मुंबई: रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने गुरुवार को कहा कि आर्थिक वृद्धि में गिरावट और मुद्रास्फीति में स्थिरता को देखते हुए नीतिगत दर में कटौती की और गुंजाइश है. उन्होंने कहा कि महंगाई दर के अगले एक साल तक लक्ष्य से नीचे रहने की संभावना है.
रिजर्व बैंक इस साल चार पर नीतिगत दर में कटौती कर चुका है. हालांकि गवर्नर ने तुंरत यह भी कहा कि आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिये नरमी के चक्र से निपटने के उपायों को राजकोषीय गुंजाइश कम है. उन्होंने नरमी से निपटने के लिये सरकार को बजट में निर्धारित खर्च को शुरू में ही करने का सुझाव दिया.
दिसंबर में पदभार संभालने के बाद से दास ने लगातार चार नीतिगत दर में कटौती है. पिछली बार उन्होंने सबको अचंभित करते हुए नीतिगत दर में 0.35 प्रतिशत की कटौती की. कुल मिलाकर चार बार में रेपो दर में 1.10 प्रतिशत की कटौती की जा चुकी है. इससे रेपो दर नौ साल के न्यूनतम स्तर 5.40 प्रतिशत पर आ गयी है.
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दास ने ब्लूमर्ग इंडिया एकनोमिक समिट में कहा,"कीमत स्थिरता बनी हुई है और मुद्रास्फीति 4 प्रतिशत के नीचे बनी हुई है और अगले 12 महीनों में इसके इसी स्तर पर बने रहने की संभावना है. ऐसे में आर्थिक वृद्धि में नरमी को देखते हुए नीतिगत दर में कटौती की और गुंजाइश है."
उद्योग के कर कटौती के रूप में राहत देने की मांग पर दास ने कहा, "नरमी से निपटने के लिये सरकार को बजट में निर्धारित खर्च को शुरू में ही करने का सुझाव दिया. दास ने कहा कि आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिये नरमी के चक्र से निपटने के उपायों को राजकोषीय गुंजाइश कम है."
दास ने कहा,"मुझे लगता है कि राजकोषीय गुंजाइश काफी सीमित है. राजकोषीय घाटा 3.3 प्रतिशत है. सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के कर्ज को देखते हुए इस मामले में काफी कम गुंजाइश है. लेकिन कर संग्रह के मामले में सरकार की क्या स्थिति है, वास्तिवक रूप से कितना व्यय होगा, ये कुछ ऐसी चीजें हैं जिस पर सरकार को विचार करना है."
उल्लेखनीय है कि अग्रिम कर संग्रह की वृद्धि चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में केवल 4.7 प्रतिशत रही जबकि प्रत्यक्ष कर वसूली में 17.5 प्रतिशत वृद्धि का लक्ष्य रखा गया है. पहली छमाही का कुल प्रत्यक्ष कर संग्रह 5.50 लाख करोड़ रुपये रहा जबकि एक साल पहले इसी अवधि में 5.25 लाख करोड़ रुपये की वसूली हुई थी.
गवर्नर ने बढ़ती वैश्विक चुनौतियों के आघात से अर्थव्यवस्था को बचाने के लिये और संरचनात्मक सुधारों का भी आह्वान किया. उन्होंने निर्यात-आयात व्यापार में गिरावट को लेकर कहा कि यह चिंता का विषय है. दास ने उम्मीद जतायी कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व के नीतिगत दर में कटौती से देश में कोष प्रवाह को गति मिलेगी लेकिन ऐसे पूंजी प्रवाह को लेकर सतर्क रहने की जरूरत है.
उन्होंने कहा कि सब्सिडी की कम मात्रा को देखते हुए सऊदी संकट का मुद्रास्फीति और राजकोषीय घाटे पर केवल सीमित प्रभाव होगा. उल्लेखनीय है कि सऊदी अरब में दो तेल प्रतिष्ठानों पर ड्रोन के हमलों से कच्चे तेल के दाम में अच्छी-खासी वृद्धि देखी गयी है.
भारत अपनी कच्चे तेल की जरूरत का 83 प्रतिशत आयात करता है. इराक के बाद भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता सऊदी अरब है.