वाशिंगटन : अमेरिका के एक शीर्ष भारतीय-अमेरिकी सांसद ने कहा है कि भारत को सीमा क्षेत्र में रक्षा ढांचा निर्माण से रोकने के लिए चीन आक्रामक रुख अपना रहा है क्योंकि इस निर्माण के बिना बीजिंग को वहां रणनीतिक बढ़त हासिल होती है.
भारतीय सेना और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के बीच मई की शुरुआत से पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) से लगे कई इलाकों में गतिरोध जारी है.
भारतीय-अमेरिकी सांसद राजा कृष्णमूर्ति ने एक साक्षात्कार में कहा यह एक गंभीर स्थिति है. मुख्य तौर पर यह तब शुरू हुआ जब भारत सरकार ने चीन से लगते सीमा क्षेत्र में पूरी तरह से अपने इलााके में रक्षा तंत्र की मजबूती के लिए ढांचागत निर्माण किया. चीन को प्रत्यक्ष तौर पर यह बुरा लगा और उसने इसके बाद गलवान क्षेत्र में बेहद उकसावे वाला कदम उठाया.
कृष्णमूर्ति को लगातार तीसरी बार इलिनोइस से प्रतिनिधि सभा में निर्वाचन की उम्मीद है. वह खुफिया विषय पर सदन की स्थायी प्रवर समिति में शामिल पहले और एकमात्र भारतीय-अमेरिकी सांसद हैं.
भारत के खिलाफ चीनी आक्रामकता और सीमा पर स्थिति को लेकर पिछले सप्ताह इस समिति को गुप्त जानकारी उपलब्ध कराई गई.
कृष्णमूर्ति ने उस जानकारी के बारे में विस्तृत रूप से बताने से इनकार किया लेकिन उन्होंने चीन के कदमों पर चिंता जताई है.
उन्होंने कहा विडंबना यह है कि चीन सीमा क्षेत्र में अपनी तरफ पहले ही ढांचागत निर्माण कार्य पूरा कर चुका है और इसलिए मैं इस बारे में बहुत चिंतित हूं कि चीन सीमा विवाद या तनाव से जुड़े वैसे ही कदम उठा रहा है जैसा कि वह ताइवान, जापान, वियतनाम और दक्षिण चीन सागर में फिलीपीन के साथ कर चुका है.
गलवान घाटी में 15 जून को चीनी सैनिकों के साथ झड़प में 20 भारतीय सैनिकों के शहीद होने के बाद पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव काफी बढ़ चुका है. इस झड़प में चीनी पक्ष के जवान भी मारे गए थे लेकिन चीन ने इस बारे में विस्तृत जानकारी जाहिर नहीं की थी.
कृष्णमूर्ति ने कहा कि चीन अच्छे पड़ोसी की तरह व्यवहार नहीं कर रहा है. यह समय चीन के पड़ोसियों के लिए आपस में हाथ मिलाने का है.
उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र के देशों और अन्य के आपसी गठजोड़ से यह स्पष्ट करने की जरूरत है कि जब आपसी विवादों को सुलझाने के लिए हमेशा ही कूटनीतिक दरवाजे का इस्तेमाल होना चाहिए तो चीन सरकार अपने रास्ते बनाने के लिए सैन्य कदम नहीं अपना सकती है.
कृष्णमूर्ति ने कहा कि चीन के पड़ोसी देश तेजी से इस पर बातचीत कर रहे हैं कि कैसे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के हिसाब से नियम बनाए जाएं.
उन्होंने कहा अमेरिका, भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अन्य इस पर चर्चा करने के लिए साथ आए हैं कि कैसे आक्रामकता और सैन्य कदम से बचा जाए क्योंकि इससे क्षेत्र में अस्थिरता पैदा हो सकती है.
चीन द्वारा भारत को रक्षा ढांचागत निर्माण से रोके जाने पर उन्होंने कहा कि बीजिंग इस क्षेत्र में हासिल रणनीतिक बढ़त को छोड़ना नहीं चाहता है.
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उन्होंने अमेरिका और भारत के बीच गहरे संबंध का उल्लेख करते हुए कहा कि अमेरिका को यह स्पष्ट करना चाहिए कि अगर कोई अंतरराष्ट्रीय नियम या समझौते का उल्लंघन करेगा तो अमेरिका इन नियमों का पालन करने वाले देश के साथ खड़ा होगा, जैसा कि भारत इस मामले में अंतरराष्ट्रीय समझौतों के साथ है.
कृष्णमूर्ति ने चीन के खिलाफ और भारत के समर्थन में एक द्विदलीय प्रस्ताव पेश किया. यह प्रस्ताव राष्ट्रीय रक्षा प्राधिकरण अधिनियम में संशोधन की शक्ल में है, जिसे सदन में बड़े समर्थन के साथ पारित किया गया.
उन्होंने कहा कि यह बहुत जरूरी है कि इस मुद्दे को जल्द से जल्द कूटनीतिक तरीके से हल किया जाए.