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कारगिल योद्धा धर्मवीर से सुनें रण की कहानी, कैसे तोलोलिंग पर लहराया था तिरंगा

कारगिल युद्ध का हिस्सा रहे धर्मवीर का जन्म अटाई मूसेपुर गांव में हुआ था. धर्मवीर सिंह ने गांव के स्कूल से ही प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की, जब धर्मवीर दूसरी कक्षा में थे तभी स्कूल से घर जाते समय उन्होंने दो आर्मी जवानों को वर्दी में देखा. इसके बाद से उन्होंने भी सेना में भर्ती होकर देश की रक्षा की ठान ली.

story of Kargil war by retire soldier Dharamvir grater noida
कारगिल योद्धा धर्मवीर से सुनें रण की कहानी, कैसे चोटी पर लहराया था तिरंगा
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Published : Jul 25, 2020, 10:44 PM IST

Updated : Jul 26, 2020, 12:30 PM IST

नई दिल्ली/ग्रे. नोएडा: कारगिल युद्ध को 21 साल बीत चुके हैं. 21 साल बीतने के बाद आज भी भारतीय सेना के जज्बे और बलिदान को देश का बच्चा-बच्चा तक याद करता है. दो दशक पहले पाकिस्तान के नापाक इरादों पर भारतीय सैनिकों का जज्बा भारी पड़ा था और कारगिल युद्ध में भारतीय जवानों विजय पताका फहराई. आइए इसकी पूरी कहानी जानते हैं रिटायर्ड फौजी और कारगिल योद्धा धर्मवीर सिंह से.

देखिए ये रिपोर्ट


भारतीय आर्मी के साथ ही तकनीकी विभाग की भी इस जीत में अहम भूमिका रही है. भारतीय सेना के जवानों ने तकनीकी मदद से हवाओं के रुख का सही आंकलन कर तोप और रॉकेट लॉन्चर से दुश्मनों के खेमे में हमला बोला था.

तोपखाना ब्रिगेड से भेजे गए थे छह जवान

धर्मवीर सिंह 11 दिसंबर, 1985 को सेना में भर्ती हुए थे और उनकी तैनाती 9 तोपखाना ब्रिगेड हेड क्वार्टर मेरठ में थी. तोपखाना ब्रिगेड हेडक्वार्टर को एक रोज सूचना मिली कि कारगिल पर जवानों की जरूरत है तो उनकी तोपखाना ब्रिगेड से 6 जवान भेजे गए. इसमें धर्मवीर भी शामिल थे.

उन्होंने बताया कि तोलोलिंग की ऊंचाई और दुर्गम पहाड़ियों में दुश्मन से खुद को बचाना और उन पर हमला करना बहुत ही कठिन था. ऊंचाई पर बैठे दुश्मन जवान कभी भी हमला कर देते थे, लेकिन नीचे से ऊपर की तरफ हमला करना बहुत ही मुश्किल हो पा रहा था.

हवा के रुख की वजह से दुश्मनों के कैंप पर रॉकेट लॉन्चर सही से हमला नहीं कर पा रहे थे. इसके लिए उन्होंने तकनीक का इस्तेमाल किया. उन्होंने गोला डालने से पहले हवा के रुख, दुश्मन के खेमे की ऊंचाई का आंकलन शुरू किया. इसकी मदद से दुश्मन पर वार करने में मदद मिलती थी.

सर्तकता के साथ हवा, ऊंचाई और तापमान तीनों का आंकलन किया गया और उसके बाद दुश्मन खेमे पर दोबारा फिर से एक साथ हमला किया गया. इस हमले से बौखलाए दुश्मनों ने भी फिर से हमला किया, लेकिन पाकिस्तान के सैनिकों के हमले से बचे और इस तकनीक के जरिए उन पर कई वार किए गए. धर्मवीर बताते हैं कि हालांकि इस लड़ाई में उनके साथ के 18 जवान शहीद हुए थे.

