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आजादी के 72 साल बाद भी पिछड़ा है गांधी का बसाया गांव - gandhi ghaseda village backwardness nuh

नूंह के गांधी घसेड़ा गांव की हालत आज भी पिछड़ा हुआ है. जब 1947 में मेवात के 30 हजार मुसलमान पलयान कर पाकिस्तान जा रहे थे तभी गांधी जी ने इनको रोका था.

gandhi ghaseda village backwardness nuh
आजादी के 72 साल बाद भी पिछड़ा है गांधी का बसाया गांव
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Published : Jan 13, 2020, 11:48 PM IST

नई दिल्ली/नूंह: नूंह के घासेड़ा गांव को गांधी घासेड़ा गांव के नाम से भी जाना जाता है. इसकी वजह जानने के लिए हमें इतिहास में जाना होगा. साल 1947 में की बात है जब देश में धार्मिक विभाजन की आग लगी थी. इस विभाजन की आग की चपेट में मेवातवासी भी अछूत नहीं थे. आजादी के नायक महात्मा गांधी 80 साल पहले मेवात में भाईचारा कायम किया था.

आजादी के 72 साल बाद भी पिछड़ा है गांधी का बसाया गांव

आजादी के बाद भी पिछड़ा गांधी घसेड़ा गांव

मेवात से पलायन कर रहे लोगों को रोकने के लिए खुद मुस्लिमों के बीच पहुंचे थे. मेवात क्षेत्र के करीब 30 हजार मुस्लिम पलायन कर पाकिस्तान जा रहे थे. जिसकी जानकारी होने पर महात्मा गांधी गुरुग्राम से 40 किमी दूर मौजूद घासेड़ा गांव में पहुंचे थे. घासेड़ा गांव के गुज्जर बाड़े में पंचायत कर पूरे मेवात क्षेत्र का पलायन रोका था. मेवातवासी इससे पहले की पाकिस्तान की तरफ आगे बढ़ते उससे पहले ही गांधी जी उन्हें जाने से रोक दिया.

ऐसे बना था इस गांव से गांधी का नाता

उस समय गांधी जी ने मेवातीवासी को बस एक बात कही थी कि मेव कौम इस धरती की रीढ़ की हड्डी है और ये भी कहा कि जितना योगदान अन्य कौम का है उतना ही योगदान मुसलमानों का भी है. उसके बाद गांधी जी ने मेवात के लोगों को सुरक्षा और समान विकास की गारंटी दी. मेवात के लोगों ने महात्मा गांधी की बात को माना और अपने वतन भारत में ही रुकने का फैसला ले लिया.

मेवातवासियों का है आजादी में योगदान

आपको बता दें कि 1857 की क्रांति से लेकर 1947 की आजादी की लड़ाई में मेवात के सैकड़ों लोगों ने देश के लिए जान दी है. मेवात के लोगों के द्वारा दिए गए कुर्बानी को लेकर गौरव पट्ट बनवाया गया है. जिसपर गांव का पूरा इतिहास दर्ज है. गौरव पट्ट के मुताबिक आठ लोग 1857 की क्रांति में शहीद हुए थे. गांधी जी को बेसक हम लोग स्वच्छता का दूत कहे, लेकिन गांधी जी का ये घासेड़ा गांव आज भी बदहाली की मार झेल रहा है.

विकास से कोसों दूर ये गांव

यहां विकास की लकीर बेहद धुंधली है. यहां के लोगों का कहना है कि पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने घासेड़ा गांव को आदर्श गांव बनाने के अलावा 7 करोड़ रुपये से अधिक धनराशि दी थी लेकिन स्थिति जस की तस रही. इस गांधी घसेड़ा गांव की पहचान बिजली-पानी किल्लत, बेरोजगारी, गंदगी और विकास में पिछड़ेपन के नाम से अधिक है.

नई दिल्ली/नूंह: नूंह के घासेड़ा गांव को गांधी घासेड़ा गांव के नाम से भी जाना जाता है. इसकी वजह जानने के लिए हमें इतिहास में जाना होगा. साल 1947 में की बात है जब देश में धार्मिक विभाजन की आग लगी थी. इस विभाजन की आग की चपेट में मेवातवासी भी अछूत नहीं थे. आजादी के नायक महात्मा गांधी 80 साल पहले मेवात में भाईचारा कायम किया था.

