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अमेरिका हमले से निपटने की तैयारी में, ईरान का लंबा छद्म युद्ध

राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा ईरान की प्रमुख कुद्स सेना के मेजर जनरल कासिम सुलेमानी को मार गिराने के बाद से ही मध्य पूर्व और अमेरिका में राजनीति के समीकरणों में बदलाव आ गया है. अमेरिका की मीडिया के साथ साथ कई जानकारों का मानना है कि दोनों देशों के बीच मौजूदा हालात बनना तय था और जंग की गुंजाइयश भी है.  बड़ी जवाबी कार्रवाई के खतरे के कारण पिछले अमेरिकी राष्ट्रपति सुलेमानी के खात्मे के फैसले से बचते रहे थे.

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हसन रूहानी
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Published : Jan 9, 2020, 9:10 PM IST

वाशिंगटन: राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा ईरान की प्रमुख कुद्स सेना के मेजर जनरल कासिम सुलेमानी को मार गिराने के बाद से ही मध्य पूर्व और अमेरिका में राजनीति के समीकरणों में बदलाव आ गया है. अमेरिका की मीडिया के साथ साथ कई जानकारों का मानना है कि दोनों देशों के बीच मौजूदा हालात बनना तय था और जंग की गुंजाइयश भी है. बड़ी जवाबी कार्रवाई के खतरे के कारण पिछले अमेरिकी राष्ट्रपति सुलेमानी के खात्मे के फैसले से बचते रहे थे.

ट्रंप ने यह जोखिम उठाया और आने वाले हफ्तों में यह साफ होगा कि क्या यह जोखिम उठाना समझदारी का फैसला था या नहीं. सुलेमानी को मार गिराने वाले ड्रोन हमले के बाद विदेश सचिव माइक पोंपियो ने कहा कि राष्ट्रपति ईरान में सत्ता में बदलाव या ईरान से जंग नहीं चाहते हैं.

ईरान भी अमेरिका से युद्ध नहीं चाहेगा, क्योंकि अमेरिका से खुले युद्ध में जीतना ईरान के लिये नामुमकिन है. लेकिन ईरान ने अमेरिका और मध्यपूर्व में उसके सहयोगियों से बड़े बदले की कसम खाई है. इन धमकियों से अमेरिका द्वारा ईरान पर लगाये गये प्रतिबंधों और परेशान जनता के दर्द पर पर्दा डाले की भी कोशिश है.

अपने बदले के पहले कदम के तौर पर मंगलवार को ईरान ने, इराक में मौजूद अमेरिकी सैन्य ठिकाने पर कुछ मिसाइलें दागी. उम्मीद यही है कि इसके बाद अमेरिका की तरफ से कोई जवाबी कार्रवाई नहीं होगी और ईरान अपनी रणनीति में कोई और गलती नहीं करेगा. इन मौजूदा हमलों और जवाबी हमलों की शुरुआत, पिछली गर्मियों में ईरान द्वारा अमेरिकी ड्रोन को मार गिराने के बाद से हुई है. ट्रंप ने इसके तुरंत बाद जवाबी हमले का आदेश दिया था लेकिन ऐन मौके पर अमेरिका ने कोई कार्रवाई करने से अपने हाथ खींच लिये.

ईरान ने इसके बाद सितंबर में साउदी तेल ठिकानों पर हमला किया और हाल ही में दिसंबर 27 को किरकुक में सैन्य ठिकाने पर रॉकेट दागे, जिसमें एक अमेरिकी ठेकेदार की मौत हो गई. इसके चलते, ट्रंप ने, ईरान के समर्थक कतालिब हेजबुल्लाह के ऊपर लड़ाकू विमानों से हमला किया, जिसमें 25 लोगो को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा. इस संगठन के लीडर मदी अल-मुहानदिस की मौत भी सुलेमानी के साथ ड्रोन हमले में हुई.

