नई दिल्ली: नवरात्रि का पहला दिन, दिल्ली में ये वो दौर होता है जब माता के जगरातों में भजनों की स्वर लहरियां गूंजने लगती हैं. माता की चौकी लगते ही धार्मिक आयोजन होने लगते हैं.दिल्ली में नवरात्रि में माता की चौकियों और जगरातों के आयोजन ने इस देश को कई बड़े कलाकार दिए हैं. दिवंगत भजन गायक नरेन्द्र चंचल को कौन भूल सकता है. सोचिए जरा, कि माता के भजनों में स्वर लहरियां बिखेरने वाले उम्दा कलाकार, साज और साजिंदों की वो मौज़ी फौज न रहे तो फिर दिल्ली में कौन माता रानी के दरबार में भक्ति रस बरसाएगा ?
आप सोच ही रहे हैं लेकिन दिल्ली में कोरोना काल के बाद ये सवाल हकीकत में ही खड़ा हो चुका है. कोरोना काल के लंबे दौर ने न सिर्फ इन कलाकारों की प्रस्तुति का मंच छीन लिया बल्कि अब तो दो जून की रोटी के भी लाले पड़ रहे हैं. माता के जगराते सजाने वाले, आज आर्थिक बोझ में इस कदर फंस चुके हैं कि स्वर, साज और साजिंदों का साथ छूट गया और परिवार का पेट पालने के लिए एक अदद नौकरी की तलाश कर रहे हैं.
जो कभी माता के दरबार में भजनों की शान हुआ करता थे...वो अब कहीं सेल्समैन या गार्ड बनकर जिंदगी जीने की शर्त को मजबूरन निभा रहे हैं. इन लोगों का ऐसे पेशों में जाने का न तो शौक है और न ही कोई तजुर्बा...मगर पेट पालने के लिए जो नौकरी मिले वो किए जा रहे हैं.
माता के भजनों को गाकर हजारों लोगों को अपनी धुन पर थिरकाने वाले ये अजीम फनकार गुमनामी की जिंदगी बिता रहे हैं. नवरात्रों में कई जगह माता का चौकी फिर सजी है लेकिन जगरातों का सिलसिला उस उरूज़ पर नहीं आया कि ऐसे कलाकारों के दिन वापस लौट आएं. इन दो सालों में कलाकारों की जिंदगी पर ही मानों ग्रहण लग गया.
ये ऐसा पेशा है जो सीधे लोगों को दिलों से जोड़ता है. माता रानी के भजनों में लिपटी अरदास की अर्जी अलग-अलग लेकिन हाथ उठाए माता रानी से मनोकामनाएं पूरी करवाने का एक सा तरीका...कहीं भजनों में मुराद पूरी होने की खुशी और उल्लास तो कभी अधूरी कामनाओं और अनजाने अपराधों के लिए माफी मांगने और प्रार्थना का जतन रचा-बसा था.
इनकी डायरी के पन्नों में लिखे भजन और गीतों की एक-एक पंक्ति में हजारों लोगों को अपनी उम्मीदों का अक्स नजर आता था, लेकिन आज ये फनकार खुद ही अपना नया अक्स तलाश रहे हैं. अतीत की परछाइयों से कोसों दूर निकलने के जतन में हैं क्योंकि ये परछाइयां जितनी पास आएंगी, दुनिया उनकी लाचारगी के सिर्फ किस्से सुनाएगी, इन्हें जरूरत को मदद भरे हाथों की है. जो मददगार हो सकते थे वो दो साल से कोरोना काल के बीच कहीं नजर नहीं आए...रही-सही कसर धार्मिक आयोजनों पर लगे प्रतिबंधों ने पूरी कर दी. अपने भजनों से माता रानी के भक्तों को झुमाने वाले इन कलाकारों की बेनूर होती जिंदगियां संभालने न तो प्रशासन आगे आया और न ही वो तबका, जो कभी इन कलाकारों का मुरीद हुआ करता था.
कोरोना काल में सब अपनी सुध में लगे थे तो इन लोगों के हाल कौन पूछता...माता रानी के जगराते एक परम्परा का हिस्सा है...ये धार्मिक ही नहीं हमारी सांस्कृतिक विरासत है और इस विरासत के पहरूए अगर फांकाकशी में जीने लगें तो फिर सवाल हमारी परम्पराओं के प्रति सोई हुई आस्था पर खड़ा हो जाता है. सरकारें, राजनीतिक दल, धार्मिक संगठन, सामाजिक संगठन कौन इनके भजनों का मुरीद नहीं था ? सभी के लिए कुछ न कुछ काम अपने भजन और गीतों में ये कलाकार कर ही जाते हैं. माता रानी की चौकियों और जगरातों को वो वाकई बहुत शिद्दत से सजाते हैं. लेकिन अब हालात कुछ और हैं...
खराब आर्थिक स्थिति से गुजर रहे कलाकार
गायक धर्मपाल कश्यप बताते हैं कि कोरोना के चलते जागरण माता की चौकी और साईं संध्या करने वाले कलाकारों को अपने घर की कई चीजें बेचनी भी पड़ी, साथ ही अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए कर्जा लेना पड़ा. वहीं कई लोग ऐसे भी है जो बैंक की किस्त ना चुका पाने के चक्कर में डिफॉल्टर के लिस्ट में आ गए हैं. जो सामान उन्होंने किश्त पर लिया था उसे बैंक ने जब्त भी कर लिया. इसमें कुछ कलाकारों की गाड़ियां और घर तक शामिल हैं. उन्होंने बताया कि कोरोना के बाद धीरे-धीरे जिस तरह से हालातों में सुधार दिख रहे हैं, उससे उम्मीद है कि जल्दी स्थिति सामान्य होगी, लेकिन फिलहाल ऐसा नहीं लगता कि जल्दी हालात पूरी तरह से सामान्य होने वाले हैं.
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वहीं म्यूजिशियन घनश्याम ने बातचीत के दौरान बताया कि बड़ी संख्या में लोग इस प्रोफेशन से जुड़े हुए थे, जिनके परिवार का भरण पोषण इसी पर निर्भर करता था. कोरोना से आमदनी पूरी तरीके से बंद हो जाने की वजह से लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. कुछ लोगों को अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए ना चाहते हुए भी गार्ड की नौकरी तक करनी पड़ रही है.
कुछ लोगों ने अपने घर के जेवर भी गिरवी रखे, जबकि कई कलाकारों की कोरोना मे मृत्यु हो गई जो बेहद दुखद है. प्रशासन दिल्ली सरकार केंद्र सरकार या फिर किसी भी नेता के ने कलाकारों की किसी भी तरीके से कोई भी मदद नहीं की है. केवल कुछ सामाजिक संगठनों ने कलाकारों की थोड़ी बहुत मदद की है, जिसके चलते हम लोग सरवाइव कर पाए हैं.