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समलैंगिकों की शादी की मांग करनेवाली याचिका दूसरी बेंच को ट्रांसफर - एलजीबीटी अधिकार इंडिया

दिल्ली हाईकोर्ट ने समलैंगिकों की शादी की मांग करनेवाली याचिका दूसरी बेंच को ट्रांसफर कर दी है. बता दें कि ये याचिका जिस बेंच के पास भेजी गई है वहां पहले से ऐसी ही याचिका लंबित है. याचिका में शादी करने के अधिकार को सार्वभौम अधिकार बताया गया है.

petition seeking same sex marriage transferred to another bench of delhi high court
दिल्ली हाईकोर्ट में हुई सुनवाई
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Published : Nov 4, 2020, 3:48 PM IST

नई दिल्ली: समलैंगिक शादियों को हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत अनुमति देने की मांग करनेवाली याचिका को दिल्ली हाईकोर्ट ने सुनवाई के लिए दूसरी बेंच को ट्रांसफर कर दिया है. मामले पर अगली सुनवाई 19 नवंबर को होगी. चीफ जस्टिस डीएन पटेल की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस याचिका को उस बेंच के पास भेज दिया जिसके पास ऐसी ही याचिका लंबित है.


बता दें कि पहले सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने समलैंगिक शादियों को हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत अनुमति देने की मांग करनेवाली याचिका का विरोध किया था. केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि हमारी कानूनी प्रणाली, समाज और संस्कृति समलैंगिक जोड़ों के बीच विवाह की मान्यता नहीं देता. उन याचिकाकर्ताओं की सूची पेश करें जिनकी शादी का रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ.


सुनवाई के दौरान तुषार मेहता ने कहा था कि याचिकाकर्ता समलैंगिकों की शादी को कानूनी मान्यता की मांग नहीं कर सकते, मेहता ने कहा था कि उन्होंने कानून की पड़ताल की है. कोर्ट कानून नहीं बना सकती है. उन्होंने कहा था कि वे इस मामले पर हलफनामा भी दाखिल नहीं करेंगे, उन्हें वैधानिक प्रावधानों पर विश्वास है. तब जस्टिस प्रतीक जालान ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कारण भी दिए हैं. तब कोर्ट ने याचिकाकर्ता को उन याचिकाकर्ताओं की सूची पेश करने के लिए कहा था जिनका शादी का रजिस्ट्रेशन समलैंगिक होने की वजह से हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत नहीं किया गया.


दरअसल ये याचिका वकील राघव अवस्थी और मुकेश शर्मा ने दायर की है. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने कहा कि हिन्दू मैरिज एक्ट की धारा 5 में समलैंगिक और विपरीत लिंग के जोड़ों में कोई अंतर नहीं बताया गया है. याचिका में संविधान के मौलिक अधिकारों की रक्षा की मांग की गई है. याचिका में कहा गया है कि कानून एलजीबीटी समुदाय के सदस्यों को एक जोड़े के रूप में नहीं देखता. एलजीबीटी समुदाय के सदस्य अपनी इच्छा वाले व्यक्ति से शादी करने की इच्छा को दबा कर रह जाते हैं. उन्हें अपनी इच्छा के मुताबिक शादी का विकल्प नहीं देना उनके साथ भेदभाव है.

'कानून में किसी दो हिन्दू के बीच शादी का जिक्र'
याचिका में कहा गया है कि समलैंगिक जोड़ों को भी विपरीत लिंग वाले जोड़ों के बराबर अधिकार और सुविधाएं मिलनी चाहिए. याचिका में कहा गया है कि हिन्दू मैरिज एक्ट की धारा 5 के तहत ऐसा कहीं उल्लेख नहीं है कि हिन्दू पुरुष की शादी हिन्दू महिला से ही हो सकती है. इसमें कहा गया है कि किसी दो हिन्दू के बीच शादी हो सकती है. समलैंगिक शादियों पर स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत भी कोई रोक नहीं है, लेकिन समलैंगिक शादियां दिल्ली समेत देश भर में कहीं नहीं होती.


