गुरूग्राम/नूंहः रमजान का महीना साल भर में 11 महीनों पर सबसे ज्यादा फजीलत वाला महीना है. इस पाक महीने में कुरान शरीफ नाजिल हुई थी. इस महीने को तीन असरों में बांटा गया है. मांडीखेड़ा मदरसे के मुफ्ती मौलाना रफीक ने कहा कि ये मुबारक महीना अजीम महीना है. उन्होंने इस दौरान इस पाक महीने के अहम महत्व भी हमसे साझा किए.
क्या होता है असरा ?
रमजान का महीना हर मुसलमान के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है, जिसमें 30 दिनों तक रोजे रखे जाते हैं. इस्लाम के मुताबिक, पूरे रमजान को तीन हिस्सों में बांटा गया है, जो पहला, दूसरा और तीसरा असरा कहलाता है. असरा अरबी का 10 नंबर होता है. इस तरह रमजान के पहले 10 दिन (1-10) में पहला असरा, दूसरे 10 दिन (11-20) में दूसरा असरा और तीसरे दिन (21-30) में तीसरा असरा बंटा होता है.
पहले असरे का महत्व
रमजान महीने के पहले 10 दिन रहमत के होते हैं. रोजा नमाज करने वालों पर अल्लाह की रहमत होती है. रमजान के पहले असरे में मुसलमानों को ज्यादा से ज्यादा दान कर के गरीबों की मदद करनी चाहिए. हर एक इंसान से प्यार और नम्रता का व्यवहार करना चाहिए.
दूसरे असरे का महत्व
रमजान के 11वें रोजे से 20वें रोजे तक दूसरा असरा चलता है. ये असरा माफी का होता है. इस असरे में लोग इबादत कर के अपने गुनाहों से माफी पा सकते हैं. इस्लामिक मान्यता के मुताबिक, अगर कोई इंसान रमजान के दूसरे असरे में अपने गुनाहों (पापों) से माफी मांगता है, तो दूसरे दिनों के मुकाबले इस समय अल्लाह अपने बंदों को जल्दी माफ करता है.
तीसरे असरे का महत्व
रमजान का तीसरा और आखिरी असरा 21वें रोजे से शुरू होकर चांद के हिसाब से 29वें या 30वें रोजे तक चलता है. ये असरा सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है. तीसरे असरे का उद्देश्य जहन्नुम की आग से खुद को सुरक्षित रखना है.
रमजान के आखिरी असरे में कई मुस्लिम मर्द और औरतें एहतकाफ में बैठते हैं. बता दें, एहतकाफ में मुस्लिम पुरुष मस्जिद के कोने में 10 दिनों तक एक जगह बैठकर अल्लाह की इबादत करते हैं, जबकि महिलाएं घर में रहकर ही इबादत करती हैं.