नई दिल्ली : अमेरिका के ट्रंप प्रशासन ने सोमवार को घोषणा की है कि उन विदेशी छात्रों को देश छोड़ना होगा या निर्वासित होने के खतरे का सामना करना होगा जिनके विश्वविद्यालय कोरोना वायरस की महामारी के चलते इस सेमेस्टर पूर्ण रूप से ऑनलाइन कक्षाएं संचालित करेंगे. इस कदम से सैकड़ों-हजारों भारतीय छात्र प्रभावित होंगे.
अमेरिकी विदेश मंत्रालय उन छात्रों के लिए वीजा जारी नहीं करेगा जिनके स्कूल आगामी सेमेस्टर में पूरी तरह ऑनलाइन कक्षाएं आयोजित कर रहे हैं. अमेरिकी सीमा शुल्क एवं सीमा सुरक्षा विभाग इन छात्रों को अमेरिका में दाखिल होने की अनुमति भी नहीं देगा. ट्रंप प्रशासन ने स्टूडेंट एंड एक्सचेंज विजिटर प्रोग्राम (एसईवीआईपी) के लिए एफ-1 वीजा में भी अस्थाई संशोधन करने की घोषणा की है.
अमेरिकी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में पढ़ाई करने वाले विदेशी छात्र एफ-1 वीजा पर यहां आते हैं. वहीं, अमेरिका में वोकेशनल या अन्य मान्यता प्राप्त गैर-शैक्षणिक संस्थानों में तकनीकी कार्यक्रमों में दाखिला लेने वाले छात्र (भाषा प्रशिक्षण कार्यक्रम से इतर) एम-1 वीजा पर यहां आते हैं.
ट्रंप प्रशासन के इस फैसले से तकरीबन 200,000 भारतीय छात्रों पर गलत प्रभाव पड़ने की आशंका है. क्योंकि यदि अमेरिकी विश्वविद्यालय इन छात्रों को कैंपस कोर्स के लिए नहीं बुलाते हैं तो यह सभी छात्र अमेरिका छोड़ने पर मजूबर हो सकते हैं.
हालांकि, न्यूयॉर्क की स्टोनी ब्रूक यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ जर्नलिज्म में डिजिटल इनोवेशन के विजिटिंग प्रोफेसर श्रीनिवासन को अधिक स्पष्टता के लिए विस्तृत दिशा-निर्देशों का इंतजार है, लेकिन उन्हें लगता है कि यह अराजकता जानबूझकर की गई है और डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अपनाई गई नस्लवादी आव्रजन नीतियों का हिस्सा है.
श्रीनिवासन का तर्क है कि छात्र वीज़ा, एच-1 बी और एल-1 वीजा विनाशकारी परिवर्तनों के माध्यम से ट्रंप अपने रूढ़िवादी मतदाताओं को रिझाने का प्रयास कर रहे हैं.
वरिष्ठ पत्रकार स्मिता शर्मा से न्यूयॉर्क से बात करते हुए श्रीनिवासन ने रेखांकित किया कि आव्रजन परिवर्तन भारत-अमेरिकी समुदाय के लिए चेतावनी है जो एक सजातीय वोट बैंक नहीं है, लेकिन कई लोगों ने ट्रंप को एक हानिरहित उम्मीदवार माना है.
सवाल- क्या अमेरिका भारत के F-1 वीजा को निष्प्रभावी कर सकता है. क्या सक्रिय छात्रों को अमेरिका छोड़ना होगा, अगर उनका कैंपस पूरी तरह से सेमेस्टर के लिए ऑनलाइन है?
जवाब- यह बड़ी अराजकता का क्षण है. यही ट्रंप प्रशासन करता है. अराजकता उनकी मुख्य विशेषता है. उन सभी के परिणामस्वरूप अराजकता, गलत सूचना, विघटन, एक ही समय में अपने नस्लवादी और अन्य नीतियों को लागू करने की कोशिश कर रहे हैं, हमने अमेरिका को स्वास्थ्य के मोर्चे पर, आर्थिक और साथ ही नस्लीय अन्याय के मोर्चे पर विफल होते हुए देखा है. वह आव्रजन अभी भी प्रगति पर है और राष्ट्रपति ट्रंप और उनके प्रशासन ने उन चीजों की श्रृंखला के हिस्से के रूप में काम किया है जो हर किसी को हैरान करने वाला है. हम उम्मीद कर रहे हैं कि इसे लेकर कुछ और स्पष्टीकरण होगा, लेकिन छात्रों के पास किसी अन्य स्कूल में स्थानांतरित करने या कोशिश करने का विकल्प होगा, जो व्यक्तिगत कक्षाओं में अधिक है.
