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वोट देने जाते हैं 90 किलोमीटर दूर, ये है हाईटेक शहर का पिछड़ा गांव

ग्रेटर नोएडा के दलेलपुर जाने का रास्ता फरीदाबाद होकर जाता है. दिल्ली के कालिंदी कुंज से करीब 50 किलोमीटर दूर दलेलपुर गांव है. दलेलपुर गांव के लोगों को वोट डालने जाने पर पहले उन्हें फरीदाबाद से होकर निकलना पड़ेगा, फिर दिल्ली, इसके बाद नोएडा और तब आखिरी पड़ाव के रूप में ग्रेटर नोएडा जाना पड़ेगा

शहर का पिछड़ा गांव
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Published : Mar 21, 2019, 6:58 AM IST

नई दिल्ली/ग्रेटर नोएडा: अगर पूरी शिद्दत से किसी चीज़ को चाहो तो सारी कायनात आपको उससे मिलाने में जुट जाती है. ये डायलॉग दिलेलपुर गांव के निवासियों के लिए फिल्मी साबित हुआ है. गांव के लोग पूरी शिद्दत से तमाम दुश्वारीयों को झेलते हुए यमुना नदी को पार कर मतदान करने जाते हैं. या फिर अपने संवैधानिक अधिकारों का इस्तेमाल करने के दूसरा ऑप्शन उन्हें 90 किलोमीटर दूर जाकर मतदान करना पड़ता है.

शहर का पिछड़ा गांव

आपको बता दें कि गांव का वजूद देश के पहले आम चुनाव यानी 1952 के समय से है. लेकिन जिला प्रशासन और सरकार द्वारा आज तक कोई ऐसी व्यवस्था नहीं की गई के गांव के लोग अपने ही गांव में मतदान केंद्र बना दिया जाए जिससे कि वह अपने गांव में ही मतदान कर सकें. ग्रामीणों का कहना है कि इन लोगों से आज तक ना तो किसी नेताओं ने वोट मांगें हैं और ना ही इनके गांव का विकास किया गया है.

ग्रेटर नोएडा के दलेलपुर जाने का रास्ता फरीदाबाद होकर जाता है. दिल्ली के कालिंदी कुंज से करीब 50 किलोमीटर दूर दलेलपुर गांव है.दलेलपुर गांव का पोलिंग बूथ गुलावली में है, जो यमुना एक्सप्रेस-वे से सटा है. अगर इस गांव के लोग वोट डालने जाएं, तो पहले उन्हें फरीदाबाद से होकर निकलना पड़ेगा, फिर दिल्ली, इसके बाद नोएडा और तब आखिरी पड़ाव के रूप में ग्रेटर नोएडा जाना पड़ेगा.

पोलिंग बूथ पर पहुंचने का एक दूसरा जरिया भी है, जो जोखिम भरा है. इसके लिए गांव के लोगों को यमुना नदी लांघनी पड़ती है. यह भले शॉर्टकट रास्ता है, लेकिन यमुना तट पर पहुंचने के लिए गांववालों को पहले तीन किलोमीटर पैदल मार्च करना पड़ता है, फिर नाव के सहारे वह नदी पार करते हैं. पार उतरने के बाद एक बार फिर पांच किलोमीटर पैदल चल कर मतदान करने पहुंचते हैं.

यह गांव 1952 के समय से है, पहले दलेलपुर गांव फरीदाबाद में था. 1982 के बाद से ग्रेटर नोएडा का हिस्सा बना. दरअसल 1982 में जिला गौतमबुद्ध नगर और हरियाणा की सीमा तय की गई, जिसके बाद यह गांव गौतमबुद्ध नगर में शामिल हुआ. आज गांव में करीब 50-60 घर हैं और आबादी करीब 300 की, जिनमें से 160 वोटर हैं.

गांव वालों का कहना है कि कई बार अधिकारियों से इस बाबत शिकायत की लेकिन गांव में पोलिंग बूथ नहीं बनाया गया. जान जोखिम में डालकर अपने मत का प्रयोग करने के लिए हरियाणा से होते हुए दिल्ली और उसके बाद उत्तर प्रदेश की सीमा में पहुंचकर नोएडा के गुलावली गांव में जाते हैं जहां पर अपने मत का प्रयोग करते हैं.

अब तक विकास को तरसते इस गांव की बिजली फरीदाबाद के ही भरोसे है. सड़कें बदहाल हैं और स्वास्थ्य तथा शिक्षा जैसी बुनियादी जरूरतों के लिए इन लोगों को फरीदाबाद का ही मुंह देखना पड़ता है. गांव वाले बताते हैं कि चुनाव के समय भी उम्मीदवार नहीं, बस उनके नुमाइंदे ही दलेलपुर गांव पहुंचते हैं.

