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2021: नए साल में भारत की प्रमुख आर्थिक चुनौतियां

नया साल प्रधानमंत्री मोदी की सरकार के लिए आर्थिक स्तर पर काफी चुनौतियों भरा होने वाला है. आइए जानते हैं, अर्थव्यवस्था से लेकर रोजगार तक, वैक्सीन से लेकर बजट की तैयारियों तक, किन मुद्दों पर सरकार को करनी होगी मेहनत.

2021: नए साल में इन आर्थिक चुनौतियों का करना होगा सामना
2021: नए साल में इन आर्थिक चुनौतियों का करना होगा सामना
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Published : Jan 1, 2021, 7:00 AM IST

Updated : Jan 1, 2021, 12:21 PM IST

हैदराबाद : साल 2020 वैश्विक अर्थव्यवस्था पर एक लंबा विराम लगाने के लिए भी जाना जाएगा. जहां पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं कोरोना महामारी से प्रभावित नजर आई.

पहले से ही धीमी रफ्तार से बढ़ रही भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार को वैश्विक महामारी कोरोना ने एक व्यापक धक्का दिया. वायरस के प्रसार को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन ने उद्योग धंधों पर अस्थायी ताला लगा दिया, जिसके फलस्वरूप देश ने आजादी के बाद से सबसे बड़ी मंदी को देखते हुए जीडीपी विकास दर में 23.9 फीसदी की गिरावट दर्ज की.

साल 2021 की शुरुआत में देश जहां एक ओर कोरोना वैक्सीन के वितरण की तैयारियों में लगा है, वहीं आर्थिक मामलों में स्थिति सामान्य होने की तरफ धीरे-धीरे बढ़ रही है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को आने वाले साल में अर्थव्यवस्था से लेकर रोजगार तक कई मुद्दों पर व्यापक चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. आइए एक नजर डालते हैं इन्हीं चुनौतियों पर.

1. कोरोना वैक्सीन का वितरण : अमेरिका और ब्रिटेन जैसे धनी देशों ने अपनी जनता को कोरोना वायरस वैक्सीन देनी शुरू कर दी है, मगर भारत के लिए टीकाकरण की आगे की राह बहुत उज्‍जवल नहीं दिखाई दे रही है. भारत में फाइजर-बायोएनटेक और मॉडर्ना वैक्सीन को लेकर दुर्लभ आपूर्ति, मुश्किल परिवहन और उचित कोल्ड चेन की कमी जैसे कारणों की वजह से टीकाकरण अभियान में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है.

130 करोड़ से अधिक भारतीयों के लिए दो वैक्सीन, एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की ओर से विकसित व सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) की ओर से तैयार की जा रही कोविशिल्ड, भारत बायोटेक लिमिटेड की ओर से तैयार की जा रही कोवैक्सीन अभी भी निर्माताओं या सरकार के नियंत्रण में नहीं होने वाले कारकों के कारण एक दूर का सपना दिखाई दे रही हैं.

सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) अदार पूनावाला ने कहा है कि भारत को अगले साल कोविड वैक्सीन के वितरण के लिए 80,000 करोड़ रुपये के बड़े फंड की आवश्यकता होगी.

केंद्र सरकार ने 2 जनवरी से देशभर में कोविड वैक्सीन के लिए ड्राई रन चलाने का फैसला किया है. वैक्सीनेशन के लिए लगभग 96,000 वैक्सीनेटरों को प्रशिक्षित किया गया है. प्रशिक्षकों के राष्ट्रीय प्रशिक्षण में 2,360 प्रतिभागियों को प्रशिक्षित किया गया है और 719 जिलों में जिला स्तर के प्रशिक्षण में 57,000 से अधिक प्रतिभागियों को प्रशिक्षित किया गया है.

2. बजट : कोरोना महामारी के बाद 1 फरवरी को देश का आम बजट प्रस्तुत होने जा रहा है. इसकी तैयारियों के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पहले ही 15 से अधिक बैठके की हैं, जिनमें 9 हितधारक समूहों के 170 से अधिक प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया.

वित्त मंत्री ने इस बार एक अभूतपूर्व बजट पेश करने का ऐलान किया है. देखना दिलचस्प होगा कि मंदी की चपेट में आए देश को राहत देने के लिए सरकार के बजट में क्या खास होने वाला है.

