नई दिल्ली : मोदी सरकार के द्वारा 1 फरवरी को पेश किए गए बजट में न्यायपालिका के लिए विशेष विजन दिखा है. न्यायपालिका के लिए पेश किए गए बजट में 7000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है. इसके जरिए कोर्ट प्रोजेक्ट के तीसरे चरण का शुभारंभ किया जाएगा, जिसमें न्याय व्यवस्था को सरल, सक्षम और पारदर्शी बनाने की पहल की जा रही है.
आपको याद होगा कि इसके पहले दो चरणों में अदालतों का कंप्यूटरीकरण, अदालतों की आपस में इंटरलिंकिंग, सिटीजन केंद्रित सेवाओं को शुरू किया जाना और साथ ही साथ पारदर्शी और जवाबदेह न्याय प्रणाली को विकसित करने के उद्देश्य से काम शुरू किया गया था. जानकारी के अनुसार पहले दो चरणों की बुनियादी सफलता के बाद अब तीसरे चरण में अदालतों का डिजिटाइजेशन किया जाना है. डिजिटाइजेशन के इस तीसरे चरण में न्यायिक प्रक्रियाओं का सरलीकरण करते हुए डिजिटल आधारभूत ढांचे का सृजन किया जाएगा.
हर स्तर पर तकनीकि का इस्तेमाल
माना जा रहा है कि इस ढांचे के विकसित होने से न्यायपालिका के हर स्तर पर तकनीकि का इस्तेमाल शुरू होगा. इससे सुप्रीम कोर्ट से लेकर मुंसिफ कोर्ट तथा मुफस्सिल कोर्ट तक तकनीकी अधिकारियों को लगाया जाएगा, जो न्यायपालिका को डिजिटल तकनीक के बेहतर इस्तेमाल करने के योग्य बनाने की दिशा में काम करेंगे. यह तकनीकी अधिकारी जज और उनके स्टाफ को आदेशों और प्रक्रियाओं को डिजिटाइज करने में मदद करेंगे. इसके साथ ही साथ कोर्ट में होने वाले सभी कार्यों को डिजिटल तरीके से सुरक्षित और संरक्षित करने के लिए भी तौर तरीके बताते हुए उनकी मदद करेंगे.
डिजिटल इन्फ्राएस्ट्रक्चर तैयार करने की कोशिश
सरकार ने इस पहल के तहत एक पूरा डिजिटल इन्फ्राएस्ट्रक्चर तैयार करने की कोशिश की है. ताकि न्यायालय की सेवाओं को और बेहतर तथा सरल तरीके से लोगों के लिए उपलब्ध कराया जा सके. इतना ही नहीं अदालत के फैसलों को स्थानीय भाषा में अनुवाद करने की भी सुविधा को बढ़ाने की योजना है, ताकि लोगों को आदेशों की कॉपियां उनकी भाषा में मिल सकें.
बताया जा रहा है कि न्यायालय के आदेशों को त्वरित गति से संबंधित व्यक्ति (पीड़ित व वादी) तक पहुंचाने की दिशा में तेजी से काम किया जाएगा, ताकि लोगों को इसका लाभ तत्काल मिल सके. डिजिटल सेवाओं को पूर्ण करने से सेवाओं को और बेहतर बनाने में मदद मिलेगी. इससे अधिवक्ताओं और वादकारियों को विशेष लाभ मिलेगा.
आदेशों की प्रतियां लोकल भाषा में
आपको याद होगा कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विधि दिवस के मौके पर कहा था कि अदालतों के आदेशों की प्रतियां जल्द से जल्द वादकारी को मिल जाएं, यह सुनिश्चित कराना होगा. इसके साथ साथ प्रधानमंत्री ने कहा था कि अगर यह फैसला लोगों की भाषा में मिले तो और बेहतर होगा. इसी के बाद मुख्य न्यायाधीश डॉ डीवी चंद्रचूड़ ने तीसरे ई-कोर्ट प्रोजेक्ट के तहत पिछले दिनों 3000 से ज्यादा फैसलों को आठवीं अनुसूची में शामिल भाषाओं में अनुवाद करके जारी किया था. जस्टिस चंद्रचूड़ इसकी कमेटी के अध्यक्ष हैं.
आपने देखा होगा कि पहले दो चरणों में कोर्ट का कंप्यूटरीकरण, वीडियो कांफ्रेंसिंग की सुविधा दिए जाने तथा कोर्ट को इंटरलिंक किया जा चुका है. ई-कोर्ट की शुरुआत भी 2005 में ही की जा चुकी है. अब धीरे धीरे न्यायालयों में तकनीकि के इस्तेमाल को सराहा जा रहा है. फिलहाल सरकार इसको और बेहतर बनाने की कोशिश करने जा रही है.