'शादी करने का अधिकार सार्वभौम अधिकार है'
याचिका में कहा गया है कि ये एक निर्विवाद तथ्य है कि शादी करने का अधिकार जीवन के अधिकार की संविधान की धारा 21 के तहत आता है. शादी करने के अधिकार का मानवाधिकार चार्टर में भी जिक्र किया गया है. यह एक सार्वभौम अधिकार है और ये अधिकार हर किसी को मिलना चाहिए भले ही वो समलैंगिक हो या नहीं. लैंगिक आधार पर शादी की अनुमति नहीं देना समलैंगिक लोगों के अधिकारों का उल्लंघन है.

नई दिल्ली: समलैंगिक शादियों को हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत अनुमति देने की मांग करनेवाली याचिका को दिल्ली हाईकोर्ट ने सुनवाई के लिए दूसरी बेंच को ट्रांसफर कर दिया है. मामले पर अगली सुनवाई 19 नवंबर को होगी. चीफ जस्टिस डीएन पटेल की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस याचिका को उस बेंच के पास भेज दिया जिसके पास ऐसी ही याचिका लंबित है.


बता दें कि पहले सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने समलैंगिक शादियों को हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत अनुमति देने की मांग करनेवाली याचिका का विरोध किया था. केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि हमारी कानूनी प्रणाली, समाज और संस्कृति समलैंगिक जोड़ों के बीच विवाह की मान्यता नहीं देता. उन याचिकाकर्ताओं की सूची पेश करें जिनकी शादी का रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ.


सुनवाई के दौरान तुषार मेहता ने कहा था कि याचिकाकर्ता समलैंगिकों की शादी को कानूनी मान्यता की मांग नहीं कर सकते, मेहता ने कहा था कि उन्होंने कानून की पड़ताल की है. कोर्ट कानून नहीं बना सकती है. उन्होंने कहा था कि वे इस मामले पर हलफनामा भी दाखिल नहीं करेंगे, उन्हें वैधानिक प्रावधानों पर विश्वास है. तब जस्टिस प्रतीक जालान ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कारण भी दिए हैं. तब कोर्ट ने याचिकाकर्ता को उन याचिकाकर्ताओं की सूची पेश करने के लिए कहा था जिनका शादी का रजिस्ट्रेशन समलैंगिक होने की वजह से हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत नहीं किया गया.


दरअसल ये याचिका वकील राघव अवस्थी और मुकेश शर्मा ने दायर की है. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने कहा कि हिन्दू मैरिज एक्ट की धारा 5 में समलैंगिक और विपरीत लिंग के जोड़ों में कोई अंतर नहीं बताया गया है. याचिका में संविधान के मौलिक अधिकारों की रक्षा की मांग की गई है. याचिका में कहा गया है कि कानून एलजीबीटी समुदाय के सदस्यों को एक जोड़े के रूप में नहीं देखता. एलजीबीटी समुदाय के सदस्य अपनी इच्छा वाले व्यक्ति से शादी करने की इच्छा को दबा कर रह जाते हैं. उन्हें अपनी इच्छा के मुताबिक शादी का विकल्प नहीं देना उनके साथ भेदभाव है.

'कानून में किसी दो हिन्दू के बीच शादी का जिक्र'
याचिका में कहा गया है कि समलैंगिक जोड़ों को भी विपरीत लिंग वाले जोड़ों के बराबर अधिकार और सुविधाएं मिलनी चाहिए. याचिका में कहा गया है कि हिन्दू मैरिज एक्ट की धारा 5 के तहत ऐसा कहीं उल्लेख नहीं है कि हिन्दू पुरुष की शादी हिन्दू महिला से ही हो सकती है. इसमें कहा गया है कि किसी दो हिन्दू के बीच शादी हो सकती है. समलैंगिक शादियों पर स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत भी कोई रोक नहीं है, लेकिन समलैंगिक शादियां दिल्ली समेत देश भर में कहीं नहीं होती.


'शादी करने का अधिकार सार्वभौम अधिकार है'
याचिका में कहा गया है कि ये एक निर्विवाद तथ्य है कि शादी करने का अधिकार जीवन के अधिकार की संविधान की धारा 21 के तहत आता है. शादी करने के अधिकार का मानवाधिकार चार्टर में भी जिक्र किया गया है. यह एक सार्वभौम अधिकार है और ये अधिकार हर किसी को मिलना चाहिए भले ही वो समलैंगिक हो या नहीं. लैंगिक आधार पर शादी की अनुमति नहीं देना समलैंगिक लोगों के अधिकारों का उल्लंघन है.

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