संयुक्त राष्ट्र : अफगानिस्तान के लिए संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत डेबोरा ल्योंस ने आगाह किया है कि देश में हमले बंद नहीं हुए तो, शांति वार्ता सफल नहीं हो पाएगी. साथ ही उन्होंने ऐसे समझौते की मांग की जो देश के युवाओं को प्रतिबिंबित करे और महिलाओं को आर्थिक एवं राजनीतिक क्षेत्र के उच्च पदों तक पहुंचने का मौका दें. देश की आधी आबादी उन युवाओं की है, जिनका जन्म 2001 में तालिबान की हार के बाद हुआ है.
डेबोरा ल्योंस ने मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से कहा कि ये अफगानिस्तानी लोग अब बहुमत में है और सरकार तथा तालिबान के बीच शांति वार्ता के दौरान इनकी आवाज सुनी जानी चाहिए, क्योंकि 'शांति समझौता होने के बाद अफगानिस्तान के समाज में इनकी एक महत्वपूर्ण एवं सक्रिय भूमिका होगी'
अमेरिका नीत गठबंधन ने 9/11 आंतकवादी हमले के प्रमुख दोषी ओसामा बिन लादेन को पनाह देने के आरोप में 2001 में तालिबान को सत्ता से बाहर कर दिया था. अमेरिका ने कतर में फरवरी 2020 में तालिबान के साथ एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए थे.
ल्योंस ने सरकार और तालिबान के बीच शांति वार्ता की धीमी गति का हवाला दिया और 'देश में जारी अति हिंसा' का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा कि दशकों के संघर्ष ने दोनों पक्षों में विश्वास की कमी पैदा की है और 'हमें पता था कि इससे शांति पर असर पड़ेगा'. ल्योंस ने कहा कि लेकिन उनके पास 'एक अच्छी खबर' है कि दोनों पक्षों से दोहा और फिर अफगानिस्तान में बात करने के बाद 'मेरे अनुभव से मुझे लगता है कि शांति संभव है.'
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उन्होंने कहा, 'अफगानिस्तान केवल शांति के लिए तैयार नहीं है बल्कि इसकी मांग कर रहा है, सभी पक्षों को हिंसा बदं करनी चाहिए. ल्योंस ने कहा कि 'एक बेहद खराब खबर है' कि पिछले साल सितम्बर में शांति वार्ता शुरू होने के बाद से जनवरी और फरवरी तक नागरिकों के हताहत होने के मामले बढ़े हैं.
उन्होंने कहा कि शांति प्रक्रिया की सफलता के लिए, 'सभी पक्षों को अफगानिस्तान के बीते कल को नहीं बल्कि आने वाले कल की ओर देखना चाहिए.