चुनावी मौसम होने के बाद भी गांव में चुनाव का शोर है और ना ही चुनाव की चर्चा है. अधिकारियों ने भी इस गांव से किनारा किया हुआ है, फिर भी वोटिंग करने को लेकर इनके हौसले देखने लायक हैं. जोखिम होने के बावजूद ये मतदान करना नहीं भूलते, शायद इसी आस में कि कभी तो कोई इनकी सुध लेगा.

नई दिल्ली/ग्रेटर नोएडा: अगर पूरी शिद्दत से किसी चीज़ को चाहो तो सारी कायनात आपको उससे मिलाने में जुट जाती है. ये डायलॉग दिलेलपुर गांव के निवासियों के लिए फिल्मी साबित हुआ है. गांव के लोग पूरी शिद्दत से तमाम दुश्वारीयों को झेलते हुए यमुना नदी को पार कर मतदान करने जाते हैं. या फिर अपने संवैधानिक अधिकारों का इस्तेमाल करने के दूसरा ऑप्शन उन्हें 90 किलोमीटर दूर जाकर मतदान करना पड़ता है.

शहर का पिछड़ा गांव

आपको बता दें कि गांव का वजूद देश के पहले आम चुनाव यानी 1952 के समय से है. लेकिन जिला प्रशासन और सरकार द्वारा आज तक कोई ऐसी व्यवस्था नहीं की गई के गांव के लोग अपने ही गांव में मतदान केंद्र बना दिया जाए जिससे कि वह अपने गांव में ही मतदान कर सकें. ग्रामीणों का कहना है कि इन लोगों से आज तक ना तो किसी नेताओं ने वोट मांगें हैं और ना ही इनके गांव का विकास किया गया है.

ग्रेटर नोएडा के दलेलपुर जाने का रास्ता फरीदाबाद होकर जाता है. दिल्ली के कालिंदी कुंज से करीब 50 किलोमीटर दूर दलेलपुर गांव है.दलेलपुर गांव का पोलिंग बूथ गुलावली में है, जो यमुना एक्सप्रेस-वे से सटा है. अगर इस गांव के लोग वोट डालने जाएं, तो पहले उन्हें फरीदाबाद से होकर निकलना पड़ेगा, फिर दिल्ली, इसके बाद नोएडा और तब आखिरी पड़ाव के रूप में ग्रेटर नोएडा जाना पड़ेगा.

पोलिंग बूथ पर पहुंचने का एक दूसरा जरिया भी है, जो जोखिम भरा है. इसके लिए गांव के लोगों को यमुना नदी लांघनी पड़ती है. यह भले शॉर्टकट रास्ता है, लेकिन यमुना तट पर पहुंचने के लिए गांववालों को पहले तीन किलोमीटर पैदल मार्च करना पड़ता है, फिर नाव के सहारे वह नदी पार करते हैं. पार उतरने के बाद एक बार फिर पांच किलोमीटर पैदल चल कर मतदान करने पहुंचते हैं.

यह गांव 1952 के समय से है, पहले दलेलपुर गांव फरीदाबाद में था. 1982 के बाद से ग्रेटर नोएडा का हिस्सा बना. दरअसल 1982 में जिला गौतमबुद्ध नगर और हरियाणा की सीमा तय की गई, जिसके बाद यह गांव गौतमबुद्ध नगर में शामिल हुआ. आज गांव में करीब 50-60 घर हैं और आबादी करीब 300 की, जिनमें से 160 वोटर हैं.

गांव वालों का कहना है कि कई बार अधिकारियों से इस बाबत शिकायत की लेकिन गांव में पोलिंग बूथ नहीं बनाया गया. जान जोखिम में डालकर अपने मत का प्रयोग करने के लिए हरियाणा से होते हुए दिल्ली और उसके बाद उत्तर प्रदेश की सीमा में पहुंचकर नोएडा के गुलावली गांव में जाते हैं जहां पर अपने मत का प्रयोग करते हैं.

अब तक विकास को तरसते इस गांव की बिजली फरीदाबाद के ही भरोसे है. सड़कें बदहाल हैं और स्वास्थ्य तथा शिक्षा जैसी बुनियादी जरूरतों के लिए इन लोगों को फरीदाबाद का ही मुंह देखना पड़ता है. गांव वाले बताते हैं कि चुनाव के समय भी उम्मीदवार नहीं, बस उनके नुमाइंदे ही दलेलपुर गांव पहुंचते हैं.

चुनावी मौसम होने के बाद भी गांव में चुनाव का शोर है और ना ही चुनाव की चर्चा है. अधिकारियों ने भी इस गांव से किनारा किया हुआ है, फिर भी वोटिंग करने को लेकर इनके हौसले देखने लायक हैं. जोखिम होने के बावजूद ये मतदान करना नहीं भूलते, शायद इसी आस में कि कभी तो कोई इनकी सुध लेगा.




