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बच्चे स्कूल तक नहीं बल्कि बच्चों तक पहुंचा स्कूल, ऐसे संवर रहा भविष्य

गुरुग्राम में 5 ऐसी जगहों तक संदीप राजपूत नाम के एक व्यक्ति स्कूल ले गए जहां शिक्षा के लिए लंबी जद्दोजहद के बाद भी बहुत कुछ हासिल नहीं होता. देखिए कैसे वो मोबाइल स्कूल से बच्चों का भविष्य संवार रहे हैं.

मोबाइल स्कूल etv bharat
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Published : Sep 2, 2019, 2:02 AM IST

नई दिल्ली/गुरुग्रामः हरियाणा सरकार ने पिछले दिनों बहुत सारे सरकारी स्कूल मर्ज किए हैं या फिर बंद किए हैं जिसके पीछे तर्क ये दिया गया था कि स्कूलों में बच्चे नहीं हैं या बहुत कम हैं इसलिए सरकार ने ये फैसला लिया है. जिससे लगता था कि शायद बच्चे स्कूल नहीं आना चाहते या उनके परिजन भेजना नहीं चाहते लेकिन गुरुग्राम से आई इस खबर ने उन दावों पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं. क्योंकि यहां मोबाइल स्कूल न सिर्फ बच्चों तक पहुंचा है बल्कि यहां काफी संख्या में बच्चे पढ़ने भी आ रहे हैं.

बच्चों तक पहुंचा मोबाइल स्कूल

5 मोबाइल स्कूलों में पढ़ रहे सैकड़ों बच्चे
मोबाइल स्कूल के संस्थापक संदीप राजपूत का कहना है कि वो गुरुग्राम के अलग-अलग हिस्सों में 5 मोबाइल स्कूल चला रहे हैं. और हर स्कूल में 50 से 60 बच्चे पढ़ते हैं. मतलब 300 से ज्यादा बच्चों के भविष्य को ये मौबाइल स्कूल एक दिशा दे रहा है.

बच्चों तक ऐसे पहुंचा स्कूल
संदीप राजपूत ने जब ये आइडिया सोचा था तब उन्हें नहीं लगा था कि वो इसे पूरा कर पाएंगे क्यों एक मिडिल क्लास आदमी के लिए ये सब करना उतना आसान नहीं है लेकिन उन्होंने हिम्मत दिखाई और उन गरीब बच्चों तक स्कूल पहुंचा दिया जो गुरुग्राम जैसे महंगे शहर में पढ़ाई के बारे में सोच भी नहीं सकते. उनकी इस मुहिम से प्रभावित होकर अब बहुत सारे लोग उनसे जुड़ चुके हैं. जो लोग पढ़ा नहीं सकते वो अलग-अलग तरीकों से मदद करते हैं जैसे कोई बच्चों को ड्रेस दे जाता है, कोई पानी पहुंचा देता है तो कोई बिजली दे रहा है.

ऐसे चल रहे हैं 5 मोबाइल स्कूल
इन स्कूलों की स्थापना करने वाले संदीप राजपूत बताते हैं कि बहुत सारे वॉलंटियर उनका इस काम में साथ दे रहे हैं. वो वक्त निकालकर अलग-अलग दिन बच्चों को पढ़ाते हैं. कुछ लोग ऐसे भी हैं जो पूरा वक्त बच्चों को देते हैं जैसे गुरुग्राम की ही रहने वाली गीता छाबरा जो रिटायर्ड टीचर हैं पति रिटायर्ड कर्नल हैं और अब बिजनेस करते हैं. उनके दो बेटे हैं जिनमें से एक सेना में है और एक अमेरिका में रहता है तो वो अपना पूरा वक्त इन गरीब बच्चों को दे देती हैं.

