफलता है. काबुल में हमारे दुश्मन का नियंत्रण है. इस बात को बयां करने का और कोई तरीका नहीं है. यह 20 साल का असर है. मिले ने कहा कि सबक सीखने की जरूरत है. तालिबान ने अगस्त महीने के मध्य में अफगानिस्तान पर अपना कब्जा कर लिया था और पश्चिमी देशों के समर्थन वाली पिछली सरकार को हटना पड़ा.

उन्होंने कहा कि मैं राष्ट्रपति को दी गई अपनी सलाह को हमेशा गोपनीय रखूंगा लेकिन मैं इस बात से पूरी तरह संतुष्ट हूं कि हम नीति की पूरी तरह समीक्षा करें और मेरा मानना है कि सभी पक्षों के पास सुझाव देने का अवसर है. राष्ट्रपति के निर्णय का बचाव करते हुए व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव जेन साकी ने संवाददाताओं से कहा कि अनेक दृष्टिकोण हैं. जैसा कि उनकी गवाही में देखा गया. उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति ने पूरी तरह सुस्पष्ट सिफारिशों के लिए कहा था, ना कि घुमा-फिराकर.

इस बीच सीनेटर जैक रीड ने अफगानिस्तान पर कांग्रेस की बहस के दौरान मंगलवार को कहा कि अमेरिकी सेना की वापसी और उसके आसपास की घटनाएं बाहरी प्रभावों से अलग नहीं थीं. इराक में जो कुछ हमारे साथ हुआ, तालिबान के लिए पाकिस्तान के समर्थन से निपटने में हमारी नाकामी और पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा किए गए त्रुटिपूर्ण दोहा समझौते ने अफगानिस्तान में हमारी असफलता की राह बनाई.

सीनेट की सशस्त्र सेवा समिति के सदस्य सीनेटर जिम इनहोफ ने कहा कि अफगान सरकार का नेतृत्व अब आतंकवादी कर रहे हैं जिनका लंबे समय से अल-कायदा से संबंध रहा है. उन्होंने कहा कि और हम अफगानिस्तान हवाई क्षेत्र में प्रवेश के लिए पाकिस्तान सरकार की दया पर निर्भर हैं. अगर हम वहां प्रवेश भी कर लें तो हम अफगानिस्तान में अल-कायदा पर हमला नहीं कर सकते क्योंकि हमें चिंता है कि तालिबान वहां मौजूद अमेरिकियों के साथ क्या करेगा.

उन्होंने कहा कि प्रशासन को ईमानदार होना चाहिए. राष्ट्रपति जो बाइडेन के विनाशकारी फैसले के कारण अमेरिकी परिवारों पर आतंकवादी खतरा बढ़ रहा है और इन खतरों से निपटने की हमारी क्षमता खत्म हो गई है. सुनवाई के दौरान सीनेटर रीड ने कहा कि युद्ध के दौरान अमेरिका, तालिबान को पाकिस्तान से मिल रहे समर्थन से निपटने मे नाकाम रहा, यहां तक कि अमेरिकी राजनयिकों ने पाकिस्तानी नेताओं के साथ मुलाकात की और उसकी सेना ने आतंकवाद रोधी अभियान में सहयोग दिया.

उन्होंने कहा कि तालिबान ने फिर से संगठित होने के लिए पाकिस्तान में पनाह ली. हाल में बढ़ी तालिबान की उग्रता को दोहा समझौते से जोड़ा जा सकता है जिस पर 2020 में तत्कालीन राष्ट्रपति ट्रंप ने हस्ताक्षर किए थे.

यह भी पढ़ें-तालिबान सरकार को मदद देने में मुश्किलों का सामना कर रहा पाकिस्तान

रीड ने कहा कि यह समझौता पूर्व ट्रंप प्रशासन और तालिबान ने हमारे गठबंधन सहयोगियों और यहां तक कि अफगान सरकार की अनुपस्थिति में किया, जिसमें अफगानिस्तान में पूरी तरह अंतरराष्ट्रीय मौजूदगी समाप्त करने का वादा किया गया. सीनेटर इनहोफ ने कहा कि अमेरिका का अब अफगानिस्तान में कोई विश्वसनीय सहयोगी नहीं है.

(पीटीआई-भाषा)

वाशिंगटन : अमेरिका के शीर्ष जनरल ने अफगानिस्तान में 20 साल के युद्ध को रणनीतिक विफलता करार दिया है. पेंटागन के अधिकारियों ने सांसदों से कहा है कि उन्होंने काबुल में पश्चिमी देशों के समर्थन वाली सरकार को गिरने से बचाने के लिए अफगानिस्तान में 2500 सैनिकों को रोकने की सिफारिश की थी लेकिन राष्ट्रपति जो बाइडन ने इसे खारिज कर दिया.

हालांकि व्हाइट हाउस ने राष्ट्रपति के फैसले का बचाव करते हुए कहा कि बाइडेन के सलाहकारों और सैन्य अधिकारियों की अलग-अलग सिफारिशें थीं. अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन अमेरिकी ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टाफ के अध्यक्ष जनरल मार्क मिले और अमेरिकी केंद्रीय कमान के कमांडर, जनरल फ्रेंक मैककेंजी ने मंगलवार को सीनेट की सशस्त्र समिति के सदस्यों से कहा कि पेंटागन ने बाइडन से सिफारिश की थी कि अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी के बाद वहां 2500 अमेरिकी सैनिकों को रखा जाए.