सवाल- क्या अमेरिका से बाहर रहे रहे छात्र अमेरिका जा सकते हैं. इसको लेकर आप क्या कहेंगे.
जवाब- बड़ी घबराहट है. यहां पर पहले से रह रहे छात्रों के लिए क्या होगा, इसे लेकर भ्रम है और बाहर से आने वाले छात्रों को वीजा प्राप्त करने में अनेक संदेह हैं, क्योंकि यहां के वीजा कार्यालय अभी तक खुले नहीं हैं. मैं जिन छात्रों से संपर्क कर रहा हूं. उनको मैं यह समझाने की कोशिश कर रहा हूं कि वह शांत रहें. देखें कि वास्तविक दिशा-निर्देश क्या हैं और फिर देखें कि क्या होता है.
सवाल- कई कॉलेज पहले ही आगामी सेमेस्टर के लिए एडमिशन ले चुके हैं, ऐसे में स्टूडेंट्स ट्रांसफर कैसे ले सकते हैं? और देश लॉकडाउन मोड में है, हमें नहीं पता कि भारत के लिए अंतरराष्ट्रीय निर्धारित उड़ानें कब शुरू होंगी तो छात्र अमेरिका कैसे जाएंगे?
जवाब- आप सही कह रही हैं. हम किस तरफ जा रहे हैं इसमें कोई स्पष्टता नहीं है.
सवाल- क्या भारतीय समुदाय यहां पर एक साथ है.
जवाब- यहां पर कोई एक भारतीय समुदाय नहीं है. यह कई तरीकों से बिखरा हुआ है. ऐसे लोग हैं जो ट्रंप को चाहते हैं. जो उसने उत्साहित हैं क्योंकि वह उन चीजों को कहते हैं जो वे सुनना चाहते हैं क्योंकि उनका मानना है कि उनके कर में कटौती उनके लिए अच्छी होगी. उनका मानना है कि उन्हें यहां आने और सफल होने और रहने का मौका मिला है. अगली पीढ़ी को नहीं आना चाहिए. उसके विरोध में प्रगतिशील लोग भी हैं, जो इन सभी नियमों से लड़ रहे हैं. यहां के सबसे बड़े कार्यकर्ता भारतीय मूल के हैं. कोई एक समुदाय नहीं है और भारतीय मूल के लोगों का एक बड़ा समुदाय है जो अलग-थलग है. दक्षिण कोरिया और अमेरिका को देखें. दोनों देशों में कोरोना के मामले एक साथ आए थे. लेकिन इस समय दक्षिण कोरिया में 200 मौतें हुई हैं. जबकि अमेरिका में 50,000 लोगों की मौत हो गई है. कोरिया, अमेरिका की तुलना में 15 गुना अधिक घना है. यह वह त्रासदी है जो हमारी आंखों सामने घट रही है.
सवाल- ट्रंप ने स्कूल और कॉलजों से कक्षाओं को फिर से शुरू करने को कहा है. क्या एफ 1 वीज़ा संशोधन संस्थानों के लिए अपने परिसरों को खोलने के लिए एक दबाव रणनीति है?
मुझे नहीं लगता कि उन्होंने उन लोगों को जरूरी रूप से जोड़ा है, लेकिन वह सिर्फ कॉलेजों को ही नहीं बल्कि स्कूलों को भी खोलने के लिए मजबूर कर रहे हैं. उन्होंने कहा है कि वह गवर्नरों पर खोलने का दबाव बनाएंगे. देश में कोरोना तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन हम इसे दूसरी तरफ मोड़ने की कोशिश कर रहें है. कोरोना के मामले इतने बड़े पैमाने पर किसी अन्य देश में नहीं देखा गया है. हमने इससे निबटने के लिए कुछ नहीं किया. लॉकडाउन में लोगों ने कष्ट उठाया था वह पूरी तरह से बर्बाद हो गया है. हर चीज राजनीतिक हो गई है.
सवाल - अमेरिका ने औपचारिक रूप से डब्ल्यूएचओ से अलग होने की घोषणा की है. जबकि इस दौरान दुनिया में कोरोना महामारी तेजी से फैल रही है.
यह बहुत ही दुखद है. उन्होंने जो कुछ भी किया वह चौंकाने वाला नहीं है. क्योंकि उन्होंने पहले ही कह दिया था वह ऐसा करेंगे. कई लोगों ने सोचा कि शायद ट्रंप राष्ट्रपति बनने के बाद कुछ अच्छी योजनाएं लेकर आएंगे. लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. लेकिन उन्होंने पहले ही दिन अपनी सटीक योजना दिखाई है, जिसके चलते हम यहां हैं.