कतालिब हेजबुल्लाह पर अमेरिकी हमले के कारण, नये साल की संध्या पर बगदाद में अमेरिकी दूतावास पर प्रदर्शनकारियों ने धावा बोल दिया और मुख्य गेट तोड़कर स्वागत डेस्क तक पहुंच गये. इसी बेइज्जती के चलते ट्रंप ने सुलेमानी को मार गिराने का आदेश दिया. हालांकि आधिकारिक बयान में कहा गया है कि अमेरिका को आने वाले खतरों से बचाने के लिए सुलेमानी को मारा गया, लेकिन असलियत में यह इराक में अमेरिकी दूतावास पर हुए हमले का बदला था.

इराकी संसद ने एक प्रस्ताव पारित कर देश से अमेरिकी सेना को वापस करने की बात कही. लेकिन इस समय संसद में, सुन्नी और कुर्द सांसद मौजा नहीं रहे. सुलेमानी द्वारा इराक और सीरिया में आक्रामक तरीके अपनाने के कारण, कई इराकी और सीरिया के लोग उनके खात्मे से चैन की सांस ले रहे हैं.

मध्यपूर्व मामलों के जानकार, किम इंटास के मुताबिक, सुलेमानी ने सीरिया से लेबनान तक सांप्रदायिक लड़ाकुओँ की फौज खड़ी की थी और पिछले दो दशकों में इस क्षेत्र में हुई हर घटनाक्रम के बीच में सुलेमानी का नाम रहा था. उनके काम करने का दायरा कई बार अपने क्षेत्र से बाहर होता था. फरवरी 2012 में दिल्ली में इजरायली राजनयिक की गाड़ी पर हुए हमले के पीछे सुलेमनी का हाथ बताया जा रहा है. इस हमले में चार लोग घायल हो गये थे.

अपने घर में भी विरोध और विद्रोह से निपटने के लिये सुलेमानी के तरीके काफी आतंकी थे. नवंबर में तेल की कीमतों में 200% इजाफे के खिलाफ विरोध के स्वर को दबाने के लिये सात दिनों तक इंटरनेट सेवाऐं बंद रहीं. समाचार एजेंसी रॉयटर्रस के मुताबिक इस दौरान विरोध प्रदर्शनों में 1000 से ज्यादा प्रदर्शनकारियों की मौत हुई.

लेकिन कई ईरानियों के लिए सुलेमानी चें ग्वेरा जैसी शख्सियत थे, जिन्होंने अमेरिका या ग्रेट सैटन और आईएसआईएस से लड़ाई का नेतृत्व किया. कार्नगी एन्डॉमेंट के करीम सादजादपोर, जो ईरान मामलों के जानकार हैं, कहते हैं कि सुलेमानी की मौत का असर ईरान के लोगों पर ज्यादा दिन नहीं रहेगा और आने वाले कुछ ही दिनों में लोग अपनी रोजमर्रा के जीवन की परेशानियों में व्यस्त हो जायेंगे.

इराक में अमेरिकी सैनिकों की मौत के जिम्मेदार जनरल को मार गिराने के ट्रंप के फैसले का अमेरिका के अंदर भी असर हो रहा है. डेमोक्रेट पार्टी का मानना है कि, सुलेमानी के बिना दुनिया एक ज्यादा सुरक्षित जगह तो है, लेकिन ईरान इस कार्रवाई को जंग के ऐलान के तौर पर भी देख सकता है.

हाउस ज्यूडिशिरी कमेटी के अध्यक्ष जैरी नाडलर ने कहा कि सुलेमानी एक खतरनाक शख्स था, जिसने दुनिया के कई इलाकों में आतंकी काम किये थे. लेकिन कांग्रेस ने राष्ट्रपति को जंग शुरू करने के लिये अधिकृत नहीं किया था और हमें इस हमले से जो हालात खराब हुए हैं. उन्हें और खराब होने से रोकने के लिये प्रयास करने चाहिए.'

