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मोहन भागवत ने कृष्णा नंद सागर की पुस्तक 'विभाजन कालीन भारत के साक्षी' का किया विमोचन

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Published : Nov 28, 2021, 6:27 PM IST

नोएडा के सेक्टर-12 में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कृष्णा नंद सागर की पुस्तक 'विभाजन कालीन भारत के साक्षी' (Witness of Partition India) पुस्तक का विमोचन किया. इस दौरान उन्होंने कहा कि मातृभूमि का विभाजन न मिटने वाली वेदना है. यह वेदना तभी मिटेगी जब विभाजन निरस्त होगा.

rss chief mohan bhagvat
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत

नई दिल्ली/नोएडा : नोएडा में कृष्णा नंद सागर की पुस्तक 'विभाजन कालीन भारत के साक्षी' पुस्तक का विमोचन समारोह में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत (RSS Chief Mohan Bhagwat) शिरकत किए. उन्होंने ‘विभाजन कालीन भारत के साक्षी’ (Witness of Partition India) का विमोचन किया. इस अवसर उपस्थित लोगों को सम्बोधित करते हुए मोहन भागवत ने कहा कि मातृभूमि का विभाजन (division of india) न मिटने वाली वेदना है. यह वेदना तभी मिटेगी जब विभाजन निरस्त होगा. उन्होने कहा कि पूर्व में हुईं गलतियों से दुखी होने की नहीं अपितु सबक लेने की आवश्यकता है. गलतियों को छिपाने से उनसे मुक्ति नहीं मिलेगी.

मोहन भागवत ने कहा कि यह राजनीति नहीं बल्कि हमारे अस्तित्व का विषय है. इससे किसी को सुख नहीं मिला. हम विभाजन के दर्दनाक इतिहास का दोहराव नहीं होने देंगे. उन्होंने कहा विभाजन का उपाय, उपाय नहीं था. विभाजन से न तो भारत सुखी है और न वे सुखी हैं, जिन्होंने इस्लाम के नाम पर विभाजन किया.

नोएडा सेक्टर-12 स्थित स्कूल में किताब के विमोचन समारोह के दौरान भागवत ने कहा कि इसे तब से समझना होगा जब भारत पर इस्लाम का आक्रमण (invasion of islam in india) हुआ. गुरु नानक देव जी ने सावधान करते हुए कहा था कि यह आक्रमण देश और समाज पर हैं किसी एक पूजा पद्धति पर नहीं. उन्होंने कहा कि इस्लाम की ही तरह निराकार की पूजा भी प्राचीन भारत में भी होती थी किंतु उसको भी नहीं छोड़ा गया क्योंकि इसका पूजा से संबंध नहीं था. अपितु प्रवत्ति से था और प्रवत्ति यह थी कि हम ही सही हैं, बाकी सब गलत हैं और जिनको रहना है उन्हें हमारे जैसा होना पड़ेगा या वे हमारी दया पर ही जीवित रहेंगे. इस प्रवत्ति का लगातार आक्रमण चला और हर बार मुंह की खानी पड़ी.

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भागवत ने देश की स्वतंत्रता (Freedom of india) को लेकर संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार की दूरदर्शिता के बारे में बताते हुए कहा कि वर्ष 1930 में डॉ. हेडगेवार ने सावधान करते हुए हिन्दू समाज को संगठित होने को कहा था. भागवत ने कहा कि भीष्म पितामह ने कहा था कि विभाजन कोई समाधान नहीं है, जबकि श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाते हुए कहा कि रणछोड़ कर मत भागो. परन्तु हमारे नेता मैदान छोड़कर भाग गए. मुट्ठी भर लोगों को सन्तुष्ट करने के लिए हमने कई समझौते किए.

ये भी पढ़ें : मुरादनगर श्मशान घाट हादसा : गुजर गया साल न मिली नौकरी, न इंसाफ

नई दिल्ली/नोएडा : नोएडा में कृष्णा नंद सागर की पुस्तक 'विभाजन कालीन भारत के साक्षी' पुस्तक का विमोचन समारोह में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत (RSS Chief Mohan Bhagwat) शिरकत किए. उन्होंने ‘विभाजन कालीन भारत के साक्षी’ (Witness of Partition India) का विमोचन किया. इस अवसर उपस्थित लोगों को सम्बोधित करते हुए मोहन भागवत ने कहा कि मातृभूमि का विभाजन (division of india) न मिटने वाली वेदना है. यह वेदना तभी मिटेगी जब विभाजन निरस्त होगा. उन्होने कहा कि पूर्व में हुईं गलतियों से दुखी होने की नहीं अपितु सबक लेने की आवश्यकता है. गलतियों को छिपाने से उनसे मुक्ति नहीं मिलेगी.

मोहन भागवत ने कहा कि यह राजनीति नहीं बल्कि हमारे अस्तित्व का विषय है. इससे किसी को सुख नहीं मिला. हम विभाजन के दर्दनाक इतिहास का दोहराव नहीं होने देंगे. उन्होंने कहा विभाजन का उपाय, उपाय नहीं था. विभाजन से न तो भारत सुखी है और न वे सुखी हैं, जिन्होंने इस्लाम के नाम पर विभाजन किया.

नोएडा सेक्टर-12 स्थित स्कूल में किताब के विमोचन समारोह के दौरान भागवत ने कहा कि इसे तब से समझना होगा जब भारत पर इस्लाम का आक्रमण (invasion of islam in india) हुआ. गुरु नानक देव जी ने सावधान करते हुए कहा था कि यह आक्रमण देश और समाज पर हैं किसी एक पूजा पद्धति पर नहीं. उन्होंने कहा कि इस्लाम की ही तरह निराकार की पूजा भी प्राचीन भारत में भी होती थी किंतु उसको भी नहीं छोड़ा गया क्योंकि इसका पूजा से संबंध नहीं था. अपितु प्रवत्ति से था और प्रवत्ति यह थी कि हम ही सही हैं, बाकी सब गलत हैं और जिनको रहना है उन्हें हमारे जैसा होना पड़ेगा या वे हमारी दया पर ही जीवित रहेंगे. इस प्रवत्ति का लगातार आक्रमण चला और हर बार मुंह की खानी पड़ी.

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भागवत ने देश की स्वतंत्रता (Freedom of india) को लेकर संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार की दूरदर्शिता के बारे में बताते हुए कहा कि वर्ष 1930 में डॉ. हेडगेवार ने सावधान करते हुए हिन्दू समाज को संगठित होने को कहा था. भागवत ने कहा कि भीष्म पितामह ने कहा था कि विभाजन कोई समाधान नहीं है, जबकि श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाते हुए कहा कि रणछोड़ कर मत भागो. परन्तु हमारे नेता मैदान छोड़कर भाग गए. मुट्ठी भर लोगों को सन्तुष्ट करने के लिए हमने कई समझौते किए.

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