हालांकि विशेषज्ञों ने वेतनभोगी वर्ग को इस बजट से ज्यादा उम्मीदे नहीं रखने को कहा है, क्योंकि व्यक्तिगत आयकर में कोई बड़ा बदलाव नहीं होने की संभावना है.

वित्तीय योजना और निवेश सलाहकार फर्म मनी मंत्रा के संस्थापक विरल भट्ट ने कहा कि इस बजट से केवल एकमात्र लाभ अपेक्षित है कि किसी नए कर का बोझ न डाला जाए.

3. रोजगार : रोजगार सृजन का मुद्दा 2021 में भी एक महत्वपूर्ण चुनौती बना रहेगा.

असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले 40 करोड़ से अधिक कामगारों को सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध कराना, मौजूदा योजनाओं को नये स्वरूप में ढालना और नई नियुक्तियों में तेजी लाना जैसे कुछ मुद्दे हैं जो 2021 में चुनौती बनकर खड़े होंगे.

इसके अलावा अगले साल एक अप्रैल से चार श्रम संहिताओं के कार्यान्वयन होगा, जिससे औद्योगिक संबंधों में सुधार की दिशा में एक नई शुरुआत होगी और अधिक निवेश जुटाने में मदद मिलेगी.

कोविड-19 महामारी के चलते ये साल कार्यबल के साथ ही नियोक्ताओं के लिए भी चुनौतीपूर्ण रहा है. सरकार ने 25 मार्च से देशव्यापी लॉकडाउन लागू किया, जिसका आर्थिक गतिविधियों पर प्रतिकूल असर पड़ा और इसके चलते बड़े शहरों से प्रवासी मजदूरों को अपने मूल स्थान की ओर पलायन करना पड़ा.

कई प्रवासी मजदूरों ने अपनी नौकरी खो दी और उन्हें अपने मूल स्थानों से काम पर वापस लौटने में महीनों लग गए.

4. विदेशी व्यापार : कोरोना महामारी के बाद से ही यह उम्मीद जतायी जा रही है कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भारत का योगदान बढ़ेगा. किंतु इस पर कोई उत्साहजनक विकास अभी तक नहीं दिखा है.

कोरोना वायरस के केंद्र के रूप में विख्यात होने के बाद कई वैश्विक कंपनियों का चीन से मोह भंग होने की आशंका थी. कई सर्वे में कहा गया कि कोविड-19 का एक बड़ा परिणाम यह है कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला चीन से दूसरी अर्थव्यवस्थाओं यानी देशों की ओर जा रही है. और इस कदम से भारत को लाभ होगा और आने वाले समय में विनिर्माण का अच्छा खासा हिस्सा चीन से भारत का रुख करेगा.

हालांकि, भारत की ओर आने वाले अवसरों को भुनाने के लिए देश के विनिर्माण तंत्र को मजबूत किए जाने की जरूरत है. आत्मनिर्भर भारत पैकेज के तहत सरकार ने कई उपाये किए हैं ताकि अर्थव्यवस्था को दुरुस्त और भारत की विनिर्माण प्रतिस्पर्धा को सुधारने के लिए कदम उठाये जा सके.

इसके अलावा लंबे समय से अटका हुआ भारत-अमेरिका के बीच लघु व्यापार समझौते को भी पूरा करना एक चुनौती होगी.

गौरतलब है कि भारत और अमेरिका के बीच 2020 की शुरुआत राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे के साथ हुई थी. विस्वाल ने कहा कि भारत और अमेरिका के बीच लघु व्यापार समझौता नहीं हो पाया इसके बावजूद दोनों देशों के बीच पूरे साल रणनीतिक भागीदारी जोशपूर्ण बनी रही.

2021 अमेरिका के नए निर्वाचित राष्ट्रपति जो बिडेन और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में शायद दोनों देशों को भागीदारी को अधिक व्यापक बनाने का महत्वपूर्ण अवसर उपलब्ध करायेगा.

5. बैंक सुधार : नये साल में बैंकों के सामने फंसे कर्ज की समस्या से निपटना मुख्य चुनौती होगी. कई कंपनियों खासतौर से सूक्ष्म, लघु एवं मझौली (एमएसएमई) इकाइयों के समक्ष कोरोना वायरस महामारी से लगे झटके के कारण मजबूती से खड़े रहना संभव नहीं होगा, जिसकी वजह से चालू वित्त वर्ष की शुरुआती तिमाहियों के दौरान अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट देखी गई.