सुलेमानी की मौत ने आने वाले चुनावों में राष्ट्रपति पद के डेमोक्रेटिक उम्मीदवारों को भी असमंजस में डाल दिया है. अब मजबूरन उन्हें सख्स विदेश नीति पर बात और बहस करनी पड़ रही है, जबकी इन चुनावों में विपक्षी दल हेल्थ केयर और अन्य घरेलू मुद्दों पर चुनाव केंद्रित रखना चाहते थे. राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार एलीजाबेथ वॉरन ने 2 जनवरी को सुलेमानी को एक हत्यारा कहा और इसके तीन बाद उसे एक सरकारी अधिकारी कहा. इसके कारण वॉरन को ट्विटर पर काफी ट्रोलिंग का सामना करना पड़ गया.

पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के रक्षा सचिव लियोन पनैटा ने मौजूदा हालातों को ट्रंप के राष्ट्रपति काल के सबसे बड़ी परीक्षा के पल कहा है. पिछले तीन सालो में ट्रंप ने अमेरिका के सहयोगियों का मखौल उड़ाया है. विपक्ष को अपमानित किया है और अपनी खुफिया एजेंसियों को नकारा है. लेकिन इस घटना के बाद ट्रंप ने अपने उन समर्थकों को हिला दिया है, जिनसे वो जंग खत्म करने का वादा कर चुनाव जीते थे.

ट्रंप ने एक जुआ खेला है और बड़ा सवाल है कि उनके इस कदम से क्या ईरान अपने छद्म युद्ध के बारे में दोबारा सोचेगा या उसे और बढ़ावा देगा.
(लेखक - सीमा सिरोही)

वाशिंगटन: राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा ईरान की प्रमुख कुद्स सेना के मेजर जनरल कासिम सुलेमानी को मार गिराने के बाद से ही मध्य पूर्व और अमेरिका में राजनीति के समीकरणों में बदलाव आ गया है. अमेरिका की मीडिया के साथ साथ कई जानकारों का मानना है कि दोनों देशों के बीच मौजूदा हालात बनना तय था और जंग की गुंजाइयश भी है. बड़ी जवाबी कार्रवाई के खतरे के कारण पिछले अमेरिकी राष्ट्रपति सुलेमानी के खात्मे के फैसले से बचते रहे थे.

ट्रंप ने यह जोखिम उठाया और आने वाले हफ्तों में यह साफ होगा कि क्या यह जोखिम उठाना समझदारी का फैसला था या नहीं. सुलेमानी को मार गिराने वाले ड्रोन हमले के बाद विदेश सचिव माइक पोंपियो ने कहा कि राष्ट्रपति ईरान में सत्ता में बदलाव या ईरान से जंग नहीं चाहते हैं.

ईरान भी अमेरिका से युद्ध नहीं चाहेगा, क्योंकि अमेरिका से खुले युद्ध में जीतना ईरान के लिये नामुमकिन है. लेकिन ईरान ने अमेरिका और मध्यपूर्व में उसके सहयोगियों से बड़े बदले की कसम खाई है. इन धमकियों से अमेरिका द्वारा ईरान पर लगाये गये प्रतिबंधों और परेशान जनता के दर्द पर पर्दा डाले की भी कोशिश है.

अपने बदले के पहले कदम के तौर पर मंगलवार को ईरान ने, इराक में मौजूद अमेरिकी सैन्य ठिकाने पर कुछ मिसाइलें दागी. उम्मीद यही है कि इसके बाद अमेरिका की तरफ से कोई जवाबी कार्रवाई नहीं होगी और ईरान अपनी रणनीति में कोई और गलती नहीं करेगा. इन मौजूदा हमलों और जवाबी हमलों की शुरुआत, पिछली गर्मियों में ईरान द्वारा अमेरिकी ड्रोन को मार गिराने के बाद से हुई है. ट्रंप ने इसके तुरंत बाद जवाबी हमले का आदेश दिया था लेकिन ऐन मौके पर अमेरिका ने कोई कार्रवाई करने से अपने हाथ खींच लिये.

