संयुक्त राष्ट्र : बच्चों को संरक्षित रखने की स्थापित रणनीतियों का पालन करने में लगभग सभी देशों के विफल रहने की वजह से दुनियाभर के आधे से ज्यादा बच्चे यानि एक अरब बच्चे हर साल शारीरिक, यौन एवं मनोवैज्ञानिक हिंसा से प्रभावित होते हैं, घायल होते हैं और मारे जाते हैं. संयुक्त राष्ट्र की अपनी तरह की पहली रिपोर्ट में यह बात कही गई है.
विशेषज्ञों ने इस रिपोर्ट में रेखांकित किया है कि कोरोना वायरस के चलते विभिन्न देशों में लगाए गए लॉकडाउन की वजह से ढेर सारे बच्चों को अपने साथ दुर्व्यवहार करने वालों के साथ लगातार रहने पर मजबूर होना पड़ा.
बृहस्पतिवार को जारी की गई बच्चों के खिलाफ हिंसा को रोकने पर वैश्विक स्थिति रिपोर्ट 2020 में कहा गया कि लगभग सभी देशों (88 प्रतिशत) में नाबालिगों के संरक्षण के लिए कानून हैं लेकिन आधे से भी कम (47 प्रतिशत) ने माना है कि वे सख्ती से इनको लागू करते हैं.
इसमें कहा गया कि बच्चों के संरक्षण के लिए स्थापित रणनीतियों को पालन करने में देश विफल रहे हैं इसलिए हर साल करीब एक अरब बच्चे शारीरिक, यौन या मनोवैज्ञानिक हिंसा का शिकार होते हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के महानिदेशक तेदरोस अधानोम गेब्रेयसस ने कहा कि बच्चों के खिलाफ होने वाली हिंसा के लिए कोई बहाना नहीं बनाया जा सकता है.
उन्होंने कहा कि हमारे पास इसे रोकने के लिए साक्ष्य आधारित माध्यम हैं जिसे लागू करने की हम सभी देशों से अपील करते हैं. बच्चों के स्वास्थ्य एवं कुशलता की रक्षा करना हम सबके स्वास्थ्य एवं कुशलता की रक्षा करने के लिए महत्त्वपूर्ण है, अभी के लिए और भविष्य के लिए भी.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएओ), यूनिसेफ, यूनेस्को, बच्चों के खिलाफ हिंसा पर संयुक्त राष्ट्र महासतिव के विशेष प्रतिनिधि और 'एंड वॉयलेंस पार्टनरशिप' द्वारा जारी इस रिपोर्ट में बच्चों के खिलाफ हिंसा को रोकने एवं उसके खिलाफ प्रतिक्रिया देने के लिए तैयार की गई सात रणनीतियों के संग्रह, 'इंस्पायर' खाका के संबंध में 155 देशों की प्रगति को अंकित किया गया है.
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रिपोर्ट में सभी देशों को इन रणनीतियों को लागू करने के प्रयास तेज करने की जरूरत का स्पष्ट संकेत दिया गया है. इसमें पहली बार 18 साल से कम उम्र के बच्चों के नरसंहार को लेकर वैश्विक अनुमान दर्शाया गया है.
यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनरीटा फोर ने कहा कि बच्चों के खिलाफ हिंसा हमेशा व्यापक स्तर पर होती रही है लेकिन अब स्थितियां और बिगड़ रही हैं.
उन्होंने कहा कि लॉकडाउन, स्कूलों के बंद होने और आवाजाही पर प्रतिबंध के चलते कई बच्चे उनसे दुर्व्यवहार करने वालों के साथ फंस गए हैं क्योंकि उनके पास वह सुरक्षित स्थान नहीं हैं जो सामान्य तौर पर स्कूल उपलब्ध कराते हैं.