हैदराबाद: भारत ने जब 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त की थी तब एक रुपया एक डॉलर के बराबर था. तब से आजतक भारतीय रुपया लगातार नीचे की ओर लुढ़क रहा है. पिछले एक दशक में डॉलर के मुकाबले मुद्रा में बड़े पैमाने पर 70 प्रतिशत की गिरावट आई है.
यहां तक कि अगर हम पिछले छह महीनों को देखें तो कोरोना महामारी के कारण रुपये में बड़ी गिरावट देखने को मिली है. इस दौरान रुपया 4 प्रतिशत घटकर 75 रुपया प्रति डॉलर पर पहुंच गया.
दिलचस्प बात यह है कि आम आदमी आमतौर पर गिरते रुपये की खबरों से बहुत परेशान नहीं होता है, यह सोचकर कि यह सिर्फ सरकार या भारतीय रिजर्व बैंक या बड़े कॉर्पोरेट घरानों के लिए चिंता का कारण है.
लेकिन यह सबसे बड़ी गलतफहमी में से एक है. रुपये में गिरावट आपके वित्त पर प्रत्यक्ष रूप से अधिक प्रभाव डाल सकता है जितना आप कल्पना भी नहीं कर सकते. आइए देखते हैं कि कैसे यह आपके जेब पर असर डाल सकता है.
विदेश में शिक्षा
अधिकांश भारतीय माता-पिता के लिए एक अच्छे विदेशी विश्वविद्यालय से डिग्री प्राप्त करना एक बड़ी बात है. इस सपने को पूरा करने के लिए वे अपना अधिकांश पैसा बच्चों की पढ़ाई के लिए जमा करते हैं.
लेकिन पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से रुपये में गिरावट को देखा गया है. उसने इस तरह की कई योजनाओं को झटका दिया है.
यहां तक कि अगर कोई मानता है कि विदेशों में विश्वविद्यालयों ने अपनी फीस नहीं बढ़ाई है तो भी भारतीयों को इन खर्चों की योजना बनाते समय 5 या 10 साल पहले की तुलना में अधिक भुगतान करना होगा.
उदाहरण के लिए यदि कोई अमेरिकी विश्वविद्यालय साल 2010 में एक साल के लिए एक हजार डॉलर शुल्क लेता है तो भारतीय अभिभावकों ने 45 हजार रुपये की वार्षिक लागत का अनुमान लगाया होगा क्योंकि साल 2010 में रुपये-डॉलर विनिमय दर 45 थी. अब साल 2020 में यह 75 पहुंच गया है यानि अब उस फीस के लिए 75,000 रुपये खर्च करने होगें.
फीस के अलावा माता-पिता कमरे के किराए, भोजन और अन्य चीजों पर अधिक खर्च करते हैं जो एक छात्र को विदेश में रहने पर देना पड़ता है.
विदेश यात्रा
दुनिया भर में यात्रा उद्योग एक ठहराव पर आ गया है क्योंकि देशों ने कोरोनो वायरस के प्रसार को रोकने के लिए अपनी सीमाओं को बंद कर दिया है.
हालांकि, एक बार अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के पूरी तरह से शुरू हो जाने के बाद, बहुत अधिक मांग उठने की उम्मीद है क्योंकि लोग किसी विदेशी देश में यात्रा की योजना बनाने से नहीं कतराएंगे.
इस तरह की छुट्टियों की योजना बनाते समय हर कोई अपने खर्चों को ध्यान में रखते हुए बचत का एक हिस्सा अलग रखता है.
लेकिन कमजोर रुपये का मतलब यह है कि लोगों को रेस्तरां, फ्लाइट टिकट, होटल बिल और निश्चित रूप से खरीदारी के लिए अधिक पैसा खर्च करना होगा.
संभवतः, जो लोग अभी भी योजना बना रहें हैं. वे एक सस्ते स्थान पर जाने का विचार करेंगे या यात्रा को पूरी तरह से स्थगित कर देंगे.
ईंधन की कीमतें
चूंकि भारत कच्चे तेल का शुद्ध आयातक है. इसलिए रुपया में गिरावट तेल आयात को महंगा बनाता है.
जिससे देश में पेट्रोल और डीजल कीमतें बढ़ जाती है और इसका सीधा असर आम -आदमी की जेब पर पड़ता है.
अन्य निर्यात और आयात
रुपए में तेज गिरावट से सभी आयातित सामान महंगे हो जाते हैं क्योंकि वे डॉलर में मूल्य टैग लगाते हैं.
इसलिए गैजेट या इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, सौंदर्य प्रसाधन, इत्र, कपड़े आदि जैसे सामान भारतीय रुपये में कमाने वाले किसी व्यक्ति के लिए अधिक महंगे हो सकते हैं.
विशेष रूप से कारखाने और व्यवसाय अपने कच्चे माल या अन्य महत्वपूर्ण घटकों के लिए आयात पर निर्भर करते हैं, यदि रुपये में गिरावट आती है तो उन्हें उच्च लागत का दंश झेलना पड़ता है.
वे या तो उच्च लागत को अवशोषित कर सकते हैं और अपने मार्जिन पर एक हिट ले सकते हैं, या ग्राहकों पर मूल्य वृद्धि पास कर सकते हैं, जिससे वे इसके लिए अधिक भुगतान करते हैं.
किसी भी तरह से रुपये के कमजोर होने से होने वाले नुकसान को किसी को वहन करना ही होगा.
शेयर बाजार
जब रुपया तेज गिरावट दिखाता है, तो शेयर बाजार भी अस्थिर हो जाता है.
बेंचमार्क इंडेक्स सेंसेक्स और निफ्टी आमतौर पर मुद्रा मूल्य में अचानक गिरावट पर नकारात्मक रूप से प्रतिक्रिया करते हैं. जिससे घरेलू निवेशकों को विशेष रूप से छोटे खुदरा निवेशकों कि मेहनत की कमाई घट जाती है.
(ईटीवी भारत रिपोर्ट)