मुंबई: कमजोर पड़ती आर्थिक वृद्धि को बढ़ाने के लिये रिजर्व बैंक ने शुक्रवार को प्रमुख नीतिगत दर रेपो में 0.25 प्रतिशत की और कटौती कर दी. इस कटौती के बाद रेपो दर 5.15 प्रतिशत रह गई. रेपो दर में इस वर्ष में यह लगातार पांचवीं कटौती की गई है. इस कटौती से बैंकों का कर्ज और सस्ता होने की उम्मीद बढ़ी है.
चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर कमजोर पड़कर पांच प्रतिशत रह गई. यह पिछले छह साल का निचला स्तर है. देश-दुनिया में लगातार कमजोर पड़ती आर्थिक वृद्धि की चिंता करते हुये रिजर्व बैंक ब्याज दरों में कटौती पर जोर दे रहा है ताकि ग्राहकों को बैंकों से सस्ता कर्ज मिले और आर्थिक गतिविधियों में तेजी आये.
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रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की तीन दिन चली बैठक के तीसरे दिन शुक्रवार को बैंक ने रेपो दर को 5.40 प्रतिशत से घटाकर 5.15 प्रतिशत कर दिया.
रेपो दर में 0.25 प्रतिशत की इस कटौती सहित इस साल रिजर्व बैंक रेपो दर में कुल मिलाकर 1.35 प्रतिशत की कटौती कर चुका है.
रिजर्व बैंक ने इसके साथ ही चालू वित्त वर्ष के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वृद्धि दर के अनुमान को भी 6.9 प्रतिशत से घटाकर 6.1 प्रतिशत कर दिया है.
रेपो रेट घटने से क्या होगा आप पर असर
रेपो रेट कम होने से बैंकों के लिए रिजर्व बैंक से कर्ज लेना सस्ता हो जाता है और इसलिए बैंक ब्याज दरों में कमी करते हैं, ताकि ज्यादा से ज्यादा रकम कर्ज के तौर पर दी जा सके. रेपो रेट में कमी का सीधा मतलब यह होता है कि बैंकों के लिए रिजर्व बैंक से रात भर के लिए कर्ज लेना सस्ता हो जाएगा. साफ है कि बैंक दूसरों को कर्ज देने के लिए जो ब्याज दर तय करते हैं, वह भी उन्हें घटाना होगा.
क्या है रेपो रेट?
रेपो रेट वह दर होती है जिसपर बैंकों को आरबीआई कर्ज देता है. बैंक इस कर्ज से ग्राहकों को लोन मुहैया कराते हैं. रेपो रेट कम होने का अर्थ है कि बैंक से मिलने वाले तमाम तरह के कर्ज सस्ते हो जाएंगे.
आइए जानते है कि रिजर्व बैंक द्वारा पिछले पांच बार में की गई ब्याज दरों की इस कटौती का आपके ईएमआई पर क्या असर पड़ेगा.