ईरान ने इसके बाद सितंबर में साउदी तेल ठिकानों पर हमला किया और हाल ही में दिसंबर 27 को किरकुक में सैन्य ठिकाने पर रॉकेट दागे, जिसमें एक अमेरिकी ठेकेदार की मौत हो गई. इसके चलते, ट्रंप ने, ईरान के समर्थक कतालिब हेजबुल्लाह के ऊपर लड़ाकू विमानों से हमला किया, जिसमें 25 लोगो को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा. इस संगठन के लीडर मदी अल-मुहानदिस की मौत भी सुलेमानी के साथ ड्रोन हमले में हुई.

कतालिब हेजबुल्लाह पर अमेरिकी हमले के कारण, नये साल की संध्या पर बगदाद में अमेरिकी दूतावास पर प्रदर्शनकारियों ने धावा बोल दिया और मुख्य गेट तोड़कर स्वागत डेस्क तक पहुंच गये. इसी बेइज्जती के चलते ट्रंप ने सुलेमानी को मार गिराने का आदेश दिया. हालांकि आधिकारिक बयान में कहा गया है कि अमेरिका को आने वाले खतरों से बचाने के लिए सुलेमानी को मारा गया, लेकिन असलियत में यह इराक में अमेरिकी दूतावास पर हुए हमले का बदला था.

इराकी संसद ने एक प्रस्ताव पारित कर देश से अमेरिकी सेना को वापस करने की बात कही. लेकिन इस समय संसद में, सुन्नी और कुर्द सांसद मौजा नहीं रहे. सुलेमानी द्वारा इराक और सीरिया में आक्रामक तरीके अपनाने के कारण, कई इराकी और सीरिया के लोग उनके खात्मे से चैन की सांस ले रहे हैं.

मध्यपूर्व मामलों के जानकार, किम इंटास के मुताबिक, सुलेमानी ने सीरिया से लेबनान तक सांप्रदायिक लड़ाकुओँ की फौज खड़ी की थी और पिछले दो दशकों में इस क्षेत्र में हुई हर घटनाक्रम के बीच में सुलेमानी का नाम रहा था. उनके काम करने का दायरा कई बार अपने क्षेत्र से बाहर होता था. फरवरी 2012 में दिल्ली में इजरायली राजनयिक की गाड़ी पर हुए हमले के पीछे सुलेमनी का हाथ बताया जा रहा है. इस हमले में चार लोग घायल हो गये थे.

अपने घर में भी विरोध और विद्रोह से निपटने के लिये सुलेमानी के तरीके काफी आतंकी थे. नवंबर में तेल की कीमतों में 200% इजाफे के खिलाफ विरोध के स्वर को दबाने के लिये सात दिनों तक इंटरनेट सेवाऐं बंद रहीं. समाचार एजेंसी रॉयटर्रस के मुताबिक इस दौरान विरोध प्रदर्शनों में 1000 से ज्यादा प्रदर्शनकारियों की मौत हुई.

लेकिन कई ईरानियों के लिए सुलेमानी चें ग्वेरा जैसी शख्सियत थे, जिन्होंने अमेरिका या ग्रेट सैटन और आईएसआईएस से लड़ाई का नेतृत्व किया. कार्नगी एन्डॉमेंट के करीम सादजादपोर, जो ईरान मामलों के जानकार हैं, कहते हैं कि सुलेमानी की मौत का असर ईरान के लोगों पर ज्यादा दिन नहीं रहेगा और आने वाले कुछ ही दिनों में लोग अपनी रोजमर्रा के जीवन की परेशानियों में व्यस्त हो जायेंगे.

