हैदराबाद : कनुकुंतला सुभाष चंद्रबोस 'आरआरआर' के नाटू नाटू गाने के गीतकार का पूरा नाम है. आजकल वह केवल चंद्रबोस के नाम से दुनियाभर में मशहूर हो गए हैं. तेलुगु फिल्मों में काम करने वाले भारतीय गीतकार और पार्श्व गायक ने मील का पत्थर हासिल किया है और उनके द्वारा लिखे गए गाने ने बेस्ट ऑरिजिनल सांग का ऑस्कर 2023 जीतकर काफी शोहरत हासिल की है. 1995 की फिल्म ताजमहल के साथ गीतकार के रूप में करियर शुरु करने वाले सुभाष चंद्रबोस ने अपने 25 वर्षों से अधिक के करियर में 850 से अधिक फिल्मों में लगभग 3600 गीतों के लिए गीत लिखे हैं.
अपनी आवाज के साथ साथ कलम से श्रोताओं का मनोरंजन करने वाले फिल्म 'आरआरआर' के नाटू नाटू गाने के गीतकार से 'ईटीवी भारत' ने खास बातचीत की. जानिए क्या कुछ कहा सुभाष चंद्रबोस ने...
ऑस्कर के मंच पर फीलिंग
ईटीवी भारत के सवाल पर सुभाष चंद्रबोस ने कहा कि ऐसा लग रहा था कि भारत के गौरव और तेलुगु साहित्य के सम्मान को काफी ऊंचा किया है. अस अनुभूति को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है. जब गोल्डन ग्लोब और अन्य अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार आए, तो ऐसा लगने लगा था कि अबकी बार ऑस्कर भी निश्चित ही मिलेगा. यह वह क्षण था, जब सपना साकार हुआ. ये क्षण काफी भावुक थे.
पहले कभी ऑस्कर के बारे में नहीं सोचा
ईटीवी भारत के सवाल पर सुभाष चंद्रबोस ने कहा कि गाने को लिखते समय मुझे ऑस्कर के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. लेकिन... मैंने राष्ट्रीय पुरस्कार के बारे में बहुत सारे सपने देखे थे. कम से कम एक बार राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त करना मेरे जीवन का लक्ष्य और सपना था. इस सपने के पूरा होने से पहले चार अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिल गए. गोल्डन ग्लोब, क्रिटिक्स चॉइस, हॉलीवुड क्रिटिक्स एसोसिएशन और ऑस्कर पुरस्कार. ये बड़ी उपलब्धि है.
नाटू नाटू में क्या खास
ईटीवी भारत के सवाल पर सुभाष चंद्रबोस ने कहा कि वैसे तो उन्होंने अब तक कई बेहतरीन गाने लिखे हैं. लेकिन 'नाटू नाटू..' गाने को ऑस्कर मिलने बहुत गर्व महसूस हो रहा है. यह धैर्य के साथ-साथ साहित्य का भी पुरस्कार है. अपनी 27 साल की लेखन यात्रा में कभी भी कोई गाना लिखने में 19 महीने नहीं लगे. हर गाना चार से पांच दिन में पूरा हो जाता था. अगर कोई गाना बहुत लंबा चला तो भी एक महीने में खत्म हो गया. 'नाटू नाटू...' गाने को पूरा करने में 19 महीने लगे थे. बिना धैर्य खोये वे बैठे रहे. साथ ही इस गाने के एक-एक शब्द बड़ी सावधानी से गढ़े. इसलिए साहित्य के साथ-साथ इस पुरस्कार को अपने धैर्य को समर्पित करता हूं.
तेलुगु साहित्य की वजह से ऑस्कर
ईटीवी भारत के सवाल पर सुभाष चंद्रबोस ने कहा कि ऐसा लगता है कि भारतीय फिल्मों में जो सिचुएशन, सीन्स और इमोशंस हैं, वो और कहीं नहीं मिलते हैं. यही वजह है कि हमारी फिल्मों में कई तरह के गाने होते हैं. तेलुगु फिल्मों वैसे तो मैंने कई मौकों पर गाने लिखे हैं. इतना ही नहीं, कई गानों में प्रेरणा, भक्ति, प्रेम, निराशा, अलगाव, रोमांस, दंगा, संस्कृति, हास्य, मस्ती...जैसे कई मूड दिखे. लेकिन कामयाबी नाटू नाटू में मिली.
हमारी फिल्मों में ज्यादातर अंतर्राष्ट्रीय स्तर के भाव मौजूद होते हैं. हमें अपने गीत को वहां ले जाने के लिए एक मार्ग और एक मार्गदर्शक की आवश्यकता होती है. तभी सब कुछ संभव हो पाता है. फिल्म 'आरआरआर' ने वास्तव में इसे संभव बना दिया. सुभाष चंद्रबोस ने कहा कि फिल्म के डायरेक्टर राजामौली का गाना 'नाटू नटू' तो इतना आगे बढ़ गया और पूरी दुनिया में छा गया.
ऑस्कर विजेता बनने के बाद लेखन पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में सुभाष चंद्रबोस ने कहा कि ऑस्कर का वजन साढ़े तीन किलो, गोल्डन ग्लोब का वजन सात किलो और क्रिटिक्स चॉइस का वजन छह किलो है. यह काफी वजन है. इसको लेकर संभलकर चलना होगा.