नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार से पूछा है कि बिना किसी विशेषज्ञ की सलाह के अदालतों में हाईब्रिड सुनवाई के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध कराने पर 79 करोड़ रुपये कैसे स्वीकृत कर दिए. जस्टिस विपिन सांघी की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि PWD विभाग ने अनुमानित लागत तैयार किया और वित्त मंत्री ने उसे स्वीकृत भी कर दिया.
कोर्ट ने कहा कि सरकार को इंफ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध कराने के लिए लाए गए प्रस्ताव की पड़ताल करनी चाहिए थी. ये सार्वजनिक धन का मामला है और जहां तक संभव हो इसे बचाने की कोशिश करनी चाहिए. सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार की ओर से पेश वकील शादान फरासत ने कहा कि इसे लेकर 29 अक्टूबर को एक बैठक होने वाली है जिसमें एडिशनल चीफ सेक्रेटरी के साथ सभी पक्षों के प्रतिनिधि शामिल होंगे. तब कोर्ट ने कहा कि बैठक में लिए गए फैसलों से हमें अवगत कराएं.
छह सितंबर को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि कोरोना के दौरान न्याय पाने के नागरिकों के अधिकार का जबरदस्त उल्लंघन हुआ है. कोर्ट ने दिल्ली सरकार को निर्देश दिया था कि वो दिल्ली की निचली अदालतों और अर्ध न्यायिक निकायों में इंफ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध कराने के लिए तेजी से कदम उठाए. कोर्ट ने कहा था कि अगर दिल्ली सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध कराने पर काम नहीं करती है तो वो एक अप्रैल से विज्ञापनों और सब्सिडी पर हुए खर्च का पूरा ब्यौरा कोर्ट में दाखिल करे. कोर्ट ने कहा था कि आपको खर्च की प्राथमिकता तय करनी होगी.
सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार की ओर से वकील शदान फरासत ने कहा था कि ये मामला कई विभागों से जुड़ा हुआ है. उन्होंने सुझाव दिया कि इस मसले पर मुख्य सचिव को विभिन्न विभागों के साथ बैठक कर कार्ययोजना तैयार करने का निर्देश देना चाहिए.
अनिल कुमार हजेला ने याचिका दायर कहा है कि दिल्ली की निचली अदालतों और अर्ध-न्यायिक निकायों में हाईब्रिड तरीके से सुनवाई के लिए दिशा-निर्देश जारी किए जाएं. इससे उन वकीलों को लाभ होगा जो फिजिकल सुनवाई में शामिल होने में असमर्थ हैं और जिन्हें दूसरी बीमारियां हैं. इस बात की कोई वैज्ञानिक रिपोर्ट नहीं है जिससे ये पता चले कि कोरोना आने वाले कुछ समय में खत्म होने वाला है.
ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप