नई दिल्ली : सरकारी स्वामित्व वाली बीमा कंपनियों के संचालन की निगरानी करने वाले वित्तीय सेवा विभाग (डीएएफएस) ने डीआईपीएएम को पत्र लिखकर जल्दबाजी में विलय योजना की दिशा में नहीं बढ़ने को कहा है. साथ ही प्रस्ताव की नए सिरे से जांच करने और संचालन की जटिल समस्याओं को पहले सुलझाने को कहा गया है.
नई रुकावट से निवेश और सार्वजनिक संपत्ति प्रबंधन विभाग (डीआईपीएएम) द्वारा तैयार किए गए इस साल के विनिवेश कैलेंडर से विलय की योजना पहले ही बाहर हो चुकी है.
सूत्र बताते हैं कि वित्त मंत्रालय की ओर नई चिंता जाहिर किए जाने के बाद अगर केंद्र में नई सरकार आएगी तो अगले साल भी विलय की योजना को अमलीजामा पहनाना मुश्किल होगा.
सरकार ने 2018 में पेश बजट में तीन बीमा कंपनियों, नेशनल इंश्योरेंस कंपनी, यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी और ओरिएंटल इंडिया इंश्योरेंस कंपनी का विलय करने की घोषणा की थी.
इस प्रस्ताव को बीमा क्षेत्र में अब तक का सबसे बड़ा विलय बताया गया था जिसमें नई कंपनी एक लाख करोड़ रुपये से अधिक की हो जाएगी. सरकार ने वित्त विलय की कवायद वित्त वर्ष 2019 में ही पूरी कर लेने की बात कही थी.
घटनाक्रम की जानकारी रखने वाले एक अधिकारी ने कहा, "डीएफएस की चिंता यह है कि कवायद की विभिन्न कोणों से जांच किए बिना तीन साधारण बीमा कंपनियों का विलय कर एक कंपनी बनाने से नई कंपनी के लिए समस्या पैदा हो सकती है. इसके अलावा, घाटा कम करने और कंपनियों के संचालन को सक्षम बनाने व कम लागत के भी मसले हैं. डीएफएस ने अपने पत्र में इन सारी बातों का प्रमुखता से जिक्र किया है. पत्र से विलय की प्रक्रिया असल में अटक गई है और इसे पूरा करने में और समय लगेगा."
उन्होंने कहा, " सरकारी स्वामित्व वाली तीन साधारण बीमा कंपनियों का प्रस्तावित विलय अब अगले वित्त वर्ष में ही होगा. अगर डीएफएस द्वारा चिन्हित कार्यो को लागू किया जाता है और उसका विस्तार से परीक्षण किया जाता है तो इससे विलंब भी हो सकता है."
अधिकारियों ने बताया कि वित्तीय मसलों के अलावा किसी प्रकार के विलय पर विचार करने से पहले तीनों कंपनियों के एचआर के कार्यो की पूरी समीक्षा करने की भी आवश्यकता होगी. संयुक्त कंपनी तभी विकास कर सकती है जब कंपनियों की सहक्रियता हो। बहरहाल, इन कंपनियों के बीच ऐसा कुछ नहीं है और वाणिज्यिक हितों को लेकर प्रत्येक कंपनी की अन्य कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा है.
(आईएएनएस)
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