नाव के सहारे तमाम दुश्वारीयों को झेल कर मतदान करने वाले दिलेलपुर गाँव के निवासियों के जिंदगी नहीं पहुंची है, विकास की किरण

 

Noida  अगर पूरी शिद्दत से किसी चीज़ को चाहो तो सारी कायनात आपको उससे मिलाने में जुट जाती है... ये डायलॉक दिलेलपुर गाँव के निवासियों के लिए फिल्मी साबित हुआ है, वे पूरी शिद्दत से तमाम दुश्वारीयों को झेल कर अपने संवैधानिक अधिकारो प्रयोग करने के लिए 90 किलोमीटर चलना पड़ता है। पोलिंग बूथ पर पहुंचने का एक दूसरा जरिया भी है, जो जोखिम भरा है। इसके लिए गांव के लोगों को यमुना नदी लांघनी पड़ती है। गांव का वजूद देश के पहले आम चुनाव यानी 1952 के समय से है। लेकिन जिला प्रशासन व सरकार के द्वारा आज तक कोई ऐसी व्यवस्था नहीं की गई के इन लोगों को उन्हीं के गांव में मतदान केंद्र बनाकर इनको भी सहुलियत दी जा सके लोगों का कहना है कि इन लोगों से आज तक ना तो किसी नेता के द्वारा वोट मांगी गई है और ना ही इनके गांव का विकास किया गया है।

 

ग्रेटर नोएडा के दलेलपुर जाने का रास्ता फरीदाबाद होकर है। दिल्ली के कालिंदी कुंज से करीब 50 किलोमीटर दूर। अगर इस गांव के लोग वोट डालने जाएं, तो पहले उन्हें फरीदाबाद से होकर निकलना पड़ेगा..फिर दिल्ली, इसके बाद नोएडा और तब आखिरी पड़ाव के रूप में ग्रेटर नोएडा। दलेलपुर गांव का पोलिंग बूथ गुलावली में है, जो यमुना एक्सप्रेस-वे से सटा है। पोलिंग बूथ पर पहुंचने का एक दूसरा जरिया भी है, जो जोखिम भरा है। इसके लिए गांव के लोगों को यमुना नदी लांघनी पड़ती है। यह भले शॉर्टकट रास्ता है, लेकिन यमुना तट पर पहुंचने के लिए गांववालों को पहले तीन किलोमीटर पैदल मार्च करना पड़ता है, फिर नाव का आसरा होता है और उस पार उतरने के बाद एक बार फिर पांच किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है।

बाईट :- बाल किशन { ग्रामीण

बाईट :- महेन्द्र सिंह { ग्रामीण }

 

गांव का वजूद देश के पहले आम चुनाव यानी 1952 के समय से है। पहले यह गांव फरीदाबाद में था। 1982 के बाद से ग्रेटर नोएडा का हिस्सा है। दरअसल 1982 में जिला गौतमबुद्ध नगर और हरियाणा की सीमा तय की गई, जिसके बाद यह गांव गौतमबुद्ध नगर में शामिल हुआ। आज गांव में करीब 50-60 घर हैं और आबादी करीब 300 की, जिनमें से 160 वोटर हैं। गांव वालों का कहना है कि कई बार अधिकारियों से शिकायत करने के बावजूद भी इस गांव में पोलिंग बूथ नहीं बनाया गया है जिसके चलते लोग अपने आपको ठगा सा महसूस करते हैं वहीं दूसरी तरफ जान को जोखिम में डालकर अपने मत का प्रयोग करने के लिए हरियाणा से होते हुए दिल्ली और उसके बाद उत्तर प्रदेश की सीमा में पहुंचकर नोएडा के गुलावली गांव में जाते हैं जहां पर अपने मत का प्रयोग कर पाते हैं

बाईट :- हरि श्याम { ग्रामीण }

बाईट :- नीरज त्यागी { ग्रामीण }

 

अब तक विकास को तरसते इस गांव की बिजली फरीदाबाद के ही भरोसे है। सड़कें बदहाल हैं और स्वास्थ्य तथा शिक्षा जैसी बुनियादी जरूरतों के लिए इन लोगों को फरीदाबाद का ही मुंह देखना पड़ता है। गांव वाले बताते हैं कि चुनाव के समय भी उम्मीदवार नहीं, बस उनके नुमाइंदे ही यहां पहुंचते हैं। चुनावी मौसम होने के बाद भी गांव में चुनाव का शोर  है और ना ही चुनाव की चर्चा है, जिसके चलते अधिकारियो ने भी इस गांव से किनारा किया हुआ है, फिर भी वोटिंग करने को लेकर इनके हौसले देखने लायक हैं। जोखिम होने के बावजूद ये मतदान करना नहीं भूलते..शायद इसी आस में कि कभी तो कोई इनकी सुध लेगा।




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