नई दिल्ली : पिछले तीन सालों में पहली बार सरकार अपने खर्च में कटौती कर सकती है. मीडिया रिपोर्ट में यह दावा किया गया है. ऐसा कहा जा रहा है कि सरकार हर हाल में सकल घरेलू उत्पाद के 6.4% के राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को पूरा करना चाहती है.
इस रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि एक अप्रैल से शुरू हुए 2022-23 वित्तीय वर्ष के लिए कुल खर्च 700 अरब रुपये से 800 अरब रुपये (8.59 अरब डॉलर से 9.82 अरब डॉलर) तक हो सकतें हैं. हालांकि, बजट में 39.45 ट्रिलियन रु. का प्रावधान किया गया है.
सरकार राजकोषीय घाटे पर लगाम लगाने की इच्छुक है. अभी यह 6.4 फीसदी है. लेकिन आम तौर पर यह चार से पांच प्रतिशत के बीच ही रहता है. लिहाजा, सरकार की चिंता बढ़ रही है. कोविड के दौरान तो राजकोषीय घाटा 9.3 फीसदी तक पहुंच गया था.
अगर सरकार ईंधन पर कर में कटौती करती है और वैश्विक ऊर्जा कीमतों में वृद्धि के प्रभाव को भी कम करना चाहती है, तो उसे कोष से अधिक पैसे खर्च करने होंगे. इसका मतलब सरकार के राजस्व में कमी होनी तय है. एक अनुमान के मुताबिक एक ट्रिलियन रु. की कमी आ सकती है. वैसे, रेवेन्यू में 1.5 से लेकर 2 ट्रिलियन रु. का इजाफा होगा.
सूत्रों के अनुसार, राजस्व में वृद्धि अभी भी प्रत्याशित अतिरिक्त खर्चों को कवर करने के लिए पर्याप्त नहीं होगी, उदाहरण के लिए, सरकार को संभावित रूप से 1.5 ट्रिलियन से 1.8 ट्रिलियन रुपये की अतिरिक्त खाद्य और उर्वरक सब्सिडी प्रदान करनी होगी.
इसके बावजूद सरकार के सूत्र बता रहे हैं कि वह राजकोषीय घाटे के अपने लक्ष्य को पूरा करेगी. उसे युक्तिसंगत बनाया जाएगा. सूत्रों ने यह नहीं बताया कि व्यय में कटौती से किन क्षेत्रों के प्रभावित होने की संभावना है क्योंकि संशोधित बजट अनुमानों पर चर्चा चल रही थी और दिसंबर के अंत तक अंतिम निर्णय लिया जाएगा.
इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सिटी, कोटक और इक्रा जैसे ब्रोकरेज फर्मों के अर्थशास्त्रियों को 6.4 फीसदी घाटे के लक्ष्य की पूर्ति में जोखिम दिख रहा है.
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