नई दिल्ली: मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (एमएसएफ) के माध्यम से बैंकों की उधारी अभी तक के सबसे उचे स्तर पर पहुंच गई है. इससे साफ तौर से पता चलता है कि बैंकिंग सिस्टम में लिक्विडिटी और कम हो गई है. बैंकों की उधारी 2 ट्रिलियन रुपये के आंकड़े को पार कर बुधवार को 2.34 ट्रिलियन रुपये और गुरुवार को 2.05 ट्रिलियन रुपये पर पहुंच गई है. इस सप्ताह 7,300 करोड़ रुपये के आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आईपीओ), कई बॉन्ड जारी करने और एडवांस टैक्स फ्लो में भाग लेने के लिए निवेशकों की होड़ के कारण, बैंकिंग सिस्टम में लिक्विडिटी की कमी हो गई है.
अक्टूबर से बैंकिंग सिस्टम में लिक्विडिटी कम हुई
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अक्टूबर से बैंकिंग सिस्टम में लिक्विडिटी कम हुई और इन आईपीओ ने इस सख्ती में योगदान दिया है. लिक्विडिटी की कमी के पीछे एडवांस टैक्स भुगतान का बहिर्प्रवाह मुख्य कारकों में से एक था. इस सप्ताह टाटा टेक्नोलॉजीज, गांधार ऑयल रिफाइनरी, फ्लेयर राइटिंग इंडस्ट्रीज, फेडबैंक फाइनेंशियल सर्विसेज, इंडियन रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी के आईपीओ सब्सक्रिप्शन के लिए खुले थे.
इस महीने बैंकों की बढ़ी उधारी
इस महीने के पहले सप्ताह में एमएसएफ के माध्यम से उधारी 45,000-74,000 करोड़ रुपये के बीच रही, बैंकों को इस सप्ताह 1-2.34 ट्रिलियन रुपये की सीमा में उधार लेने के लिए मजबूर होना पड़ा है. सिस्टम में लिक्विडिटी की तंगी के जवाब में, केंद्रीय बैंक ने लिक्विडिटी समायोजन सुविधा (एलएएफ) संचालन के माध्यम से 1.5 ट्रिलियन रुपये का निवेश किया है. नवंबर में आरबीआई द्वारा लिक्विडिटी का फलो भी बढ़ा है. 7 अक्टूबर को, केंद्रीय बैंक ने लगभग 21,000 करोड़ रुपये का निवेश किया, जो इस सप्ताह के दौरान बढ़कर 1-1.7 ट्रिलियन रुपये हो गया है. इस महीने लिक्विडिटी की कमी के कारण सिस्टम से 2.5 -2.7 ट्रिलियन रुपये बाहर हो गए हैं.
मुद्रास्फीति पर आरबीआई की नजर
इसी वजह से आरबीआई किसी भी तेजी से बढ़ती मुद्रास्फीति को रोकने के लिए सतर्क रुख बनाए हुए है. जब सिस्टम में लिक्विडिटी खत्म हो जाती है तो बैंक रातोंरात धन प्राप्त करने के लिए आरबीआई की एमएसएफ सुविधा का सहारा लेते हैं. वर्तमान में, एमएसएफ दर 6.75 फीसदी है, जो रेपो दर से 25 आधार अंक अधिक है. बैंकों के लोन और जमा की वृद्धि में बेमेल लिक्विडिटी पर दबाव डाल रहा है. विशेषज्ञों के अनुसार, लिक्विडिटी की तंगी की स्थिति जारी रहने की संभावना है क्योंकि अगले शादी के मौसम के कारण खर्च अधिक रहने की संभावना है.