आजादी के 72 साल बाद भी पिछड़ा है गांधी का बसाया गांव

आजादी के बाद भी पिछड़ा गांधी घसेड़ा गांव

मेवात से पलायन कर रहे लोगों को रोकने के लिए खुद मुस्लिमों के बीच पहुंचे थे. मेवात क्षेत्र के करीब 30 हजार मुस्लिम पलायन कर पाकिस्तान जा रहे थे. जिसकी जानकारी होने पर महात्मा गांधी गुरुग्राम से 40 किमी दूर मौजूद घासेड़ा गांव में पहुंचे थे. घासेड़ा गांव के गुज्जर बाड़े में पंचायत कर पूरे मेवात क्षेत्र का पलायन रोका था. मेवातवासी इससे पहले की पाकिस्तान की तरफ आगे बढ़ते उससे पहले ही गांधी जी उन्हें जाने से रोक दिया.

ऐसे बना था इस गांव से गांधी का नाता

उस समय गांधी जी ने मेवातीवासी को बस एक बात कही थी कि मेव कौम इस धरती की रीढ़ की हड्डी है और ये भी कहा कि जितना योगदान अन्य कौम का है उतना ही योगदान मुसलमानों का भी है. उसके बाद गांधी जी ने मेवात के लोगों को सुरक्षा और समान विकास की गारंटी दी. मेवात के लोगों ने महात्मा गांधी की बात को माना और अपने वतन भारत में ही रुकने का फैसला ले लिया.

मेवातवासियों का है आजादी में योगदान

आपको बता दें कि 1857 की क्रांति से लेकर 1947 की आजादी की लड़ाई में मेवात के सैकड़ों लोगों ने देश के लिए जान दी है. मेवात के लोगों के द्वारा दिए गए कुर्बानी को लेकर गौरव पट्ट बनवाया गया है. जिसपर गांव का पूरा इतिहास दर्ज है. गौरव पट्ट के मुताबिक आठ लोग 1857 की क्रांति में शहीद हुए थे. गांधी जी को बेसक हम लोग स्वच्छता का दूत कहे, लेकिन गांधी जी का ये घासेड़ा गांव आज भी बदहाली की मार झेल रहा है.

विकास से कोसों दूर ये गांव

यहां विकास की लकीर बेहद धुंधली है. यहां के लोगों का कहना है कि पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने घासेड़ा गांव को आदर्श गांव बनाने के अलावा 7 करोड़ रुपये से अधिक धनराशि दी थी लेकिन स्थिति जस की तस रही. इस गांधी घसेड़ा गांव की पहचान बिजली-पानी किल्लत, बेरोजगारी, गंदगी और विकास में पिछड़ेपन के नाम से अधिक है.