बैंकों को आने वाले महीनों में कमजोर कर्ज वृद्धि की चुनौती से भी निपटना होगा. निजी क्षेत्र का निवेश इस दौरान कम रहने से कंपनी क्षेत्र में कर्ज वृद्धि पर असर पड़ा है. बैंकिंग तंत्र में नकदी की कमी नहीं है लेकिन इसके बावजूद कंपनी क्षेत्र से कर्ज की मांग धीमी बनी हुई है.

पिछले कुछ सालों के दौरान निजी क्षेत्र का निवेश काफी कम बना हुआ है और अर्थव्यवस्था को उठाने का काम सार्वजनिक व्यय के दारोमदार पर टिका है. बैंकिंग क्षेत्र का जहां तक सवाल है वर्ष के शुरुआती महीनों में ही कोरोना वायरस के प्रसार से उसके कामकाज पर भी असर पड़ा. गैर- निष्पादित राशि (एनपीए) यानी फेसे कर्ज से उसका पीछा छूटता हुआ नहीं दिखा.

रेटिंग एजेंसी इक्रा ने अनुमान लगाया है कि मार्च 2021 तक बैंकों का सकल एनपीए 10.6 फीसदी तक हो जाएगा. वहीं शुद्ध एनपीए के 3.2 फीसदी तक होने का अनुमान है.

6. अर्थव्यवस्था में सुधार : आरबीआई ने अपने हालिया रिपोर्ट में कहा है कि देश की अर्थव्यवस्था विभिन्न अनुमानों की तुलना में तेजी से कोविड-19 महामारी के दुष्प्रभाव से बाहर आ रही है और आर्थिक वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में ही सकारात्मक दायरे में आ जाएगी.

कोरोना वायरस महामारी से प्रभावित भारतीय अर्थव्यवस्था में चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 23.9 प्रतिशत की बड़ी गिरावट आयी. वहीं दूसरी तिमाही में गिरावट कम होकर 7.5 प्रतिशत रही.

हालांकि इसी के साथ एक लेख में आरबीआई विशेषज्ञों ने केंद्र और राज्य सरकारों ने आर्थिक विकास की गति को बरकरार रखने के लिए राजकोषीय उपायों को जारी रखने की सलाह दी है.

ये भी पढ़ें : 2020 में कैसा रहा भारतीय खुदरा क्षेत्र

हैदराबाद : साल 2020 वैश्विक अर्थव्यवस्था पर एक लंबा विराम लगाने के लिए भी जाना जाएगा. जहां पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं कोरोना महामारी से प्रभावित नजर आई.

पहले से ही धीमी रफ्तार से बढ़ रही भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार को वैश्विक महामारी कोरोना ने एक व्यापक धक्का दिया. वायरस के प्रसार को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन ने उद्योग धंधों पर अस्थायी ताला लगा दिया, जिसके फलस्वरूप देश ने आजादी के बाद से सबसे बड़ी मंदी को देखते हुए जीडीपी विकास दर में 23.9 फीसदी की गिरावट दर्ज की.

साल 2021 की शुरुआत में देश जहां एक ओर कोरोना वैक्सीन के वितरण की तैयारियों में लगा है, वहीं आर्थिक मामलों में स्थिति सामान्य होने की तरफ धीरे-धीरे बढ़ रही है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को आने वाले साल में अर्थव्यवस्था से लेकर रोजगार तक कई मुद्दों पर व्यापक चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. आइए एक नजर डालते हैं इन्हीं चुनौतियों पर.

1. कोरोना वैक्सीन का वितरण : अमेरिका और ब्रिटेन जैसे धनी देशों ने अपनी जनता को कोरोना वायरस वैक्सीन देनी शुरू कर दी है, मगर भारत के लिए टीकाकरण की आगे की राह बहुत उज्‍जवल नहीं दिखाई दे रही है. भारत में फाइजर-बायोएनटेक और मॉडर्ना वैक्सीन को लेकर दुर्लभ आपूर्ति, मुश्किल परिवहन और उचित कोल्ड चेन की कमी जैसे कारणों की वजह से टीकाकरण अभियान में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है.

