नई दिल्ली/नूंह: नूंह के घासेड़ा गांव को गांधी घासेड़ा गांव के नाम से भी जाना जाता है. इसकी वजह जानने के लिए हमें इतिहास में जाना होगा. साल 1947 में की बात है जब देश में धार्मिक विभाजन की आग लगी थी. इस विभाजन की आग की चपेट में मेवातवासी भी अछूत नहीं थे. आजादी के नायक महात्मा गांधी 80 साल पहले मेवात में भाईचारा कायम किया था.
आजादी के बाद भी पिछड़ा गांधी घसेड़ा गांव
मेवात से पलायन कर रहे लोगों को रोकने के लिए खुद मुस्लिमों के बीच पहुंचे थे. मेवात क्षेत्र के करीब 30 हजार मुस्लिम पलायन कर पाकिस्तान जा रहे थे. जिसकी जानकारी होने पर महात्मा गांधी गुरुग्राम से 40 किमी दूर मौजूद घासेड़ा गांव में पहुंचे थे. घासेड़ा गांव के गुज्जर बाड़े में पंचायत कर पूरे मेवात क्षेत्र का पलायन रोका था. मेवातवासी इससे पहले की पाकिस्तान की तरफ आगे बढ़ते उससे पहले ही गांधी जी उन्हें जाने से रोक दिया.
ऐसे बना था इस गांव से गांधी का नाता
उस समय गांधी जी ने मेवातीवासी को बस एक बात कही थी कि मेव कौम इस धरती की रीढ़ की हड्डी है और ये भी कहा कि जितना योगदान अन्य कौम का है उतना ही योगदान मुसलमानों का भी है. उसके बाद गांधी जी ने मेवात के लोगों को सुरक्षा और समान विकास की गारंटी दी. मेवात के लोगों ने महात्मा गांधी की बात को माना और अपने वतन भारत में ही रुकने का फैसला ले लिया.
मेवातवासियों का है आजादी में योगदान
आपको बता दें कि 1857 की क्रांति से लेकर 1947 की आजादी की लड़ाई में मेवात के सैकड़ों लोगों ने देश के लिए जान दी है. मेवात के लोगों के द्वारा दिए गए कुर्बानी को लेकर गौरव पट्ट बनवाया गया है. जिसपर गांव का पूरा इतिहास दर्ज है. गौरव पट्ट के मुताबिक आठ लोग 1857 की क्रांति में शहीद हुए थे. गांधी जी को बेसक हम लोग स्वच्छता का दूत कहे, लेकिन गांधी जी का ये घासेड़ा गांव आज भी बदहाली की मार झेल रहा है.
विकास से कोसों दूर ये गांव
यहां विकास की लकीर बेहद धुंधली है. यहां के लोगों का कहना है कि पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने घासेड़ा गांव को आदर्श गांव बनाने के अलावा 7 करोड़ रुपये से अधिक धनराशि दी थी लेकिन स्थिति जस की तस रही. इस गांधी घसेड़ा गांव की पहचान बिजली-पानी किल्लत, बेरोजगारी, गंदगी और विकास में पिछड़ेपन के नाम से अधिक है.