नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्रीय जांच ब्यूरो और प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारियों की पहचान की मांग करने वाली जनहित याचिका दाखिल करने वाले वकील पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया (delhi high court imposes fine on lawyer) है. याचिका में कथित तौर पर दिल्ली के शराब विक्रेताओं को परेशान करने वाले अधिकारियों की पहचान करने के निर्देश दिए जाने की मांग की गई थी. यह जनहित याचिका अधिवक्ता नरेंद्र खन्ना ने दाखिल की थी.
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने कहा कि जनहित याचिका कानून की प्रक्रिया के सरासर दुरुपयोग के अलावा और कुछ नहीं है, इसलिए इसे खारिज किया जाता है. अदालत ने आरोपों को बेबुनियाद करार देते हुए कहा कि याचिका में सीबीआई या ईडी के एक भी अधिकारी का नाम नहीं है, जिसने शराब विक्रेता को परेशान किया और न ही उन्होंने इस तरह के किसी भी प्रकार के उत्पीड़न का विवरण दिया है. केवल मीडिया में दिए गए बयानों के आधार पर, वह चाहते हैं कि न्यायालय द्वारा इसपर निरंतर जांच की जाए.
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खंडपीठ ने यह भी कहा कि वर्तमान याचिका और कुछ नहीं बल्कि कानून की प्रक्रिया का सरासर दुरुपयोग है और याचिकाकर्ता चाहता है कि इस अदालत द्वारा अस्पष्ट और बेतुके आरोपों के आधार पर एक गहन जांच की जाए. कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए 30 दिनों के अंदर सेना युद्ध विधवा कोष में एक लाख रुपये जमा कराने का निर्देश दिया है. याचिकाकर्ता नरेंद्र खन्ना ने अपनी याचिका में दावा किया था कि उन्होंने दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को किसी समाचार चैनल में एक बयान देते सुना कि केंद्रीय एजेंसियां शराब विक्रेताओं को परेशान कर रहे हैं. याचिका के अनुसार सिसोदिया ने यह पुष्टि भी की थी कि निजी शराब की दुकानें बंद होने से राज्य के खजाने को नुकसान हुआ है.
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