नेशविल (अमेरिका) : सोशल मीडिया (Social Media) के यूज से होने वाले फायदे से तो सभी वाकिफ हैं, लेकिन हाल ही में अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ टेनेसी के एक प्रोफेसर की एक अध्ययन रिपोर्ट में जो बात सामने आई है, वो आपको और आपके बच्चे के लिए बड़ी काम की है. रिपोर्ट में बताया गया है कि जो स्कूली छात्र अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स का इस्तेमाल सूचना देने के लिए करते हैं. अगर वो इसका ज्यादा उपयोग कर रहे हैं, तो कहीं न कहीं अपनी निजता को दांव पर लगाकर खतरे को दावत दे रहे हैं.
टेनेसी यूनिवर्सिटी के स्टेम शिक्षा के सहायक प्रोफेसर जोशुआ रोसेनबर्ग की अध्ययन रिपोर्ट में जो जानकारी सामने आई है, वो काफी चौंकाने वाली है. रिपोर्ट के अनुसार, शिक्षा में डेटा विज्ञान की विशेष जानकारी रखने वाले अनुसंधानकर्ता के तौर पर अनजाने में ही छात्रों की निजता के संबंध में ये जानकारी सामने आई. प्रोफेसर के अनुसार हम ये खोज रहे थे कि कोविड-19 महामारी (Covid-19 Pandemic) के शुरुआती दिनों खासतौर से मार्च और अप्रैल 2020 के दौरान स्कूलों ने सोशल मीडिया का इस्तेमाल कैसे किया
इस अध्ययन में हमने कुछ हैरानी भरा पाया कि कैसे फेसबुक (Facebook) काम करता है ? हम शिक्षकों और छात्रों की तस्वीरों के साथ ही स्कूलों के पोस्ट देख सकते थे, जबकि हम अपने निजी फेसबुक खातों से लॉग इन नहीं थे. लॉग इन न होने के बावजूद पेजों और तस्वीरों को देख पाने से यह पता चला कि न केवल स्कूलों के पोस्ट देखे जा सकते हैं, बल्कि डेटा माइनिंग या नए अनुसंधान तरीकों का इस्तेमाल करके निजी जानकारी भी देखी जा सकती है. इन तरीकों में कंप्यूटर और सांख्यिकीय तकनीक का इस्तेमाल शामिल हैं.
हैकर चुरा सकते हैं जानकारी
चूंकि अमेरिका के सभी स्कूल अपनी वेबसाइटों को राष्ट्रीय शिक्षा सांख्यिकी केंद्र में दर्ज कराते हैं और कई स्कूल अपने फेसबुक पेजों को अपनी वेबसाइटों से जोड़ते हैं. ऐसे में इन पोस्ट्स को व्यापक तरीके से देखा जा सकता है.
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दूसरे शब्दों में कहे तो न केवल अनुसंधानकर्ता बल्कि विज्ञापनदाता और हैकर भी डेटा माइनिंग विधियों का इस्तेमाल करके फेसबुक पर किसी भी स्कूल के सभी पोस्ट्स का इस्तेमाल कर सकते हैं. इससे चलते हमने छात्रों के निजता के उल्लंघन पर अध्ययन किया.
जानें खतरे के बारे में
छात्रों की तस्वीरों को आसानी से देख पाना सोशल मीडिया पर किसी की निजता का खतरा है. उदाहरण के लिए अभिभावकों ने सोशल मीडिया पर उनके बच्चों के बारे में शिक्षकों द्वारा पोस्ट करने पर चिंता जताई है. भविष्य में पीछा करने वाले लोग और छात्रों को चिढ़ाने वाले लोग उनकी पहचान करने के लिए इन पोस्ट्स का इस्तेमाल कर सकते हैं. छात्र कुछ और खतरों का सामना कर सकते हैं.
चेहरे की पहचान करने वाली कंपनियां इंटरनेट के आंकड़ें और सोशल मीडिया के आंकड़ें एकत्रित करती है. ये कंपनियां फिर इन आंकड़ों को कानून प्रवर्तन एजेंसियों को बेचती हैं जो किसी संभावित संदिग्ध या व्यक्ति की तस्वीर अपलोड कर सकती हैं. कंपनियां पहले ही फेसबुक पर लोगों की पोस्ट से अमेरिका में नाबालिगों की तस्वीरों को हासिल करती हैं.
लाखों छात्रों की तस्वीरें उपलब्ध
अपने अध्ययन में प्रोफेसर को जानकारी मिली कि स्कूलों के पोस्ट्स पढ़ने के लिए फेसबुक द्वारा उपलब्ध कराए संघीय आंकड़ें और एक विश्लेषणात्मक टूल का इस्तेमाल किया गया. साल 2005 से 2020 तक करीब 16,000 स्कूलों के 1.79 करोड़ पोस्ट्स को एकत्रित करके बिना सोचे-समझे 100 पोस्ट्स का चयन किया. यह पता लगाया कि क्या इन पोस्ट्स में छात्रों का नाम लिखा गया और क्या किसी तस्वीर में उनके चेहरे साफ तौर पर दिख रहे हैं. अगर ये दोनों चीजें है तो हम मानते हैं कि उस छात्र को नाम और स्कूल से पहचाना जा सकता है.
ऐसा करके बच सकते हैं खतरे से
- छात्र पूरा नाम लिखने से बचें: छात्रों का पूरा नाम न लिखने से किसी भी छात्र को निशाना बनाना मुश्किल हो जाएगा और छात्रों के आंकड़ों को बेचे जाने के खतरे से बचा जा सकता है.
- स्कूल के पेज को निजी बनाएं: स्कूल के पेज को निजी बनाने का मतलब है कि डेटा माइनिंग और मुश्किल हो जाएगी. इस एक कदम से छात्रों की निजता पर खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है.
- ऑप्ट-इन मीडिया नीतियों का इस्तेमाल: ऑप्ट-इन मीडिया रिलीज नीतियों में अपने बच्चें की तस्वीरें साझा करने के लिए माता-पिता की मंजूरी की आवश्यकता होती है.