बच्चे खुश और परिजन भी खुश
जो बच्चे यहां पढ़ने आते हैं उनमें ज्यादातर स्कूल से ड्रॉपआउट हैं कुछ कभी स्कूल जाते ही नहीं थे क्योंकि पैसे की कमी थी लेकिन अब घर के पास फ्री में शिक्षा मिल रही है तो सभी बच्चे खुश हैं और उनके माता-पिता तो और भी ज्यादा खुश.

नई दिल्ली/गुरुग्रामः हरियाणा सरकार ने पिछले दिनों बहुत सारे सरकारी स्कूल मर्ज किए हैं या फिर बंद किए हैं जिसके पीछे तर्क ये दिया गया था कि स्कूलों में बच्चे नहीं हैं या बहुत कम हैं इसलिए सरकार ने ये फैसला लिया है. जिससे लगता था कि शायद बच्चे स्कूल नहीं आना चाहते या उनके परिजन भेजना नहीं चाहते लेकिन गुरुग्राम से आई इस खबर ने उन दावों पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं. क्योंकि यहां मोबाइल स्कूल न सिर्फ बच्चों तक पहुंचा है बल्कि यहां काफी संख्या में बच्चे पढ़ने भी आ रहे हैं.

बच्चों तक पहुंचा मोबाइल स्कूल

5 मोबाइल स्कूलों में पढ़ रहे सैकड़ों बच्चे
मोबाइल स्कूल के संस्थापक संदीप राजपूत का कहना है कि वो गुरुग्राम के अलग-अलग हिस्सों में 5 मोबाइल स्कूल चला रहे हैं. और हर स्कूल में 50 से 60 बच्चे पढ़ते हैं. मतलब 300 से ज्यादा बच्चों के भविष्य को ये मौबाइल स्कूल एक दिशा दे रहा है.

बच्चों तक ऐसे पहुंचा स्कूल
संदीप राजपूत ने जब ये आइडिया सोचा था तब उन्हें नहीं लगा था कि वो इसे पूरा कर पाएंगे क्यों एक मिडिल क्लास आदमी के लिए ये सब करना उतना आसान नहीं है लेकिन उन्होंने हिम्मत दिखाई और उन गरीब बच्चों तक स्कूल पहुंचा दिया जो गुरुग्राम जैसे महंगे शहर में पढ़ाई के बारे में सोच भी नहीं सकते. उनकी इस मुहिम से प्रभावित होकर अब बहुत सारे लोग उनसे जुड़ चुके हैं. जो लोग पढ़ा नहीं सकते वो अलग-अलग तरीकों से मदद करते हैं जैसे कोई बच्चों को ड्रेस दे जाता है, कोई पानी पहुंचा देता है तो कोई बिजली दे रहा है.

ऐसे चल रहे हैं 5 मोबाइल स्कूल
इन स्कूलों की स्थापना करने वाले संदीप राजपूत बताते हैं कि बहुत सारे वॉलंटियर उनका इस काम में साथ दे रहे हैं. वो वक्त निकालकर अलग-अलग दिन बच्चों को पढ़ाते हैं. कुछ लोग ऐसे भी हैं जो पूरा वक्त बच्चों को देते हैं जैसे गुरुग्राम की ही रहने वाली गीता छाबरा जो रिटायर्ड टीचर हैं पति रिटायर्ड कर्नल हैं और अब बिजनेस करते हैं. उनके दो बेटे हैं जिनमें से एक सेना में है और एक अमेरिका में रहता है तो वो अपना पूरा वक्त इन गरीब बच्चों को दे देती हैं.

बच्चे खुश और परिजन भी खुश
जो बच्चे यहां पढ़ने आते हैं उनमें ज्यादातर स्कूल से ड्रॉपआउट हैं कुछ कभी स्कूल जाते ही नहीं थे क्योंकि पैसे की कमी थी लेकिन अब घर के पास फ्री में शिक्षा मिल रही है तो सभी बच्चे खुश हैं और उनके माता-पिता तो और भी ज्यादा खुश.

