गाजियाबाद: मुश्किल वक्त इंसान को बहुत कुछ सिखाता है. कई बार लोग मुश्किलों और मुसीबतों के आगे घुटने टेक देते हैं और बिखर जाते हैं जबकि कुछ लोग कठिनाइयों को जीवन का गहना समझकर उनसे लड़ते और डटकर मेहनत करते हैं और जिंदगी को बेहतर बनाते हैं. प्रियंका की भी कुछ ऐसी ही कहानी है. जिंदगी ने एक के बाद एक इम्तिहान लिए लेकिन प्रियंका इन तमाम इम्तिहानों में सफल हुई. जल्द ही प्रियंका कौशांबी डिपो की पिंक बस चलाएंगी (Priyanka will drive pink bus).
2015 से ट्रक चला रही हैं प्रियंका : बिहार के भागलपुर जिले की रहने वाली प्रियंका कुमारी बताती हैं कि 2015 में उनके पति का किडनी की बीमारी से ग्रसित हो गए. परिवार और बच्चों के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम करने के लिए चाय की टपरी लगाई. उससे गुजारा नहीं हुआ तो एक फैक्ट्री में कई महीने काम किया. हालात खराब होते जा रहे थे. आस-पड़ोस के लोगों ने मशवरा दिया कि ड्राइविंग सीख लो ड्राइविंग में अच्छी कमाई है तो ड्राइविंग सीखा और 2015 से ट्रक चलाना शुरू किया. ट्रक चलाकर बीमार पति के इलाज का खर्च उठाया, साथ ही परिवार को पाला. पति की बीमारी का खर्च उठाने में घर-मकान सब बेच दिया, जो जमा पूंजी थी वह सब लगा दी. 2020 अप्रैल में लॉक डाउन के दौरान पति का निधन हो गया.
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बस चलाने की तीन महीने ट्रेनिंग ली : प्रियंका बताती हैं की एक महिला होकर ट्रक चलाना आसान नहीं था. पांच साल बतौर महिला ट्रक चालक उन्होंने दिल्ली-गुवाहाटी, दिल्ली-बंगाल, दिल्ली-मुंबई, दिल्ली-पुणे समेत कई बड़े रूटों पर ड्राइविंग की. ड्राइविंग के दौरान कई ऐसी परेशानियों का सामना करना पड़ा जिसे बताया नहीं जा सकता. एक दिन जानकारी मिली कि उत्तर प्रदेश में महिला बस चालकों के लिए भर्ती निकली है. फार्म भरकर अप्लाई किया. चयन होने के बाद तकरीबन 3 महीने बस चलाने की कानपुर में ट्रेनिंग की.
प्रियंका कौशांबी बस डिपो पर हैं तैनात: अभी प्रियंका की ड्यूटी कौशांबी बस डिपो के वर्कशॉप पर है. उनका काम बसों को डिपो से सर्विस सेंटर पर ले जाना है. फिलहाल प्रियंका डिपो में बस चलाने का प्रशिक्षण ले रही हैं. प्रियंका सुबह करीब 8.30 बजे दिल्ली से कौशांबी डिपो आती हैं और शाम को घर वापस जाती हैं. तकरीबन तीन महीने में प्रियंका का प्रशिक्षण पूरा हो जाएगा. जिसके बाद वह पिंक बस चलाएंगी. प्रियंका कौशांबी बस डिपो की पहली महिला बस ड्राइवर होंगी.
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