मैककेंजी ने सीनेटरों से कहा कि मैं राष्ट्रपति से की गई अपनी व्यक्तिगत सिफारिश साझा नहीं करूंगा लेकिन मैं आपको अपनी ईमानदार राय दूंगा और मेरी ईमानदार राय और दृष्टिकोण ने मेरी सिफारिश को आकार दिया. मैंने सिफारिश की थी कि हम अफगानिस्तान में 2500 सैनिक बनाए रखें और मैंने पहले भी 2020 में सिफारिश की थी कि हम उस समय 4500 सैनिक बनाए रखें. ये मेरे निजी विचार हैं.

मिले ने सांसदों को बताया कि वह भी अफगानिस्तान में 2500 सैनिकों को रखने की सिफारिश से सहमत थे. उन्होंने कहा कि इस तरह की जंग का यह परिणाम रणनीतिक विफलता है. काबुल में हमारे दुश्मन का नियंत्रण है. इस बात को बयां करने का और कोई तरीका नहीं है. यह 20 साल का असर है. मिले ने कहा कि सबक सीखने की जरूरत है. तालिबान ने अगस्त महीने के मध्य में अफगानिस्तान पर अपना कब्जा कर लिया था और पश्चिमी देशों के समर्थन वाली पिछली सरकार को हटना पड़ा.

उन्होंने कहा कि मैं राष्ट्रपति को दी गई अपनी सलाह को हमेशा गोपनीय रखूंगा लेकिन मैं इस बात से पूरी तरह संतुष्ट हूं कि हम नीति की पूरी तरह समीक्षा करें और मेरा मानना है कि सभी पक्षों के पास सुझाव देने का अवसर है. राष्ट्रपति के निर्णय का बचाव करते हुए व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव जेन साकी ने संवाददाताओं से कहा कि अनेक दृष्टिकोण हैं. जैसा कि उनकी गवाही में देखा गया. उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति ने पूरी तरह सुस्पष्ट सिफारिशों के लिए कहा था, ना कि घुमा-फिराकर.

इस बीच सीनेटर जैक रीड ने अफगानिस्तान पर कांग्रेस की बहस के दौरान मंगलवार को कहा कि अमेरिकी सेना की वापसी और उसके आसपास की घटनाएं बाहरी प्रभावों से अलग नहीं थीं. इराक में जो कुछ हमारे साथ हुआ, तालिबान के लिए पाकिस्तान के समर्थन से निपटने में हमारी नाकामी और पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा किए गए त्रुटिपूर्ण दोहा समझौते ने अफगानिस्तान में हमारी असफलता की राह बनाई.

सीनेट की सशस्त्र सेवा समिति के सदस्य सीनेटर जिम इनहोफ ने कहा कि अफगान सरकार का नेतृत्व अब आतंकवादी कर रहे हैं जिनका लंबे समय से अल-कायदा से संबंध रहा है. उन्होंने कहा कि और हम अफगानिस्तान हवाई क्षेत्र में प्रवेश के लिए पाकिस्तान सरकार की दया पर निर्भर हैं. अगर हम वहां प्रवेश भी कर लें तो हम अफगानिस्तान में अल-कायदा पर हमला नहीं कर सकते क्योंकि हमें चिंता है कि तालिबान वहां मौजूद अमेरिकियों के साथ क्या करेगा.

उन्होंने कहा कि प्रशासन को ईमानदार होना चाहिए. राष्ट्रपति जो बाइडेन के विनाशकारी फैसले के कारण अमेरिकी परिवारों पर आतंकवादी खतरा बढ़ रहा है और इन खतरों से निपटने की हमारी क्षमता खत्म हो गई है. सुनवाई के दौरान सीनेटर रीड ने कहा कि युद्ध के दौरान अमेरिका, तालिबान को पाकिस्तान से मिल रहे समर्थन से निपटने मे नाकाम रहा, यहां तक कि अमेरिकी राजनयिकों ने पाकिस्तानी नेताओं के साथ मुलाकात की और उसकी सेना ने आतंकवाद रोधी अभियान में सहयोग दिया.

उन्होंने कहा कि तालिबान ने फिर से संगठित होने के लिए पाकिस्तान में पनाह ली. हाल में बढ़ी तालिबान की उग्रता को दोहा समझौते से जोड़ा जा सकता है जिस पर 2020 में तत्कालीन राष्ट्रपति ट्रंप ने हस्ताक्षर किए थे.

यह भी पढ़ें-तालिबान सरकार को मदद देने में मुश्किलों का सामना कर रहा पाकिस्तान

रीड ने कहा कि यह समझौता पूर्व ट्रंप प्रशासन और तालिबान ने हमारे गठबंधन सहयोगियों और यहां तक कि अफगान सरकार की अनुपस्थिति में किया, जिसमें अफगानिस्तान में पूरी तरह अंतरराष्ट्रीय मौजूदगी समाप्त करने का वादा किया गया. सीनेटर इनहोफ ने कहा कि अमेरिका का अब अफगानिस्तान में कोई विश्वसनीय सहयोगी नहीं है.

(पीटीआई-भाषा)

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