Intro:आज हम आपको एक ऐसे शिक्षा के मंदिर का दर्शन करवाएंगे जो एक पुरानी बस में खुला है इस मंदिर में घंटी नहीं बजती लेकिन ठीक समय पर बच्चे पहुंच जाते है और वो भी छोटे बच्चे ही नहीं बल्कि इस शिक्षा के मंदिर में पहली कक्षा से लेकर आठवीं कक्षा तक के छात्र और छात्राए पढ़ते है ।


शॉट्स। ..... (इस बस को देखिये इसकी हालत देखकर आप अंदाजा लगा सकते है की ये कितनी पुरानी बस होगी। ... लेकिन इस बस में मासूम बच्चे पढाई करते है। यहाँ घंटी नहीं है लेकिन फिर भी बच्चे सुबह टाइम से 8 बजे स्कूल पहुंच जाते है और 12 बजे तक दिल लगाकर पढाई करते है। ..हालाकिं गर्मी का मौसम होने के कारण इस बस में कूलर पंखे भी इंतजाम है ताकि किसी भी तरह बच्चो को गर्मी से बचाया जा सके )



Body:ये साइबर सिटी गुरुग्राम के सेक्टर 15 स्थित मोबाईल स्कूल है। जहां बच्चो को बस में पढ़ाया जाता है। .इस स्कूल के संस्थापक ने उन बच्चो को पढ़ाने का बीड़ा उठाया है जो बच्चे गरीब होते है सड़को पर घूमते है या फिर जिन माँ बाप के पास इतने पैसे नहीं होते की वो अपने बच्चो को पढ़ा सके ऐसे में इस स्कूल के संस्थापक ने दो साल पहले गुरुग्राम् में रहने वाले गरीब बच्चो के परिजनों से मुलाकात की । बच्चो के परिजनों ने अपनी गरीबी की दास्तान जब संस्थापक को सुनायी तो उन्होंने ऐसे बच्चो को पढ़ाने का बीड़ा उठाते हुए अपने दोस्त और कुछ समाज सेवियों की मदद से एक स्कूल की पुरानी बस खरीदकर उसकी सीट हटाकर टेबल कुर्सी लगाकर एक ऐसा स्कूल बना दिया जिसमें पहली क्लास से लेकर आठवी तक के बच्चे पढ़ने लगे।

बाइट =टीचर

संस्थापक ने स्कूल तो शुरू तो कर दिया लेकिन भीषण गर्मी के कारण बच्चे परेशान होने लगे , भीषण गर्मी को देखकर टीचर भी परेशान थे की आखिर इस समस्या से कैसे निपटा जाये लेकिन आसपास के लोगो ने टीचर की परेशानी भांपते हुए इस बस में लाइट कूलर पंखा लगा दिया जिससे आज इस स्कूल में 5 दर्जन से ज्यादा बच्चे पढ़ रहे है। यहाँ बच्चो को पढ़ाने के लिए आर्मी के सरकारी स्कूलों की रिटायर्ड प्रिसिपल भी हैं जो इन गरीब बच्चो को निशुल्क पढ़ाती है । स्कूल में आने वाले बच्चो की माने तो जो समय वो खेलकूद में निकालते थे वो समय आज बच्चे पढ़ाई में लगा रहे है । स्कूल के बाद बच्चो को होमवर्क दिया जाता है ताकि बच्चों को ज्यादा से ज्यादा समय पढ़ाई में लगाया जा सके। वहीँ बच्चो के परिजनों ने भी इस स्कूल को काफी सराहा है।

बाइट =स्कूली बच्चे
बाइट =परिजन (स्कूली बच्चो के )


Conclusion:सरकार शिक्षा और रोजगार का दावा करती है लेकिन जमीनी हकीकत तो यह है कि साइबर सिटी में आज भी कई ऐसे गरीब परिवार है जिनके बच्चे शिक्षा से कोसो दूर है।
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