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कुम्हारों के लिए मायूसी लेकर आया लॉकडाउन, नहीं हो रही घड़ों की बिक्री - Pot water

गाजियाबाद में लॉकडाउन की वजह से मिट्टी के बर्तनों की बिक्री ना होने से कुम्हारों का धंधा हुआ चौपट हो गया है. बिक्री ना होने के चलते परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम करना भी मुश्किल हो गया है.

pottery business collapsed due to lockdown
घड़े की दुकान
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Published : May 11, 2020, 4:50 PM IST

नई दिल्ली/गाजियाबादः गर्मी के मौसम में पानी को ठंडा करने के लिए मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल होता है. आमतौर पर देखा जाता है कि बड़े-बड़े शहरों में भी लोग फ्रिज का ठंडा पानी ना पीकर घड़े का ठंडा पानी पीना ज्यादा पसंद करते हैं, क्योंकि घड़े का पानी सेहत के लिए ज्यादा फायदेमंद होता है.

कुम्हारों के लिए मायूसी लेकर आया लॉकडाउन!

मई-जून की तपती गर्मी में मिट्टी का घड़ा कुछ ही घंटों में पानी को ठंडा कर देता है. मई-जून में मिट्टी के बर्तनों की बिक्री जमकर होती थी, लेकिन इस वर्ष मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हार पूरी तरह से मायूस हैं.

लॉकडाउन के चलते कुम्हारों का धंधा बिल्कुल चौपट हो गया है. सड़क के किनारे मिट्टी के बर्तनों की दुकानें तो लगी दिखाई देती हैं, लेकिन इन दुकानों से खरीदार गायब हैं. लॉकडाउन कुमारों के लिए मायूसी लेकर आया है.

कई पीढ़ियों से मिट्टी के बर्तनों का काम कर रहे विक्रेता सतीश कुमार ने बताया कि लॉकडाउन में बिक्री ना के बराबर हो रही है. पूरा दिन ग्राहकों का इंतजार में ही निकल जाता है, लेकिन एक भी मिट्टी का बर्तन नहीं बिक पाता. बिक्री ना होने के चलते परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम करना बहुत मुश्किल हो गया है.

यह हालत केवल सतीश कुमार ही नहीं बल्कि अधिकतर मिट्टी का बर्तन बनाने वाले कुम्हारों की है. कुम्हारों को अब लॉकडाउन के समाप्त होने का इंतजार है. जिससे कि जनजीवन वापस पटरी पर लौटे और उनका धंधा फिर से चलना शुरू हो.

नई दिल्ली/गाजियाबादः गर्मी के मौसम में पानी को ठंडा करने के लिए मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल होता है. आमतौर पर देखा जाता है कि बड़े-बड़े शहरों में भी लोग फ्रिज का ठंडा पानी ना पीकर घड़े का ठंडा पानी पीना ज्यादा पसंद करते हैं, क्योंकि घड़े का पानी सेहत के लिए ज्यादा फायदेमंद होता है.

कुम्हारों के लिए मायूसी लेकर आया लॉकडाउन!

मई-जून की तपती गर्मी में मिट्टी का घड़ा कुछ ही घंटों में पानी को ठंडा कर देता है. मई-जून में मिट्टी के बर्तनों की बिक्री जमकर होती थी, लेकिन इस वर्ष मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हार पूरी तरह से मायूस हैं.

लॉकडाउन के चलते कुम्हारों का धंधा बिल्कुल चौपट हो गया है. सड़क के किनारे मिट्टी के बर्तनों की दुकानें तो लगी दिखाई देती हैं, लेकिन इन दुकानों से खरीदार गायब हैं. लॉकडाउन कुमारों के लिए मायूसी लेकर आया है.

कई पीढ़ियों से मिट्टी के बर्तनों का काम कर रहे विक्रेता सतीश कुमार ने बताया कि लॉकडाउन में बिक्री ना के बराबर हो रही है. पूरा दिन ग्राहकों का इंतजार में ही निकल जाता है, लेकिन एक भी मिट्टी का बर्तन नहीं बिक पाता. बिक्री ना होने के चलते परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम करना बहुत मुश्किल हो गया है.

यह हालत केवल सतीश कुमार ही नहीं बल्कि अधिकतर मिट्टी का बर्तन बनाने वाले कुम्हारों की है. कुम्हारों को अब लॉकडाउन के समाप्त होने का इंतजार है. जिससे कि जनजीवन वापस पटरी पर लौटे और उनका धंधा फिर से चलना शुरू हो.

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