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पलवल में 'माटी पुत्र' पर पड़ रही दोहरी मार, इस दीवाली दीये बिकने की उम्मीद कम - पलवल कुम्हार परेशान

मेहनत से मिट्टी को आकार देते कुम्हारों का कहना है कि वो दिवाली के लिए दीये और दूसरे सामान बना रहे हैं, लेकिन बिक्री कम होने की उम्मीद है, क्योंकि गौण खनिज की बढ़ती कीमत, चाइनीज सामान ने उनके उत्साह पर पानी फेर दिया है.

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तंगी से जूझ रहे माटी पुत्र
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Published : Nov 6, 2020, 10:19 PM IST

नई दिल्ली/पलवल: मिट्टी के दीपक बनाकर दीपावली में उजाले का रंग भरने वाले कुम्हार कारीगरों की आर्थिक स्थिति पहले से ही तंगहाल है, वहीं गौण खनिज की बढ़ती कीमत, चाइनीज सामान और कोरोना ने कुम्हारों की चिंता और बढ़ा दी है. बीते वर्ष तक प्रति ट्रैक्टर मिट्टी की कीमत करीब 2 हजार रुपये थी जोकि अब बढ़कर 3 से 4 हजार रुपये हो गई है. कोरोना काल में पहले से आर्थिक संकट की मार झेल रहे कारीगरों के लिए गौण खनिज की कीमत में इजाफा दोहरी मार साबित हो रही है.

तंगी से जूझ रहे माटी पुत्र

मंहगाई की मार

दीपावली पर्व की निकटता को देखते हुए कुम्हार कारीगरों ने दीपक बनाना शुरू कर दिया है, लेकिन उनके उत्साह पर मिट्टी की मंहगाई ने पानी फेर दिया है. कुम्हारों की कारीगिरी मिट्टी पर निर्भर करती है. मिट्टी की कीमत पर भी अब महंगाई भारी पड़ने लगी है. कुम्हारों का कहना है कि दीपक तैयार करने के लिए बीते वर्ष तक एक ट्रैक्टर मिट्टी के लिए करीब 2 हजार रुपये ही खर्च कर रहे थे. अब उन्हें मिट्टी 3 से 4 हजार रुपये में खरीदनी पड़ रही है. कुम्हारों का कहना है कि कोरोना काल के चलते उनका काम काज पहले ही ठप्प पड़ा हुआ था, लेकिन अब महंगाई की मार ने भी उनका जीना मुहाल कर दिया है.

कम बिक रहे दीये

पेंठ मोहल्ला निवासी कुम्हार कारीगर देवेंद्र व परमानंद का कहना है कि वे 60 रुपये में 100 दीपक बेच रहे हैं, लेकिन ग्राहक उनसे 40 से 50 रुपये में दीये देने की बात करते हैं. जिसके चलते उनके दीपक भी बहुत कम ग्राहक ही खरीद रहे हैं. पहले त्यौहारी सीजन में मिट्टी से बने उत्पादों से अच्छे खासे पैसे कमा लेते थे. जिस कारण उनका त्यौहार भी ठीक तरीके से मन जाता था, लेकिन अबकी बार उन्हें लगता है कि उनका त्यौहार फीका ही रहना वाला है.

नई दिल्ली/पलवल: मिट्टी के दीपक बनाकर दीपावली में उजाले का रंग भरने वाले कुम्हार कारीगरों की आर्थिक स्थिति पहले से ही तंगहाल है, वहीं गौण खनिज की बढ़ती कीमत, चाइनीज सामान और कोरोना ने कुम्हारों की चिंता और बढ़ा दी है. बीते वर्ष तक प्रति ट्रैक्टर मिट्टी की कीमत करीब 2 हजार रुपये थी जोकि अब बढ़कर 3 से 4 हजार रुपये हो गई है. कोरोना काल में पहले से आर्थिक संकट की मार झेल रहे कारीगरों के लिए गौण खनिज की कीमत में इजाफा दोहरी मार साबित हो रही है.

तंगी से जूझ रहे माटी पुत्र

मंहगाई की मार

दीपावली पर्व की निकटता को देखते हुए कुम्हार कारीगरों ने दीपक बनाना शुरू कर दिया है, लेकिन उनके उत्साह पर मिट्टी की मंहगाई ने पानी फेर दिया है. कुम्हारों की कारीगिरी मिट्टी पर निर्भर करती है. मिट्टी की कीमत पर भी अब महंगाई भारी पड़ने लगी है. कुम्हारों का कहना है कि दीपक तैयार करने के लिए बीते वर्ष तक एक ट्रैक्टर मिट्टी के लिए करीब 2 हजार रुपये ही खर्च कर रहे थे. अब उन्हें मिट्टी 3 से 4 हजार रुपये में खरीदनी पड़ रही है. कुम्हारों का कहना है कि कोरोना काल के चलते उनका काम काज पहले ही ठप्प पड़ा हुआ था, लेकिन अब महंगाई की मार ने भी उनका जीना मुहाल कर दिया है.

कम बिक रहे दीये

पेंठ मोहल्ला निवासी कुम्हार कारीगर देवेंद्र व परमानंद का कहना है कि वे 60 रुपये में 100 दीपक बेच रहे हैं, लेकिन ग्राहक उनसे 40 से 50 रुपये में दीये देने की बात करते हैं. जिसके चलते उनके दीपक भी बहुत कम ग्राहक ही खरीद रहे हैं. पहले त्यौहारी सीजन में मिट्टी से बने उत्पादों से अच्छे खासे पैसे कमा लेते थे. जिस कारण उनका त्यौहार भी ठीक तरीके से मन जाता था, लेकिन अबकी बार उन्हें लगता है कि उनका त्यौहार फीका ही रहना वाला है.

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