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नस्ल, जाति और धर्म के आधार पर भी भेदभाव का शिकार हो रहे एलजीबीटीक्यू - LGBTQ

अमेरिकी सर्वेक्षण रिपोर्ट से पता चलता है कि 73 प्रतिशत एलजीबीटीक्यू किशोर अपनी यौन पहचान के अलावा अन्य कारणों जैसे वजन, नस्ल, जाति और धर्म के आधार पर भी गुंडागर्दी के शिकार होते हैं. इसकी वजह से यह कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं. जानें और क्या कहता है शोध...

एलजीबीटीक्यू
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Published : Jun 18, 2020, 7:11 AM IST

वॉशिंगटन : हाल ही में की गई एक अमेरिकी सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर (एलजीबीटीक्यू) समाज के किशोरों में से लगभग 73 प्रतिशत ने यह माना कि वह अपने जीवन में कम से कम एक बार गुंडागर्दी, भेदभावपूर्ण दबंगई या बदमाशी के शिकार हुए हैं. यह भेदभाव उनके वजन, नस्ल, जाति और धर्म के आधार पर किया जाता है.

कनेटिकट यूनिवर्सिटी के रूड सेंटर फॉर फूड पॉलिसी एंड ओबेसिटी (Rudd Center for Food Policy and Obesity at the University of Connecticut) में प्रकाशित अमेरिकन जर्नल ऑफ प्रिवेंटिव मेडिसिन में यह बात कही गई है.

जब तक वह मिड स्कूल की दहलीज तक पहुंचते हैं तब तक इन यौन और लिंग अल्पसंख्यक किशोरों में आत्महत्या, अवसाद, नींद की परेशानी और भोजन विकार का खतरा बढ़ जाता है. यह परेशानियां अक्सर इन्हें यौन और लिंग पहचान के कारण अपमानित होने से होती हैं.

इस आधार पर शोधकर्ता यह भी जानना चाहते थे कि क्या अन्य कारणों जैसे उनके वजन, नस्ल, धर्म, और जाति के आधार पर भी उनके साथ गलत व्यवहार किया जाता है, जो उन्हें बीमार कर रहा है.

रुड सेंटर के पोस्टडॉक्टरल फेलो और अध्ययन के प्रमुख लेखक लेह लेसर कहते हैं कि जब हम इन किशोरों के सही इलाज की बात करते हैं तो पहले हम इनके पुराने अनुभवों पर भी विचार करते हैं.

उन्होंने बताया कि यह देखते हुए कि इनके साथ पहले की गई बदमाशी का असर आज इनके मन-मस्तिष्क पर गहरी छाप छोड़े हुए है, जो इनकी सेहत खराब कर रहा है. यह समझना महत्वपूर्ण है कि इन बदमाशियों को रोकने के लिए स्कूल आधारित हस्तक्षेप जैसे कि गे-स्ट्रेट अलाइंस इन बदमाशियों को रोकने में कितने सक्षम हैं.

बता दें, एलजीबीटीक्यू राष्ट्रीय किशोर सर्वेक्षण संयुक्त राज्य अमेरिका में एलजीबीटीक्यू किशोरों के उत्पीड़न, खराब सेहत, पारिवारिक संबंधों और अनुभवों पर शोध करने के लिए मानवाधिकार अभियान के साथ साझेदारी में किया गया है.

जब ट्रांस प्राइड परेड में सैकड़ों की संख्या में शामिल हुए लोग

शोधकर्ताओं ने 13-17 वर्ष के प्रतिभागियों से उनके स्कूली दिनों के अनुभव, उनके साथ किए गए गलत व्यवहार, स्वास्थ्य समस्या, तनाव, अवसाद जैसी स्थितियों पर कई सवाल पूछे. इस शोध में शोधकर्ता निम्नलिखित निष्कर्षों पर पहुंचे -

  • एसजीएम के 73% किशोरों ने माना कि वह अपने यौन और लिंग पहचान के अलावा भी अपने वजन, धर्म और जाति के आधार पर बदमाशी के शिकार हुए हैं.
  • उनके साथ हुई हर बदमाशी ने किसी न किसी तरह उनकी सेहत को नुकसान पहुंचाया.
  • उन्हें तनाव, अवसाद, नींद न आना और अकारण वजन बढ़ने की समस्या होने लगी.
  • स्कूल में गे-स्ट्रेट एलायंस होने से इनके साथ वजन, लिंग, धर्म आदि के आधार पर बदमाशियां कुछ कम हुई.

