नई दिल्ली: कर्जदाताओं के बीच समझौते की अनिवार्य व्यवसा के प्रावधान के तहत बैंकों /वित्तीय संस्थाएं किसी ग्राहक कंपनी के पास फंसे अपने रिणों का समाधान ऋण शोधन अक्षमता एवं दिवाला संहिता (आईबीसी) के बाहर कर सकते हैं. इससे कर्जदाताओं को दबाव वाली संपत्ति के समाधान प्रक्रिया तेज करने में मदद मिलेगी. फंसे कर्ज पर बनी सशक्त समिति ने सोमवार को यह कहा.
पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) के गैर-कार्यकारी चेयरमैन सुनील मेहता की अध्यक्षता वाली समिति ने एक विज्ञप्ति में कहा कि कर्जदाताओं के बीच समझौते की जरूरत के जरिये आरबीआई ने वित्तीय संस्थानों को आईबीसी के बाहर समाधान की रूपरेखा को मंजूरी दी है.
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समिति में शामिल अन्य सदस्यों में एसबीआई के चेयरमैन रजनीश कुमार, बैंक आफ बड़ौदा के प्रबंध निदेशक और सीईओ पी एस जयकुमार तथा एसबीआई के उप-प्रबंध निदेशक वेंकट नागेश्वर थे.
समिति ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में फंसे कर्ज के तेजी से समाधान की दिशा में सुझाव दिया है. रिजर्व बैंक ने पिछले शुक्रवार को बैंकों द्वारा एनपीए के वर्गीकरण के लिये कड़ा नियम को हटाकर दूसरा परिपत्र जारी किया. पुराने आदेश को उच्चतम न्यायालय ने अप्रैल में खारिज कर दिया था. नये परिपत्र में बैंकों को एनपीए घोषित करने के लिये 30 दिन का अतिरिक्त समय दिया गया है.
उल्लेखनीय है कि शीर्ष बैंक ने फरवरी 2018 में परिपत्र जारी कर फंसे कर्ज के वर्गीकरण की समयसीमा तय की थी. इसके तहत कर्ज भुगतान में एक दिन की भी देरी होने पर उसे एनपीए में वर्गीकरण करना था. इसके तहत बैंकों को 180 दिनों के भीतर समाधान योजना तलाशना था अन्यथा मामला दिवालिया अदालत में भेजना होगा.
मेहता ने कहा, "नयी रूपरेखा व्यवहारिक है और कदम सही दिशा में है. इसमें सभी पक्षों के हितों को ध्यान में रखा गया है." एसबीआई के चेयरमैन ने कहा कि आरबीआई का नया मसौदा बैंक की अगुवाई में समाधान रूपरेखा की जरूरत को महत्व देता है.