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SAMबहादुर Review: सैम मानेकशॉ के किरदार में छाए विक्की कौशल, फिल्म देखकर जाग उठेगी देशभक्ति

Sam Bahadur Movie Review: 'ये जंग है जिसकी मुझे ट्रेनिंग मिली है... आप राजनीति संभालिए जिसकी आपको ट्रेनिंग मिली है...', 'एक फील्ड मार्शल हमेशा ऑन फील्ड ही होता है...' जैसे देशभक्ति से ओतप्रोत डायलॉग से भरपूर फिल्म 'सैम बहादुर' आखिरकार 1 दिसंबर को सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है. आइए जानते हैं विक्की कौशल सैम बहादुर के दमदार कैरेक्टर को पर्दे पर निभाने में कितना कामयाब रहे. वहीं 'राजी' और 'तलवार' जैसी बेहतरीन फिल्मों का निर्देशन कर चुकी मेघना गुलजार की यह फिल्म फैंस की उम्मीदों पर कितना खरा उतरी है.

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Dec 2, 2023, 9:31 PM IST

Updated : Dec 2, 2023, 10:18 PM IST

मुंबई: भारत के पहले फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ की जिंदगी पर बनी फिल्म 'सैम बहादुर' 1 दिसंबर को सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है. जिसमें एक्टर विक्की कौशल ने लीड कैरेक्टर प्ले किया है. वहीं फातिमा सना शेख, सान्या मल्होत्रा, मोहम्माद जीशान अय्यूब, नीरज काबी जैसे कलाकारों ने फिल्म में इंपॉर्टेंट रोल प्ले किया है. इस फिल्म का निर्देशन मेघना गुलजार ने किया है. वर्ल्ड वॉर 2 से लेकर फील्ड मार्शल बनने तक सैम मानेकशॉ ने कई महत्वपूर्ण जंग लड़ी और उनमें जीत हासिल की. जंग में एक दृढ़-संकल्पित जवान के होने के साथ-साथ, मानेकशॉ एक जिद्दी, हाजिरजवाब और हंसमुख इंसान थे. इन्हीं सब खूबियों को विक्की कौशल ने अपनी बेहतरीन एक्टिंग से पर्दे पर उतारा है.

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फिल्म की कहानी
सैम बहादुर की कहानी सैम मानेकशॉ के बचपन से शुरू होती है. जहां उनके माता पिता उनका नामकरण करते हैं. इसके बाद अगले सीन में वे 1932 में इंडियन मिलिट्री एकेडमी, देहरादून जॉइन करते हैं, और 'वर्ल्ड वॉर 2' में हिस्सा लेते हैं. जिसमें उनकी वीरता के लिए उन्हें मिलिट्री क्रॉस से सम्मानित किया जाता है. सैम बहादुर का सैन्य करियर आजादी के पहले शुरू होकर चार दशकों तक चलता है. जिसमें वे 1947 के भारत-पाकिस्तान युद्ध, 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. एक बटालियन का सोल्जर होने से लेकर भारत के पहले फील्ड मार्शल बनने तक के सफर के बीच में कई उतार-चढावों का सामना सैम बहादुर करते हैं. लेकिन आखिरकार अपने जज्बे, वीरता और दृढ़ संकल्प से सारी लड़ाईयां जीतने में सफल होते हैं.

विक्की कौशल हैं फिल्म की जान
अगर आप सैम मानेकशॉ के बारे में जानना चाहते हैं और आपको देशभक्ति वाली फिल्में अच्छी लगती हैं. तो आपको ये फिल्म जरूर देखनी चाहिए. क्योंकि विक्की कौशल ने उनके किरदार को बखूबी पर्दे पर पेश किया है. उनके चलने के ढंग से लेकर, बात करने के तरीके तक विक्की ने उनके किरदार को निभाकर अपने करियर की बेस्ट परफॉर्मेंस दी है. हम एक सोल्जर के रूप में विक्की कौशल को उरी में देख चुके हैं जिसमें सब उनकी एक्टिंग के दिवाने हो गए हैं. लेकिन इस किरदार के साथ विक्की ने पूरी फिल्म अपने कंधों पर संभाली है यह कहना गलत नहीं होगा. आप पर्दे पर सिर्फ सैम मानेकशॉ को देखेंगे, विक्की को नहीं.

क्यों देखें फिल्म
अगर आप देशभक्ति वाली फिल्मों और विक्की कौशल दोनों के फैन हैं तो आपको ये फिल्म जरूर देखनी चाहिए. साथ ही अगर आप ये सोच रहे हैं कि देशभक्ति की फिल्म है और इसमें सिर्फ आपको लड़ाई, गंभीरता और राजनीति ही देखने को मिलेगी तो आप गलत अनुमान लगा रहे हैं. क्योंकि फिल्म में ऐसे सीन से भरपूर है जहां विक्की का कैरेक्टर आपको खूब हंसाएगा. और आप थोड़ी देर के लिए भी बोरीयत महसूस नहीं करेंगे. एक सीन ऐसा भी है जिसमें सैम प्राइम मिनिस्टर को स्वीटी तक बोल देते हैं. फिल्म में यह भी दिखाया गया है कि सैम मानेकशॉ के मंत्रीयों और प्राइम मिनिस्टर से कैसे रिलेशन थे. सेंस ऑफ ह्यूमर, जिद्दीपन, हाजिरजवाबी और वीरता से भरपूर विक्की कौशल का कैरेक्टर आपको शुरू से लेकर आखिर तक फिल्म से बांधे रखता है.

