नई दिल्ली/नोएडा: कोरोना महामारी की चेन तोड़ने के लिए कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग मुख्य कड़ी है. कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग का दावा कई प्राइवेट ऐप भी कर रही है. जिससे प्राइवेसी का खतरा बढ़ जाता है. साइबर क्राइम की संभावनाएं बढ़ जाती हैं.
प्राइवेट कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग एप्स से खतरे, क्या ऐसी ऐप कारगार है और ऐप के इनके इस्तेमाल से साइबर क्राइम का खतरा है. इन सभी सवालों के साइबर एक्सपर्ट अमित दुबे ने ईटीवी भारत से खास बात कर जवाब दिए हैं.
प्राइवेट ऐप से साइबर खतरा
साइबर एक्सपर्ट अमित दुबे ने बातचीत के दौरान बताया कि एप्स को डाउनलोड करने के बाद मोबाइल नंबर, ई-मेल आईडी और लोकेशन सबसे पहले शेयर करना होता है. ऐसे में अगर ऐप की सिक्योरिटी प्रॉपर न हो, तो कोई भी उस ऐप को हैक कर करोड़ों लोगों का डाटा गलत इस्तेमाल में ला सकता है या फिर उस डाटा को बेचा जा सकता है. जिससे साइबर क्राइम का खतरा बढ़ जाता है. उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग ऐप कई देशों में कारगर रहा, वहीं कई देश जैसे ऑस्ट्रेलिया में डाउनलोड ही नहीं किया. ऐसे में सरकारी ऐप ज्यादा सुरक्षित है.
देश में डाटा पॉलिसी लॉ की जरूरत
साइबर एक्सपर्ट ने बताया कि कैम स्कैनर, चाइनीज ऐप, ऑनलाइन गेम्स से भी प्राइवेसी को खतरा है. चीन की ऐप को इसलिए बंद किया क्योंकि वो भारत की प्राइवेसी को खतरा हैं. इसलिए बंद किया गया है. कोरोना महामारी का फायदा उठाकर कई प्राइवेट कंपनियों ने एप्स लॉन्च की है. लोग एप्स को इंस्टॉल कर रहे हैं. लेकिन प्राइवेट ऐप की कोई जवाबदेही नहीं है. क्योंकि देश में डाटा पॉलिसी लॉ नहीं है. अभी इस ड्राफ्ट पर संसद में चर्चा चल रही है. फिलहाल ऐसी प्राइवेट ऐप प्राइवेसी को एक बड़ा खतरा है.
डाटा का होता है गलत इस्तेमाल
साइबर क्राइम एक्सपर्ट अमित दुबे ने ईटीवी भारत के दर्शकों से अपील करते हुए कहा कि कोई भी चीज फ्री में नहीं मिलती है. उसके पीछे कोई ना कोई मकसद होता है. ऐसे में ये प्राइवेट एप्स प्राइवेसी पर प्रहार है. निजी कंपनियां आपका डाटा इकट्ठा कर उसे या तो बेच देती है या आपके विरुद्ध ही गलत इस्तेमाल करती हैं.