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रकाबगंज गुरुद्वारा सेंट्रल दिल्ली की सबसे खूबसूरत जगहों में एक, जानिए धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व

सेंट्रल दिल्ली में रायसिना पहाड़ी के पीछे बना रकाबगंज गुरुद्वारा कुछ अलग है. ये गुरुद्वारा दिल्ली के 10 ऐतिहासिक गुरुद्वारों में से एक है.

रकाबगंज गुरुद्वारा का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व.
रकाबगंज गुरुद्वारा का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व.
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Published : Jan 22, 2021, 9:49 PM IST

Updated : Aug 13, 2021, 6:24 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली में यूं तो कई खूबसूरत जगह हैं, लेकिन सेंट्रल दिल्ली में रायसिना पहाड़ी के पीछे बना रकाबगंज गुरुद्वारा कुछ अलग है. ये दिल्ली के 10 ऐतिहासिक गुरुद्वारों में एक है और वही जगह है, जहां गुरु तेग बहादुर के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार किया गया था. मौजूदा समय में ये धार्मिक जगह होने के साथ ही सिख राजनीति का सबसे बड़ा केंद्र है.

रकाबगंज गुरुद्वारा का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व.

क्या है इतिहास

दिल्ली में जो दो गुरुद्वारे श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की शहादत के प्रतीक हैं. उनमें एक रक़ाबगंज तो वहीं दूसरा चांदनी चौक का मशहूर सीसगंज साहिब है. जब तेग बहादुर साहिब जी ने इस्‍लाम धर्म अपनाने से इनकार कर दिया, तब मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश पर भरी सभा में गुरु जी का सिर कलम कर दिया गया था. बताया जाता है कि भाई जैता जी गुरु जी का शीश लेकर आनंदपुर रवाना हुए थे, जबकि भाई लक्‍खी शाह धड़ को अपने घर ले गए. उन्‍होंने गुरु जी के धड़ का अंतिम संस्‍कार करने के लिए अपने पूरे घर को आग लगा दी थी. इसी जगह पर आज का गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब बना है.



कैसे पड़ा नाम

गुरुद्वारे के नाम को लेकर भी एक अलग मान्यता है. इसे सिखों के दसवें गुरु के नाम से जोड़ा जाता है. बताया जाता है कि जब श्री गुरु गोबिंद सिंह जी रणभूमि की ओर चले थे तो इसी जगह पर घोड़े की रकाब पर पांव रखते ही वह टूट गई थी. अब तक वह टूटी हुई रकाब उसी प्रकार सुरक्षित रखी हुई है. इसी के बाद गुरुद्वारे का नाम रकाबगंज पड़ा था.



12 साल में बना गुरुद्वारा

गुरुद्वारे का मौजूदा रूप 12 साल में बनकर तैयार हुआ था. इसे 1783 में सिख जेनरल बघेल सिंह ने दिल्ली फ़तह कर बनवाया था. मंदिर की जगह पुराने रायसिना गांव की जगह है जिस पर इतिहास में कई विवाद होने की भी बात है. हालांकि हर बार गुरुद्वारे के पक्ष में ही फैसला आया.



गुरुद्वारा परिसर में ही स्थित है डीएसजीएमसी का दफ़्तर

गुरुद्वारा परिसर में ही दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का दफ़्तर स्थित है. कमेटी के जनरल हाउस के साथ साथ यहां अन्य महत्वपूर्ण बैठक होती है. मौजूदा प्रधान मनजिंदर सिंह सिरसा की ही देखरेख में गुरुद्वारा परिसर में सिखों के लिए एडवांस स्टडीज़ सेंटर भी बन रहा है. इससे अलग, गुरुद्वारा परिसर में 1984 क़त्लेआम में मारे गए सिखों के लिए एक मेमोरियल भी बनाया गया है. इसे सच की दीवार के नाम से जाना जाता है, जहां पर दोषियों को फांसी की सजा दिलाने के लिए कई तस्वीरें भी लगाई गई हैं.