Intro:संवाददाता नूह मेवात
स्टोरी ;- गांधी ग्राम घासेड़ा और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के रिश्ते को लेकर खास खबर
देश में विभाजन की आग लगी थी। जगह - जगह खून खराबा हो रहा था। लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो चुके थे। डर की वजह से बड़ी संख्या में लोग मेवात से पाकिस्तान जा रहे थे। उसी दौरान एक फरिश्ता अपने साथियों के साथ बदन पर चंद कपडे लपेटे , हाथ में लाठी लिए और चश्मा लगाकर जिले के गांव घासेड़ा में पहुंचा। घासेड़ा में उस समय पूरे इलाके से लोग पैदल या अपने बैल गाड़ी में जाकर कुछ पल रुकते थे और फिर आगे कदम पाकिस्तान जाने के लिए बढ़ाते थे। कुछ लोग मुल्क से पाकिस्तान जा रहे थे तो कुछ पूरी तैयारी कर चुके थे। गांधी जी को जब ये खबर उसके साथियों ने दी तो लगोंटी वाला शांति का दूत लोगों के बीच पहुंच गया। लोगों के बीच जाकर राष्ट्रपिता ने पाकिस्तान नहीं जाने के अलावा अपने मुल्क में रहने पर सुरक्षा और समान विकास की गारंटी देते हुए मेव कौम को रीढ़ की हड्डी तक कहा। लोगों ने उनकी बात को माना और अपने वतन में ही रुकने का फैसला ले लिया। उसी समय से मेव कौम मेवात क्षेत्र में शान से रहती आ रही है। मेवों ने देश की खातिर कुर्बानियां दी हैं तो अंग्रेजों पर कांटेदार बाड़ खुदवाई है। दिल्ली के दरवाजे तक अंग्रेज मेव कौम के डर से दिन ढलते ही बंद कर लेते थे। गांधी जी मेव कौम के लड़ाकूपन और वतनपरस्ती से प्रभावित थे। इस बारे में हमने खास बातचीत की घासेड़ा गांव के 100 वर्ष के हो चुके हाजी अब्दुल मजीद से। हाजी अब्दुल मजीद उस समय जवान थे। सब कुछ जानते और समझते थे। उन्होंने बताया कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने उस समय कहा था कि मेव सच्ची - पक्की कौम है। रीढ़ की हड्डी है। आप यहां पैदा हुए हैं , आपके पूर्वज यहां पैदा हुए हैं। आपको यहां से कोई भगाने वाला नहीं है।Body:मौजूदा हालात पर जब बुजुर्ग हाजी अब्दुल मजीद से बातचीत की तो उन्होंने कहा कि देश में मुसलमानों को भगाने और मारने की बात इतने बड़े लोगों को नहीं करनी चाहिए। घासेड़ा गांव के युवाओं इमरान खान , ओसामा , सलीम इत्यादि ने कहा कि इस गांव के नाम के साथ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का नाम जुड़ा हुआ है। जितनी पहचान राष्ट्रीय - अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गांव की होनी चाहिए थी। उतनी नहीं हुई , लेकिन अब युवाओं ने गांव को विकसित एवं साफ - सुथरा बनाने की ठान ली है। खास बात तो यह है कि घासेड़ा गांव में अगर स्वतंत्रता सेनानी चौधरी रणबीर हुड्डा लाइब्रेरी को छोड़ दिया जाये तो कोई पहचान इस गांव में देखने को नहीं मिलती। गांधी जी के नाम से पार्क , स्कूल , स्टेचू इत्यादि कुछ नहीं है। युवाओं ने कहा कि पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने घासेड़ा गांव को आदर्श गांव बनाने के अलावा 7 करोड़ रुपये से अधिक धनराशि दी थी लेकिन उसका इस्तेमाल ठीक ढंग से नहीं हुआ। गांव की पहचान बिजली - पानी किल्लत के अलावा बेरोजगारी और गंदगी तथा विकास में पिछड़ेपन के नाम से अधिक हो रही है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी अपने साथी मेव कौम के बड़े नेता चौधरी मरहूम यासीन खां , पूर्व सीएम हुड्डा के पिता चौधरी रणबीर सिंह हुड्डा , गनी डार , खिजर हयात , सर छोटूराम सहित कई नेताओं के साथ घासेड़ा गांव पहुंचे थे। उसी दिन से घासेड़ा गांव को गांधी ग्राम घासेड़ा के नाम से पहचाना जाने लगा। गांव में पार्क , स्टेडियम , कम्युनिटी सेंटर इत्यादि जैसी कोई चीज नहीं है। आबादी 30 हजार से अधिक है। घासेड़ा गांव के लोगों को जो लाभ केंद्र - राज्य की सरकारों से विकसित होने के लिए उठाना चाहिए था , उसमें उनकी बड़ी चूक रही। अगर सरकार ने इस गांव को आदर्श बनाने की दिशा में कदम बढ़ाया तो ग्राम पंचायत ने सिस्टम के साथ मिलीभगत करके राशि का सही इस्तेमाल नहीं किया। दिल्ली - अलवर राष्ट्रीय राजमार्ग पर जिला मुख्यालय नूह शहर से सात किलोमीटर पहले बसे इस गांव की तरफ केंद्र - राज्य सरकार अगर ध्यान दे तो इसे हकीकत में गांधी जी के सपनों से जोड़ सकती है।

Conclusion:बाइट ;- हाजी अब्दुल मजीद बुजुर्ग
बाइट ;- ओसामा युवा ग्रामीण
बाइट ;- इमरान समाजसेवी एवं ग्रामीण
बाइट ;- सलीम उर्फ़ सल्ली युवा समाजसेवी ग्रामीण
संवाददाता कासिम खान नूह मेवात
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