नई दिल्ली: पीपीई किट पहनकर लंबे समय तक ड्यूटी करने को लेकर एम्स में बड़ा बवाल हुआ था. आखिर हेल्थ वर्कर्स जिनकी सुरक्षा पीपीई किट है उसी के विरोध में क्यों हो गए. क्या यह स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है. सवाल बहुत सारे हैं.
कोरोना वायरस की भयावहता और इसके फैलने की रफ्तार और ऊपर से इसकी कोई वैक्सीन का उपलब्ध ना होना ये सारी चीजें मिलकर पीपीई किट की अहमियत को बढ़ा देती हैं.
एम्स के कार्डियो-रेडियो विभाग के असिसिटेंट प्रोफेसर डॉ अमरिंदर सिंह ने बताया कि पीपीई किट कोविड से सुरक्षा के लिए जरूरी है लेकिन इसे पहनकर सीमित गतिविधियों के साथ काम करना बहुत मुश्किल है.
गर्मी में पीपीई किट्स पहनना मुश्किल
डॉ अमरिंदर सिंह बताते हैं कि गर्मी का महीना चल रहा है. पीपीई किट प्लास्टिक और नाइलोन की बनी होती है. इससे पूरे शरीर को ढकना होता है ताकि हवा भी प्रवेश ना कर पाए. ऐसे में उस व्यक्ति की स्थिति का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है जो इसके अंदर पल-पल घुट रहा है और हवा के लिए तरस रहा है. पानी तक नहीं पी सकता जबकि उसके शरीर का बूंद-बूंद पानी पसीने के रूप में बाहर निकल आता है.
महिला हेल्थ वर्कर्स की हालत और भी ज्यादा खराब ही जाती है. ऊपर से अगर वो माहवारी की तकलीफ से गुजर रही हो तो फिर उनकी हालत और भी ज्यादा खराब हो जाती है. पीपीई किट के अंदर ब्लीडिंग हो जाती है और इससे जब बाहर आती तो वो अपना होश खो देती है.
पीपीई किट पहनने के बाद होती हैं कई दिक्कतें
डॉ अमरिंदर बताते हैं कि पीपीई किट पहनना नॉन कोविड हेल्थ वर्कर्स की भी मजबूरी हो जाती है. क्योंकि उन्हें बिल्कुल अंदाजा नहीं होता है कि कौन बिना लक्षणों वाला कोविड मरीज उन्हें कोरोना का इन्फेक्शन दे जाए.
डॉ अमरिंदर ने बताया कि पीपीई पहनने के बाद ठीक से दिखाई नहीं देता है. पूरा शरीर पसीने से लथपथ हो जाता है. इसे पहनने वाला इतना एक्सहॉस्टेड हो जाता है कि उनका फिजिकल और मेंटल ब्रेकडाउन हो जाता है. कुछ लोग तो बेहोश होकर गिर जाते हैं. इसे पहनने के बाद ना तो कुछ खा सकते हैं और ना पी सकते हैं.