इराक में अमेरिकी सैनिकों की मौत के जिम्मेदार जनरल को मार गिराने के ट्रंप के फैसले का अमेरिका के अंदर भी असर हो रहा है. डेमोक्रेट पार्टी का मानना है कि, सुलेमानी के बिना दुनिया एक ज्यादा सुरक्षित जगह तो है, लेकिन ईरान इस कार्रवाई को जंग के ऐलान के तौर पर भी देख सकता है.

हाउस ज्यूडिशिरी कमेटी के अध्यक्ष जैरी नाडलर ने कहा कि सुलेमानी एक खतरनाक शख्स था, जिसने दुनिया के कई इलाकों में आतंकी काम किये थे. लेकिन कांग्रेस ने राष्ट्रपति को जंग शुरू करने के लिये अधिकृत नहीं किया था और हमें इस हमले से जो हालात खराब हुए हैं. उन्हें और खराब होने से रोकने के लिये प्रयास करने चाहिए.'

सुलेमानी की मौत ने आने वाले चुनावों में राष्ट्रपति पद के डेमोक्रेटिक उम्मीदवारों को भी असमंजस में डाल दिया है. अब मजबूरन उन्हें सख्स विदेश नीति पर बात और बहस करनी पड़ रही है, जबकी इन चुनावों में विपक्षी दल हेल्थ केयर और अन्य घरेलू मुद्दों पर चुनाव केंद्रित रखना चाहते थे. राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार एलीजाबेथ वॉरन ने 2 जनवरी को सुलेमानी को एक हत्यारा कहा और इसके तीन बाद उसे एक सरकारी अधिकारी कहा. इसके कारण वॉरन को ट्विटर पर काफी ट्रोलिंग का सामना करना पड़ गया.

पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के रक्षा सचिव लियोन पनैटा ने मौजूदा हालातों को ट्रंप के राष्ट्रपति काल के सबसे बड़ी परीक्षा के पल कहा है. पिछले तीन सालो में ट्रंप ने अमेरिका के सहयोगियों का मखौल उड़ाया है. विपक्ष को अपमानित किया है और अपनी खुफिया एजेंसियों को नकारा है. लेकिन इस घटना के बाद ट्रंप ने अपने उन समर्थकों को हिला दिया है, जिनसे वो जंग खत्म करने का वादा कर चुनाव जीते थे.

ट्रंप ने एक जुआ खेला है और बड़ा सवाल है कि उनके इस कदम से क्या ईरान अपने छद्म युद्ध के बारे में दोबारा सोचेगा या उसे और बढ़ावा देगा.
(लेखक - सीमा सिरोही)

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अमरीका हमले से निपटने की तैयारी में, ईरान का लंबा छद्दम युद्ध





सीमा सिरोही, वॉशिंगटन डीसी





वाशिंगटन: राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा, ईरान की प्रमुख कुद सेना के मेजर जनरल, क़ासिम सुलेमानी को मार गिराने के बाद से ही मध्य पूर्व और अमरीका में राजनीति के समीकरणों में बदलाव आ गया है. अमरीका की मीडिया के साथ साथ कई जानकारों का मानना है कि दोनों देशों के बीच मौजूदा हालात बनना तय था और जंग की गुंजाइयश भी है.  बड़ी जवाबी कार्रवाई के ख़तरे के कारण, पिछले अमरीकी राष्ट्रपति सुलेमानी के ख़ात्मे के फ़ैसले से बचते रहे थे. 

ट्रंप ने यह जोखिम उठाया और आने वाले हफ़्तों में यह साफ़ होगा कि क्या यह जोखिम उठाना समझदारी का फ़ैसला था या नहीं. सुलेमानी को मार गिराने वाले ड्रोन हमले के बाद, विदेश सचिव माइक पोंपियो ने कहा कि, राष्ट्रपति, ईरान में सत्ता में बदलाव या ईरान से जंग नहीं चाहते हैं.   



ईरान भी अमरीका से युद्ध नहीं चाहेगा, क्योंकि अमरीका से खुले युद्ध में जीतना ईरान के लिये नामुमकिन है. लेकिन, ईरान ने अमरीका और मध्यपूर्व में उसके सहयोगियों से बड़े बदले की क़सम खाई है. इन धमकियों से अमरीका द्वारा ईरान पर लगाये गये प्रतिबंधों और परेशान जनता के दर्द पर पर्दा डाले की भी कोशिश है. 



अपने बदले के पहले कदम के तौर पर मंगलवार को ईरान ने, इराक़ में मौजूद अमरीकी सैन्य ठिकाने पर कुछ मिसाइलें दागी. उम्मीद यही है कि इसके बाद अमरीका की तरफ़ से कोई जवाबी कार्रवाई नहीं होगी और ईरान अपनी रणनीति में कोई और गलती नहीं करेगा. इन मौजूदा हमलों और जवाबी हमलों की शुरुआत, पिछली गर्मियों में ईरान द्वारा अमरीकी ड्रोन को मार गिराने के बाद से हुई है. ट्रंप ने इसके तुरंत बाद जवाबी हमले का आदेश दिया था लेकिन ऐन मौक़े पर अमरीका ने कोई कार्रवाई करने से अपने हाथ खींच लिये. 



ईरान ने इसके बाद सितंबर में साउदी तेल ठिकानों पर हमला किया और हाल ही में, दिसंबर 27 को किरकुक में सैन्य ठिकाने पर रॉकेट दागे, जिसमें एक अमरीकी ठेकेदार की मौत हो गई. इसके चलते, ट्रंप ने, ईरान के समर्थक कतालिब हेजबुल्लाह के ऊपर लड़ाकू विमानों से हमला किया, जिसमें 25 लोगो को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा. इस संगठन के लीडर, मदी अल-मुहानदिस की मौत भी सुलेमानी के साथ ड्रोन हमले में हुई. 



कतालिब हेजबुल्लाह पर अमरीकी हमले के कारण, नये साल की संध्या पर, बग़दाद में अमरीकी दूतावास पर प्रदर्शनकारियों ने धावा बोल दिया और मुख्य गेट तोड़कर स्वागत डेस्क तक पहुँच गये. इसी बेइज़्ज़ती के चलते ट्रंप ने सुलेमानी को मार गिराने का आदेश दिया. हालाँकि, आधिकारिक बयान में कहा गया है कि, अमरीका को आने वाले ख़तरों से बचाने के लिए सुलेमानी को मारा गया, लेकिन, असलियत में यह इराक़ में अमरीकी दूतावास पर हुए हमले का बदला था.   



 इराक़ी संसद ने एक प्रस्ताव पारित कर देश से अमरीकी सेना को वापस करने की बात कही, लेकिन इस समय संसद में, सुन्नी और कुर्द सांसद मौजा नहीं रहे. सुलेमानी द्वारा इराक़ और सीरिया में आक्रामक तरीक़े अपनाने के कारण, कई इराक़ी और सीरिया के लोग उनके ख़ात्मे से चैन की सांस ले रहे हैं. 



मध्यपूर्व मामलों के जानकार, किम इंटास के मुताबिक़, सुलेमानी ने सीरिया से लेबनान तक सांप्रदायिक लड़ाकुओँ की फ़ौज खड़ी की थी, और पिछले दो दशकों में इस क्षेत्र में हुई हर घटनाक्रम के बीच में सुलेमानी का नाम रहा था. उनके काम करने का दायरा कई बार अपने क्षेत्र से बाहर होता था. फ़रवरी 2012 में दिल्ली में इज़रायली राजनयिक की गाड़ी पर हुए हमले के पीछे सुलेमनाी का हाथ बताया जा रहा है. इस हमले में चार लोग घायल हो गये थे.  