कुछ कमियां
अब ऐसा भी नहीं है कि फिल्म में सबकुछ अच्छा ही है. कुछ कड़ियां फिल्म की कमजोर भी हैं जैसे विक्की और जीशान अय्यूब के कैरेक्टर को छोड़कर बाकी कैरेक्टर्स अपने किरदार को निभाने में कुछ कम साबित होते हैं. फातिमा सना शेख इंदिरा गांधी के किरदार में केवल लुक वाइज ही ढल पाई हैं. वहीं सान्या का कैरेक्टर भी कुछ खास यादगार नहीं हैं. इसके अलावा फिल्म में दिखाए गए महत्वपूर्ण युद्धों को ज्यादा गहराई से नहीं दिखाया गया है. अगर आपको मेघना गुलजार से 'राजी' जैसे डायरेक्शन की उम्मीद है तो आप थोड़े निराश हो सकते हैं. लेकिन इन सब कमियों पर विक्की कौशल अपने 'कौशल' से पर्दा डालने में सफल रहे हैं.

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फिल्म की कहानी
सैम बहादुर की कहानी सैम मानेकशॉ के बचपन से शुरू होती है. जहां उनके माता पिता उनका नामकरण करते हैं. इसके बाद अगले सीन में वे 1932 में इंडियन मिलिट्री एकेडमी, देहरादून जॉइन करते हैं, और 'वर्ल्ड वॉर 2' में हिस्सा लेते हैं. जिसमें उनकी वीरता के लिए उन्हें मिलिट्री क्रॉस से सम्मानित किया जाता है. सैम बहादुर का सैन्य करियर आजादी के पहले शुरू होकर चार दशकों तक चलता है. जिसमें वे 1947 के भारत-पाकिस्तान युद्ध, 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. एक बटालियन का सोल्जर होने से लेकर भारत के पहले फील्ड मार्शल बनने तक के सफर के बीच में कई उतार-चढावों का सामना सैम बहादुर करते हैं. लेकिन आखिरकार अपने जज्बे, वीरता और दृढ़ संकल्प से सारी लड़ाईयां जीतने में सफल होते हैं.

विक्की कौशल हैं फिल्म की जान
अगर आप सैम मानेकशॉ के बारे में जानना चाहते हैं और आपको देशभक्ति वाली फिल्में अच्छी लगती हैं. तो आपको ये फिल्म जरूर देखनी चाहिए. क्योंकि विक्की कौशल ने उनके किरदार को बखूबी पर्दे पर पेश किया है. उनके चलने के ढंग से लेकर, बात करने के तरीके तक विक्की ने उनके किरदार को निभाकर अपने करियर की बेस्ट परफॉर्मेंस दी है. हम एक सोल्जर के रूप में विक्की कौशल को उरी में देख चुके हैं जिसमें सब उनकी एक्टिंग के दिवाने हो गए हैं. लेकिन इस किरदार के साथ विक्की ने पूरी फिल्म अपने कंधों पर संभाली है यह कहना गलत नहीं होगा. आप पर्दे पर सिर्फ सैम मानेकशॉ को देखेंगे, विक्की को नहीं.

क्यों देखें फिल्म
अगर आप देशभक्ति वाली फिल्मों और विक्की कौशल दोनों के फैन हैं तो आपको ये फिल्म जरूर देखनी चाहिए. साथ ही अगर आप ये सोच रहे हैं कि देशभक्ति की फिल्म है और इसमें सिर्फ आपको लड़ाई, गंभीरता और राजनीति ही देखने को मिलेगी तो आप गलत अनुमान लगा रहे हैं. क्योंकि फिल्म में ऐसे सीन से भरपूर है जहां विक्की का कैरेक्टर आपको खूब हंसाएगा. और आप थोड़ी देर के लिए भी बोरीयत महसूस नहीं करेंगे. एक सीन ऐसा भी है जिसमें सैम प्राइम मिनिस्टर को स्वीटी तक बोल देते हैं. फिल्म में यह भी दिखाया गया है कि सैम मानेकशॉ के मंत्रीयों और प्राइम मिनिस्टर से कैसे रिलेशन थे. सेंस ऑफ ह्यूमर, जिद्दीपन, हाजिरजवाबी और वीरता से भरपूर विक्की कौशल का कैरेक्टर आपको शुरू से लेकर आखिर तक फिल्म से बांधे रखता है.

कुछ कमियां
अब ऐसा भी नहीं है कि फिल्म में सबकुछ अच्छा ही है. कुछ कड़ियां फिल्म की कमजोर भी हैं जैसे विक्की और जीशान अय्यूब के कैरेक्टर को छोड़कर बाकी कैरेक्टर्स अपने किरदार को निभाने में कुछ कम साबित होते हैं. फातिमा सना शेख इंदिरा गांधी के किरदार में केवल लुक वाइज ही ढल पाई हैं. वहीं सान्या का कैरेक्टर भी कुछ खास यादगार नहीं हैं. इसके अलावा फिल्म में दिखाए गए महत्वपूर्ण युद्धों को ज्यादा गहराई से नहीं दिखाया गया है. अगर आपको मेघना गुलजार से 'राजी' जैसे डायरेक्शन की उम्मीद है तो आप थोड़े निराश हो सकते हैं. लेकिन इन सब कमियों पर विक्की कौशल अपने 'कौशल' से पर्दा डालने में सफल रहे हैं.

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Last Updated : Dec 2, 2023, 10:18 PM IST
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