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समय पर भुगतान न होने से कर्ज में डूबे गन्ना किसानों का दर्द सुनिए...

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ने की खेती करने वाले किसानों के हालात बहुत खराब हैं. गन्ने का भुगतान समय पर न होना और गन्ने के मूल्य में बढ़ोतरी न होने से किसान परेशान हैं.

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Published : Feb 9, 2021, 7:45 PM IST

Updated : Feb 9, 2021, 7:58 PM IST

conditions of sugarcane farmers in western Uttar Pradesh
समय पर गन्ना भुगतान ना होने से कर्ज़ तले तब रहा किसान, सुनिए किसानों का दर्द

नई दिल्ली: पश्चिमी उत्तर प्रदेश गन्ने की खेती के लिए प्रसिद्ध है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश को गन्ने की बेल्ट के नाम से भी जाना जाता है. यहां पर अधिकतर किसान गन्ने की खेती करते हैं. गन्ने की खेती करने वाले किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या समय पर गन्ने का भुगतान न होना है. पश्चिमी यूपी में गन्ना भुगतान के हालात को लेकर ईटीवी भारत ने गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों से बातचीत की.

गन्ने की खेती कर रहे किसान

किसानों का कहना था कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ने की खेती करने वाले किसानों के हालात बहुत खराब हैं. गन्ने का भुगतान समय पर न होना और गन्ने के मूल्य में बढ़ोतरी न होने से किसान परेशान हैं. सरकार दावे करती हैं कि 14 दिन में गन्ने का भुगतान होगा वरना ब्याज दिया जाएगा, लेकिन अब भी पिछले साल का गन्ने का भुगतान नहीं हुआ है. निजी फैक्टरियां तो दूर सरकारी फैक्टरियों द्वारा भी समय पर गन्ने का भुगतान नहीं किया जा रहा है. सरकार के तमाम दावे झूठे साबित हो रहे हैं.

उठानी पड़ती है परेशानियां

किसान ने बताया समय पर गन्ने का भुगतान न होने के कारण कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. साहूकार से सूद पर पैसा लेकर बच्चों की फीस और घर का खर्चा भी चलाना पड़ता है. जब गन्ने का भुगतान होता है तो साहूकार को पैसा वापस लौटाना पड़ता है. जिसके साथ मोटा ब्याज जाता है. जो किसान बैंक से कर्ज लेते हैं और समय पर नहीं चुका पाते हैं. उनके घर पर बैंकों द्वारा नोटिस भेजे जाते हैं. अंत में किसान आत्महत्या करने तक के लिए मजबूर हो जाता है.

नई फसल के लिए कहां से लाएं रकम

किसानों का कहना था कि समय पर भुगतान न होने के चलते अगली फसल के लिए रकम का इंतजाम करना भी किसी मुसीबत से कम नहीं होता. नई फसल लगाने के लिए बैंकों से कर्ज़ पर पैसा उठाना पड़ता है. जो किसान बैंक या साहूकार से कर्ज नहीं ले पाते उनको पशु आदि बेचकर नई फसल के लिए रकम का इंतजाम करना पड़ता है. अगर गन्ने का भुगतान समय पर हो तो हमे किसी तरह की परेशानी नही उठानी पड़ेगी और साथ ही जो बैंकों को ब्याज दे रहे हैं उसकी भी बचत होगी.

ये भी पढ़ें: 1988 के आंदोलनकारी किसान बोले, राकेश टिकैत में आई बाबा टिकैत की आत्मा


करना पड़ता है संघर्ष

किसानों का कहना था कि हर साल गन्ना भुगतान कराने के लिए संघर्ष करना पड़ता है. भारतीय किसान यूनियन के नेतृत्व में मिलों के बाहर धरने प्रदर्शन करने पड़ते हैं तब जाकर गन्ना भुगतान का पैसा रिलीज हो पाता है. मील मालिक सरकार के नियंत्रण में नहीं हैं.