अपने घर में भी विरोध और विद्रोह से निपटने के लिये सुलेमानी के तरीक़े काफ़ी आतंकी थे. नवंबर में तेल की क़ीमतों में 200% इज़ाफ़े के ख़िलाफ़ विरोध के स्वर को दबाने के लिये सात दिनों तक इंटरनेट सेवाऐं बंद रहीं. समाचार एजेंसी रॉयटर्रस के मुताबिक़ इस दौरान विरोध प्रदर्शनों में 1000 से ज़्यादा प्रदर्शनकारियों की मौत हुई. 



लेकिन, कई ईरानियों के लिये, सुलेमानी, चें गुएरा जैसी शख़्सियत थे, जिन्होंने अमरीका या ग्रेट सैटन और आईएसआईएस से लड़ाई का नेतृत्व किया. कार्नगी एन्डॉमेंट के करीम सादजादपोर, जो ईरान मामलों के जानकार हैं, कहते हैं कि सुलेमानी की मौत का असर ईरान के लोगों पर ज़्यादा दिन नहीं रहेगा और आने वाले कुछ ही दिनों में लोग अपनी रोज़मर्रा के जीवन की परेशानियों में व्यस्त हो जायेंगे. 



इराक़ में अमरीकी सैनिकों की मौत के ज़िम्मेदार जनरल को मार गिराने के ट्रंप के फ़ैसले का अमरीका के अंदर भी असर हो रहा है. डेमोक्रेट पार्टी का मानना है कि, सुलेमानी के बिना दुनिया एक ज़्यादा सुरक्षित जगह तो है, लेकिन, ईरान इस कार्रवाई को जंग के ऐलान के तौर पर भी देख सकता है.   



हाउस ज्यूडिशिरी कमेटी के अध्यक्ष, जैरी नाडलर ने कहा कि, 'सुलेमानी एक ख़तरनाक शख़्स था, जिसने दुनिया के कई इलाक़ों में आतंकी काम किये थे. लेकिन कांग्रेस ने राष्ट्रपति को जंग शुरू करने के लिये अधिकृत नहीं किया था और हमें इस हमले से जो हालात ख़राब हुए हैं  उन्हें और खराब होने से रोकने के लिये प्रयास करने चाहिये.'



सुलेमानी की मौत ने, आने वाले चुनावों में राष्ट्रपति पद के डेमोक्रेटिक उम्मीदवारों को भी असमंजस में डाल दिया है. अब मजबूरन उन्हें सख़्त विदेश नीति पर बात और बहस करनी पड़ रही है, जबकी, इन चुनावों में विपक्षी दल हेल्थ केयर और अन्य घरेलू मुद्दों पर चुनाव केंद्रित रखना चाहते थे.  राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार एलीजाबेथ वॉरन ने 2 जनवरी को सुलेमानी को एक हत्यारा कहा और इसके तीन बाद उसे एक सरकारी अधिकारी कहा. इसके कारण वॉरन को ट्विटर पर काफ़ी ट्रोलिंग का सामना करना पड़ गया.     



पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के रक्षा सचिव लियोन पनैटा ने मौजूदा हालातों को ट्रंप के राष्ट्रपति काल के सबसे बड़ी परीक्षा के पल कहा है. पिछले तीन सालो में ट्रंप ने अमरीका के सहयोगियों का मखौल उड़ाया है, विपक्ष को अपमानित किया है और अपनी ख़ुफ़िया एजेंसियों को नकारा है. लेकिन, इस घटना के बाद ट्रंप ने अपने उन समर्थकों को हिला दिया है, जिनसे वो जंग ख़त्म करने का वादा कर चुनाव जीते थे.  



ट्रंप ने एक जुआ खेला है और बड़ा सवाल है कि उनके इस कदम से क्या ईरान अपने छद्दम युद्द के बारे में दोबारा सोचेगा या उसे और बढ़ावा देगा. 

(लेखक - सीमा सिरोही) 


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