130 करोड़ से अधिक भारतीयों के लिए दो वैक्सीन, एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की ओर से विकसित व सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) की ओर से तैयार की जा रही कोविशिल्ड, भारत बायोटेक लिमिटेड की ओर से तैयार की जा रही कोवैक्सीन अभी भी निर्माताओं या सरकार के नियंत्रण में नहीं होने वाले कारकों के कारण एक दूर का सपना दिखाई दे रही हैं.

सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) अदार पूनावाला ने कहा है कि भारत को अगले साल कोविड वैक्सीन के वितरण के लिए 80,000 करोड़ रुपये के बड़े फंड की आवश्यकता होगी.

केंद्र सरकार ने 2 जनवरी से देशभर में कोविड वैक्सीन के लिए ड्राई रन चलाने का फैसला किया है. वैक्सीनेशन के लिए लगभग 96,000 वैक्सीनेटरों को प्रशिक्षित किया गया है. प्रशिक्षकों के राष्ट्रीय प्रशिक्षण में 2,360 प्रतिभागियों को प्रशिक्षित किया गया है और 719 जिलों में जिला स्तर के प्रशिक्षण में 57,000 से अधिक प्रतिभागियों को प्रशिक्षित किया गया है.

2. बजट : कोरोना महामारी के बाद 1 फरवरी को देश का आम बजट प्रस्तुत होने जा रहा है. इसकी तैयारियों के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पहले ही 15 से अधिक बैठके की हैं, जिनमें 9 हितधारक समूहों के 170 से अधिक प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया.

वित्त मंत्री ने इस बार एक अभूतपूर्व बजट पेश करने का ऐलान किया है. देखना दिलचस्प होगा कि मंदी की चपेट में आए देश को राहत देने के लिए सरकार के बजट में क्या खास होने वाला है.

हालांकि विशेषज्ञों ने वेतनभोगी वर्ग को इस बजट से ज्यादा उम्मीदे नहीं रखने को कहा है, क्योंकि व्यक्तिगत आयकर में कोई बड़ा बदलाव नहीं होने की संभावना है.

वित्तीय योजना और निवेश सलाहकार फर्म मनी मंत्रा के संस्थापक विरल भट्ट ने कहा कि इस बजट से केवल एकमात्र लाभ अपेक्षित है कि किसी नए कर का बोझ न डाला जाए.

3. रोजगार : रोजगार सृजन का मुद्दा 2021 में भी एक महत्वपूर्ण चुनौती बना रहेगा.

असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले 40 करोड़ से अधिक कामगारों को सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध कराना, मौजूदा योजनाओं को नये स्वरूप में ढालना और नई नियुक्तियों में तेजी लाना जैसे कुछ मुद्दे हैं जो 2021 में चुनौती बनकर खड़े होंगे.

इसके अलावा अगले साल एक अप्रैल से चार श्रम संहिताओं के कार्यान्वयन होगा, जिससे औद्योगिक संबंधों में सुधार की दिशा में एक नई शुरुआत होगी और अधिक निवेश जुटाने में मदद मिलेगी.

कोविड-19 महामारी के चलते ये साल कार्यबल के साथ ही नियोक्ताओं के लिए भी चुनौतीपूर्ण रहा है. सरकार ने 25 मार्च से देशव्यापी लॉकडाउन लागू किया, जिसका आर्थिक गतिविधियों पर प्रतिकूल असर पड़ा और इसके चलते बड़े शहरों से प्रवासी मजदूरों को अपने मूल स्थान की ओर पलायन करना पड़ा.

कई प्रवासी मजदूरों ने अपनी नौकरी खो दी और उन्हें अपने मूल स्थानों से काम पर वापस लौटने में महीनों लग गए.

4. विदेशी व्यापार : कोरोना महामारी के बाद से ही यह उम्मीद जतायी जा रही है कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भारत का योगदान बढ़ेगा. किंतु इस पर कोई उत्साहजनक विकास अभी तक नहीं दिखा है.

कोरोना वायरस के केंद्र के रूप में विख्यात होने के बाद कई वैश्विक कंपनियों का चीन से मोह भंग होने की आशंका थी. कई सर्वे में कहा गया कि कोविड-19 का एक बड़ा परिणाम यह है कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला चीन से दूसरी अर्थव्यवस्थाओं यानी देशों की ओर जा रही है. और इस कदम से भारत को लाभ होगा और आने वाले समय में विनिर्माण का अच्छा खासा हिस्सा चीन से भारत का रुख करेगा.