राजनीति का केंद्र

दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का दफ़्तर होने के चलते इसे दिल्ली में सिख राजनीति का केंद्र भी कहा जाता है. अगले कुछ दिनों में कमिटी के चुनाव होने के चलते जल्दी ही गुरुद्वारा राजनीतिक बयानबाजी का केंद्र भी होगा.

नई दिल्ली: दिल्ली में यूं तो कई खूबसूरत जगह हैं, लेकिन सेंट्रल दिल्ली में रायसिना पहाड़ी के पीछे बना रकाबगंज गुरुद्वारा कुछ अलग है. ये दिल्ली के 10 ऐतिहासिक गुरुद्वारों में एक है और वही जगह है, जहां गुरु तेग बहादुर के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार किया गया था. मौजूदा समय में ये धार्मिक जगह होने के साथ ही सिख राजनीति का सबसे बड़ा केंद्र है.

रकाबगंज गुरुद्वारा का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व.

क्या है इतिहास

दिल्ली में जो दो गुरुद्वारे श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी की शहादत के प्रतीक हैं. उनमें एक रक़ाबगंज तो वहीं दूसरा चांदनी चौक का मशहूर सीसगंज साहिब है. जब तेग बहादुर साहिब जी ने इस्‍लाम धर्म अपनाने से इनकार कर दिया, तब मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश पर भरी सभा में गुरु जी का सिर कलम कर दिया गया था. बताया जाता है कि भाई जैता जी गुरु जी का शीश लेकर आनंदपुर रवाना हुए थे, जबकि भाई लक्‍खी शाह धड़ को अपने घर ले गए. उन्‍होंने गुरु जी के धड़ का अंतिम संस्‍कार करने के लिए अपने पूरे घर को आग लगा दी थी. इसी जगह पर आज का गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब बना है.



कैसे पड़ा नाम

गुरुद्वारे के नाम को लेकर भी एक अलग मान्यता है. इसे सिखों के दसवें गुरु के नाम से जोड़ा जाता है. बताया जाता है कि जब श्री गुरु गोबिंद सिंह जी रणभूमि की ओर चले थे तो इसी जगह पर घोड़े की रकाब पर पांव रखते ही वह टूट गई थी. अब तक वह टूटी हुई रकाब उसी प्रकार सुरक्षित रखी हुई है. इसी के बाद गुरुद्वारे का नाम रकाबगंज पड़ा था.



12 साल में बना गुरुद्वारा

गुरुद्वारे का मौजूदा रूप 12 साल में बनकर तैयार हुआ था. इसे 1783 में सिख जेनरल बघेल सिंह ने दिल्ली फ़तह कर बनवाया था. मंदिर की जगह पुराने रायसिना गांव की जगह है जिस पर इतिहास में कई विवाद होने की भी बात है. हालांकि हर बार गुरुद्वारे के पक्ष में ही फैसला आया.



गुरुद्वारा परिसर में ही स्थित है डीएसजीएमसी का दफ़्तर

गुरुद्वारा परिसर में ही दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का दफ़्तर स्थित है. कमेटी के जनरल हाउस के साथ साथ यहां अन्य महत्वपूर्ण बैठक होती है. मौजूदा प्रधान मनजिंदर सिंह सिरसा की ही देखरेख में गुरुद्वारा परिसर में सिखों के लिए एडवांस स्टडीज़ सेंटर भी बन रहा है. इससे अलग, गुरुद्वारा परिसर में 1984 क़त्लेआम में मारे गए सिखों के लिए एक मेमोरियल भी बनाया गया है. इसे सच की दीवार के नाम से जाना जाता है, जहां पर दोषियों को फांसी की सजा दिलाने के लिए कई तस्वीरें भी लगाई गई हैं.

राजनीति का केंद्र

दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का दफ़्तर होने के चलते इसे दिल्ली में सिख राजनीति का केंद्र भी कहा जाता है. अगले कुछ दिनों में कमिटी के चुनाव होने के चलते जल्दी ही गुरुद्वारा राजनीतिक बयानबाजी का केंद्र भी होगा.

Last Updated : Aug 13, 2021, 6:24 PM IST
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