जीत के बाद सारे दर्द हुए थे दूर

कारगिल योद्धा धर्मवीर ने बताया कि जीत के बाद जवानों के अंदर एक अलग ही जोश भरा हुआ था. उनका कहना है कि पहली पहाड़ी तोलोलिंग फतह की. इसके बाद हमार गम खुशी में बदल गया फिर टाइगर हिल में बैठे दुश्मनों को जवाब देने में अधिक समय नहीं लगा और 2 हफ्ते के बाद टाइगर हिल पर भी तिरंगा फहरा दिया गया.

नई दिल्ली/ग्रे. नोएडा: कारगिल युद्ध को 21 साल बीत चुके हैं. 21 साल बीतने के बाद आज भी भारतीय सेना के जज्बे और बलिदान को देश का बच्चा-बच्चा तक याद करता है. दो दशक पहले पाकिस्तान के नापाक इरादों पर भारतीय सैनिकों का जज्बा भारी पड़ा था और कारगिल युद्ध में भारतीय जवानों विजय पताका फहराई. आइए इसकी पूरी कहानी जानते हैं रिटायर्ड फौजी और कारगिल योद्धा धर्मवीर सिंह से.

देखिए ये रिपोर्ट


भारतीय आर्मी के साथ ही तकनीकी विभाग की भी इस जीत में अहम भूमिका रही है. भारतीय सेना के जवानों ने तकनीकी मदद से हवाओं के रुख का सही आंकलन कर तोप और रॉकेट लॉन्चर से दुश्मनों के खेमे में हमला बोला था.

तोपखाना ब्रिगेड से भेजे गए थे छह जवान

धर्मवीर सिंह 11 दिसंबर, 1985 को सेना में भर्ती हुए थे और उनकी तैनाती 9 तोपखाना ब्रिगेड हेड क्वार्टर मेरठ में थी. तोपखाना ब्रिगेड हेडक्वार्टर को एक रोज सूचना मिली कि कारगिल पर जवानों की जरूरत है तो उनकी तोपखाना ब्रिगेड से 6 जवान भेजे गए. इसमें धर्मवीर भी शामिल थे.

उन्होंने बताया कि तोलोलिंग की ऊंचाई और दुर्गम पहाड़ियों में दुश्मन से खुद को बचाना और उन पर हमला करना बहुत ही कठिन था. ऊंचाई पर बैठे दुश्मन जवान कभी भी हमला कर देते थे, लेकिन नीचे से ऊपर की तरफ हमला करना बहुत ही मुश्किल हो पा रहा था.

हवा के रुख की वजह से दुश्मनों के कैंप पर रॉकेट लॉन्चर सही से हमला नहीं कर पा रहे थे. इसके लिए उन्होंने तकनीक का इस्तेमाल किया. उन्होंने गोला डालने से पहले हवा के रुख, दुश्मन के खेमे की ऊंचाई का आंकलन शुरू किया. इसकी मदद से दुश्मन पर वार करने में मदद मिलती थी.

सर्तकता के साथ हवा, ऊंचाई और तापमान तीनों का आंकलन किया गया और उसके बाद दुश्मन खेमे पर दोबारा फिर से एक साथ हमला किया गया. इस हमले से बौखलाए दुश्मनों ने भी फिर से हमला किया, लेकिन पाकिस्तान के सैनिकों के हमले से बचे और इस तकनीक के जरिए उन पर कई वार किए गए. धर्मवीर बताते हैं कि हालांकि इस लड़ाई में उनके साथ के 18 जवान शहीद हुए थे.

जीत के बाद सारे दर्द हुए थे दूर

कारगिल योद्धा धर्मवीर ने बताया कि जीत के बाद जवानों के अंदर एक अलग ही जोश भरा हुआ था. उनका कहना है कि पहली पहाड़ी तोलोलिंग फतह की. इसके बाद हमार गम खुशी में बदल गया फिर टाइगर हिल में बैठे दुश्मनों को जवाब देने में अधिक समय नहीं लगा और 2 हफ्ते के बाद टाइगर हिल पर भी तिरंगा फहरा दिया गया.

Last Updated : Jul 26, 2020, 12:30 PM IST
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