एक तरफ आंदोलनकारी किसान मांग कर रहे हैं कि केंद्र सरकार तीनों कृषि कानूनों को वापस ले और न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी को लेकर कानून बनाए तो वहीं दूसरी तरफ किसानों की मांग है कि सरकार किसानों का गन्ना भुगतान समय पर करें.

नई दिल्ली: पश्चिमी उत्तर प्रदेश गन्ने की खेती के लिए प्रसिद्ध है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश को गन्ने की बेल्ट के नाम से भी जाना जाता है. यहां पर अधिकतर किसान गन्ने की खेती करते हैं. गन्ने की खेती करने वाले किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या समय पर गन्ने का भुगतान न होना है. पश्चिमी यूपी में गन्ना भुगतान के हालात को लेकर ईटीवी भारत ने गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों से बातचीत की.

गन्ने की खेती कर रहे किसान

किसानों का कहना था कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ने की खेती करने वाले किसानों के हालात बहुत खराब हैं. गन्ने का भुगतान समय पर न होना और गन्ने के मूल्य में बढ़ोतरी न होने से किसान परेशान हैं. सरकार दावे करती हैं कि 14 दिन में गन्ने का भुगतान होगा वरना ब्याज दिया जाएगा, लेकिन अब भी पिछले साल का गन्ने का भुगतान नहीं हुआ है. निजी फैक्टरियां तो दूर सरकारी फैक्टरियों द्वारा भी समय पर गन्ने का भुगतान नहीं किया जा रहा है. सरकार के तमाम दावे झूठे साबित हो रहे हैं.

उठानी पड़ती है परेशानियां

किसान ने बताया समय पर गन्ने का भुगतान न होने के कारण कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. साहूकार से सूद पर पैसा लेकर बच्चों की फीस और घर का खर्चा भी चलाना पड़ता है. जब गन्ने का भुगतान होता है तो साहूकार को पैसा वापस लौटाना पड़ता है. जिसके साथ मोटा ब्याज जाता है. जो किसान बैंक से कर्ज लेते हैं और समय पर नहीं चुका पाते हैं. उनके घर पर बैंकों द्वारा नोटिस भेजे जाते हैं. अंत में किसान आत्महत्या करने तक के लिए मजबूर हो जाता है.

नई फसल के लिए कहां से लाएं रकम

किसानों का कहना था कि समय पर भुगतान न होने के चलते अगली फसल के लिए रकम का इंतजाम करना भी किसी मुसीबत से कम नहीं होता. नई फसल लगाने के लिए बैंकों से कर्ज़ पर पैसा उठाना पड़ता है. जो किसान बैंक या साहूकार से कर्ज नहीं ले पाते उनको पशु आदि बेचकर नई फसल के लिए रकम का इंतजाम करना पड़ता है. अगर गन्ने का भुगतान समय पर हो तो हमे किसी तरह की परेशानी नही उठानी पड़ेगी और साथ ही जो बैंकों को ब्याज दे रहे हैं उसकी भी बचत होगी.

ये भी पढ़ें: 1988 के आंदोलनकारी किसान बोले, राकेश टिकैत में आई बाबा टिकैत की आत्मा


करना पड़ता है संघर्ष

किसानों का कहना था कि हर साल गन्ना भुगतान कराने के लिए संघर्ष करना पड़ता है. भारतीय किसान यूनियन के नेतृत्व में मिलों के बाहर धरने प्रदर्शन करने पड़ते हैं तब जाकर गन्ना भुगतान का पैसा रिलीज हो पाता है. मील मालिक सरकार के नियंत्रण में नहीं हैं.

एक तरफ आंदोलनकारी किसान मांग कर रहे हैं कि केंद्र सरकार तीनों कृषि कानूनों को वापस ले और न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी को लेकर कानून बनाए तो वहीं दूसरी तरफ किसानों की मांग है कि सरकार किसानों का गन्ना भुगतान समय पर करें.

Last Updated : Feb 9, 2021, 7:58 PM IST
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