हैदराबाद: भारत में बैंक विश्वास का पर्याय है लेकिन यह भी एक कड़वा सच है कि बैंकिंग प्रणाली को मजबूत करने के दशकों के लंबे प्रयास को कई बार विफलता का सामना करना पड़ा है.
फरवरी 2018 में पंजाब नेशनल बैंक ने खुलासा किया कि उसकी एक शाखा में 14,000 करोड़ रुपए की धोखाधड़ी सामने आई है. इसके बाद बैंक ने लेनदेन धोखाधड़ी का मामला दर्ज कराया था.
इसके बाद इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज (आईएलएंडएफएस) और दीवान हाउसिंग फाइनेंस कॉर्पोरेशन (डीएचएफएल) पर इसी तरह के घोटालों का आरोप लगाया गया और अब हाल ही में पंजाब और महाराष्ट्र सहकारी बैंक (पीएमसी) में एक घोटाले का खुलासा हुआ है. यह बैंक महाराष्ट्र, कर्नाटक, गोवा, गुजरात, आंध्र प्रदेश और दिल्ली में अपना संचालन करता है.
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हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने स्पष्ट किया कि किसी भी राष्ट्रीयकृत बैंक को बर्बाद नहीं होने देंगे. उन्होंने कहा कि आरबीआई ने पीएमसी बैंक के प्रबंध निदेशक जॉय थॉमस कि ओर से लिखें पत्र के बाद ही एक्शन लिया था.
पीएमसी बैंक हाउसिंग डेवलपमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (एचडीआईएल) कि ओर से लोन डिफाल्ट को छिपा रहा था, जो बैंक की कुल संपत्ति का लगभग 70 प्रतिशत है. यह कुल Rs.6,500 करोड़ की हेरा-फेरी थी. थॉमस के पत्र के अनुसार एचडीआईएल कि हेरा-फेरी को छिपाने के लिए 21,049 फर्जी खाते खोले गए थे.
पीएमसी बैंक के पास 8,617 करोड़ रुपये जमा थे. यह बैंक पिछले 8 सालों से आरबीआई के मानदंडों का उल्लंघन कर रहा था. इस घटना के बाद आरबीआई ने बैंक पर कुछ प्रतिबंध लगा दिए. जिसके बाद यह बैंक आरबीआई के निर्देशों के तहत चलने 24वां बैंक बन गया. यह सहकारी बैंकों की स्थिति है जो वाणिज्यिक बैंकों की तुलना में अधिक ब्याज दर देकर निवेशकों को धोखा देते हैं.
तेलुगु राज्यों में वासवी, भाग्यनगर, कृशी, चारमीनार और मेगासिटी जैसे कई बैंक धोखाधड़ी की वजह से चर्चा में आए थे. हालांकि सहकारी बैंकों की विफलता के कारणों जानना बहुत मुश्किल नहीं है और इसकी देख रेख करने के लिए कई समितियों को नियुक्त किया गया है, लेकिन उचित सतर्कता प्रणालियों की कमी से जमाकर्ताओं को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
वहीं, गुजरात में मधेपुरा मर्केंटाइल को-ऑपरेटिव बैंक केतन पारेख शेयर बाजार घोटाले के लिए दोषी पाया गया. एक छोटा सा खामियाजा 130 से अधिक लघु बैंकों को बर्बाद कर देगा. पीएमसी बैंक जिसने 8,400 करोड़ रुपये का लोन दिया है वह भारत के सबसे बड़े सहकारी बैंकों में से एक है. घोटाले के खिलाफ तेजी से कार्रवाई करने और निवेशकों को समाधान प्रदान करने के लिए आरबीआई के लिए यह एक महत्वपूर्ण काम होगा.
आरबीआई की जनगणना के अनुसार, 2005 में 1,926 शहरी सहकारी बैंक थे जो 2018 में घटकर 1,550 हो गए. आरबीआई ने सहकारी बैंक को दो श्रेणी में रखा है, टायर-1 और टायर-2. जिसमें एक करोड़ से कम जमा राशी वाले सहकारी बैंकों को टायर-1 में और इससे ज्यादा राशी वाले बैंकों को टायर-2 में रखा है. सहकारी बैंकों की कुल संपत्ति 5.6 लाख करोड़ की है और कुल जमा राशी 4.6 लाख करोड़ है. वहीं, इन बैंकों पर 2.8 लाख करोड़ लोन भी है. भले ही सहकारी बैंक कुल बैंकों का 4 प्रतिशत हैं, फिर भी उनका महत्व कम नहीं है.
आंध्र प्रदेश में कई सहकारी बैंक घोटालों के बाद नरसिंह मूर्ति समिति को नियुक्त किया गया था. जिसने कई उपयोगी दिशानिर्देश तैयार किए. इस समिति ने सुझाव दिया कि था कि सहकारी बैंकों के प्रणाली में बैंकिंग, वित्त और लेखा परीक्षा क्षेत्रों के विशेषज्ञों को लाना चाहिए. इसके साथ ही निदेशकों और उनके परिवार के सदस्यों को ऋण का प्रतिशत 2 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए.
इसके बाद आरबीआई ने कई सुधार किए, लेकिन हालिया पीएमसी घोटाला अभावग्रस्त कार्यान्वयन और सतर्कता दिखाता है. ऐसी घटनाओं के मद्देनजर, सहकारी बैंकिंग की भावना को प्रभावित किए बिना कई महत्वपूर्ण सुधार की जरुरत है.