इन परिणामों को देखते हुए यह पता लगा कि गे-स्ट्रेट एलायंस की भूमिका इस तरह की बदमाशियों को रोकने में सकारात्मक है. इतना ही नहीं यह न केवल एलजीबीटीक्यू-संबंधी बल्कि अन्य तरह के भेदभाव वाली गुंडागर्दी या बदमाशियों को भी रोकने में कारगर है. इस तरह के संगठन इन बदमाशियों को कम करने और स्वस्थ समाज के निर्माण में मदद कर सकते हैं.

वॉशिंगटन : हाल ही में की गई एक अमेरिकी सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक लेस्बियन, गे, बाइसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर (एलजीबीटीक्यू) समाज के किशोरों में से लगभग 73 प्रतिशत ने यह माना कि वह अपने जीवन में कम से कम एक बार गुंडागर्दी, भेदभावपूर्ण दबंगई या बदमाशी के शिकार हुए हैं. यह भेदभाव उनके वजन, नस्ल, जाति और धर्म के आधार पर किया जाता है.

कनेटिकट यूनिवर्सिटी के रूड सेंटर फॉर फूड पॉलिसी एंड ओबेसिटी (Rudd Center for Food Policy and Obesity at the University of Connecticut) में प्रकाशित अमेरिकन जर्नल ऑफ प्रिवेंटिव मेडिसिन में यह बात कही गई है.

जब तक वह मिड स्कूल की दहलीज तक पहुंचते हैं तब तक इन यौन और लिंग अल्पसंख्यक किशोरों में आत्महत्या, अवसाद, नींद की परेशानी और भोजन विकार का खतरा बढ़ जाता है. यह परेशानियां अक्सर इन्हें यौन और लिंग पहचान के कारण अपमानित होने से होती हैं.

इस आधार पर शोधकर्ता यह भी जानना चाहते थे कि क्या अन्य कारणों जैसे उनके वजन, नस्ल, धर्म, और जाति के आधार पर भी उनके साथ गलत व्यवहार किया जाता है, जो उन्हें बीमार कर रहा है.

रुड सेंटर के पोस्टडॉक्टरल फेलो और अध्ययन के प्रमुख लेखक लेह लेसर कहते हैं कि जब हम इन किशोरों के सही इलाज की बात करते हैं तो पहले हम इनके पुराने अनुभवों पर भी विचार करते हैं.

उन्होंने बताया कि यह देखते हुए कि इनके साथ पहले की गई बदमाशी का असर आज इनके मन-मस्तिष्क पर गहरी छाप छोड़े हुए है, जो इनकी सेहत खराब कर रहा है. यह समझना महत्वपूर्ण है कि इन बदमाशियों को रोकने के लिए स्कूल आधारित हस्तक्षेप जैसे कि गे-स्ट्रेट अलाइंस इन बदमाशियों को रोकने में कितने सक्षम हैं.

बता दें, एलजीबीटीक्यू राष्ट्रीय किशोर सर्वेक्षण संयुक्त राज्य अमेरिका में एलजीबीटीक्यू किशोरों के उत्पीड़न, खराब सेहत, पारिवारिक संबंधों और अनुभवों पर शोध करने के लिए मानवाधिकार अभियान के साथ साझेदारी में किया गया है.

जब ट्रांस प्राइड परेड में सैकड़ों की संख्या में शामिल हुए लोग

शोधकर्ताओं ने 13-17 वर्ष के प्रतिभागियों से उनके स्कूली दिनों के अनुभव, उनके साथ किए गए गलत व्यवहार, स्वास्थ्य समस्या, तनाव, अवसाद जैसी स्थितियों पर कई सवाल पूछे. इस शोध में शोधकर्ता निम्नलिखित निष्कर्षों पर पहुंचे -

  • एसजीएम के 73% किशोरों ने माना कि वह अपने यौन और लिंग पहचान के अलावा भी अपने वजन, धर्म और जाति के आधार पर बदमाशी के शिकार हुए हैं.
  • उनके साथ हुई हर बदमाशी ने किसी न किसी तरह उनकी सेहत को नुकसान पहुंचाया.
  • उन्हें तनाव, अवसाद, नींद न आना और अकारण वजन बढ़ने की समस्या होने लगी.
  • स्कूल में गे-स्ट्रेट एलायंस होने से इनके साथ वजन, लिंग, धर्म आदि के आधार पर बदमाशियां कुछ कम हुई.

इन परिणामों को देखते हुए यह पता लगा कि गे-स्ट्रेट एलायंस की भूमिका इस तरह की बदमाशियों को रोकने में सकारात्मक है. इतना ही नहीं यह न केवल एलजीबीटीक्यू-संबंधी बल्कि अन्य तरह के भेदभाव वाली गुंडागर्दी या बदमाशियों को भी रोकने में कारगर है. इस तरह के संगठन इन बदमाशियों को कम करने और स्वस्थ समाज के निर्माण में मदद कर सकते हैं.

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