नई दिल्ली: नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल (National Green Tribunalनेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल) ने ठोस कचरे का वैज्ञानिक तरीके से निस्तारण नहीं करने पर उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगाई है. एनजीटी चेयरपर्सन जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि ऐसा लगता है कि राज्य के अधिकारी खुद को कानून से ऊपर समझते हैं और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी नियमों का उल्लंघन जारी रखे हुए हैं.
कचरे का वैज्ञानिक तरीके से निस्तारण सुनिश्चित करें
एनजीटी ने उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Uttar Pradesh Pollution Control Board) और बिजनौर के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया कि वे वायु गुणवत्ता और आम लोगों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाले ठोस कचरे का वैज्ञानिक तरीके से निस्तारण सुनिश्चित करें.
एनजीटी ने साफ किया कि आदेश के बावजूद अगर संतोषजनक कदम नहीं उठाए गए तो संबंधित अधिकारियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी. एनजीटी ने कहा कि सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के नियमों के मुताबिक ही शहरी विकास सचिव की ओर से ठोस कचरे के निस्तारण की योजना बनाई जानी चाहिए.
एनजीटी ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मौजूदा नियम बनने के पांच साल बाद और वायु प्रदूषण नियंत्रण अधिनियम (air pollution control act) के लागू होने के 40 साल बाद भी अधिकारी ठोस कचरे का वैज्ञानिक निस्तारण सुनिश्चित करने में असफल रहे हैं.
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बिजनौर में मेन रोड पर फेंके जाते हैं कचरे
अरविंद कुमार ने याचिका दायर कहा है कि बिजनौर जिले में नूरपुर नगर परिषद (Nurpur Municipal Council) की ओर से चांगीपुर गांव के मेन रोड पर अवैज्ञानिक तरीके से कचरे फेंके जाते हैं. इन कचरों में जानवरों के शवों को भी फेंका जाता है जिससे आसपास की हवा में बदबू फैलती है. याचिकाकर्ता ने इसकी शिकायत नगर निगम से भी की थी लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई जिसके बाद उसने एनजीटी का दरवाजा खटखटाया.