हालांकि, भारत की ओर आने वाले अवसरों को भुनाने के लिए देश के विनिर्माण तंत्र को मजबूत किए जाने की जरूरत है. आत्मनिर्भर भारत पैकेज के तहत सरकार ने कई उपाये किए हैं ताकि अर्थव्यवस्था को दुरुस्त और भारत की विनिर्माण प्रतिस्पर्धा को सुधारने के लिए कदम उठाये जा सके.

इसके अलावा लंबे समय से अटका हुआ भारत-अमेरिका के बीच लघु व्यापार समझौते को भी पूरा करना एक चुनौती होगी.

गौरतलब है कि भारत और अमेरिका के बीच 2020 की शुरुआत राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे के साथ हुई थी. विस्वाल ने कहा कि भारत और अमेरिका के बीच लघु व्यापार समझौता नहीं हो पाया इसके बावजूद दोनों देशों के बीच पूरे साल रणनीतिक भागीदारी जोशपूर्ण बनी रही.

2021 अमेरिका के नए निर्वाचित राष्ट्रपति जो बिडेन और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में शायद दोनों देशों को भागीदारी को अधिक व्यापक बनाने का महत्वपूर्ण अवसर उपलब्ध करायेगा.

5. बैंक सुधार : नये साल में बैंकों के सामने फंसे कर्ज की समस्या से निपटना मुख्य चुनौती होगी. कई कंपनियों खासतौर से सूक्ष्म, लघु एवं मझौली (एमएसएमई) इकाइयों के समक्ष कोरोना वायरस महामारी से लगे झटके के कारण मजबूती से खड़े रहना संभव नहीं होगा, जिसकी वजह से चालू वित्त वर्ष की शुरुआती तिमाहियों के दौरान अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट देखी गई.

बैंकों को आने वाले महीनों में कमजोर कर्ज वृद्धि की चुनौती से भी निपटना होगा. निजी क्षेत्र का निवेश इस दौरान कम रहने से कंपनी क्षेत्र में कर्ज वृद्धि पर असर पड़ा है. बैंकिंग तंत्र में नकदी की कमी नहीं है लेकिन इसके बावजूद कंपनी क्षेत्र से कर्ज की मांग धीमी बनी हुई है.

पिछले कुछ सालों के दौरान निजी क्षेत्र का निवेश काफी कम बना हुआ है और अर्थव्यवस्था को उठाने का काम सार्वजनिक व्यय के दारोमदार पर टिका है. बैंकिंग क्षेत्र का जहां तक सवाल है वर्ष के शुरुआती महीनों में ही कोरोना वायरस के प्रसार से उसके कामकाज पर भी असर पड़ा. गैर- निष्पादित राशि (एनपीए) यानी फेसे कर्ज से उसका पीछा छूटता हुआ नहीं दिखा.

रेटिंग एजेंसी इक्रा ने अनुमान लगाया है कि मार्च 2021 तक बैंकों का सकल एनपीए 10.6 फीसदी तक हो जाएगा. वहीं शुद्ध एनपीए के 3.2 फीसदी तक होने का अनुमान है.

6. अर्थव्यवस्था में सुधार : आरबीआई ने अपने हालिया रिपोर्ट में कहा है कि देश की अर्थव्यवस्था विभिन्न अनुमानों की तुलना में तेजी से कोविड-19 महामारी के दुष्प्रभाव से बाहर आ रही है और आर्थिक वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में ही सकारात्मक दायरे में आ जाएगी.

कोरोना वायरस महामारी से प्रभावित भारतीय अर्थव्यवस्था में चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 23.9 प्रतिशत की बड़ी गिरावट आयी. वहीं दूसरी तिमाही में गिरावट कम होकर 7.5 प्रतिशत रही.

हालांकि इसी के साथ एक लेख में आरबीआई विशेषज्ञों ने केंद्र और राज्य सरकारों ने आर्थिक विकास की गति को बरकरार रखने के लिए राजकोषीय उपायों को जारी रखने की सलाह दी है.

ये भी पढ़ें : 2020 में कैसा रहा भारतीय खुदरा क्षेत्र

Last Updated : Jan 1, 2021, 12:21 PM IST
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