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'कोरोना संकट का एक बड़ा सबक, प्रवासी मजदूरों पर डेटा रखना बेहद जरुरी' - प्रवासी मजदूरों पर डेटा रखना बेहद जरुरी'

अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अमित बसोले ने कहा कि प्रवासी मजदूरों के लिए राहत के उपाय सुनिश्चित करने के लिए सरकार के पास उनके ठिकाने के बारे में जानकारी और डेटा होना चाहिए.

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'कोरोना संकट का एक बड़ा सबक, प्रवासी मजदूरों पर डेटा रखना बेहद जरुरी'
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Published : May 26, 2020, 1:19 PM IST

Updated : May 26, 2020, 3:55 PM IST

बेंगलुरु: दो महीने से अधिक के लॉकडाउन ने देश की श्रम शक्ति प्रबंधन में खामियों को उजागर किया है. हालांकि अध्ययनों से पता चला है कि देश का लगभग 90% कार्यबल असंगठित क्षेत्र में है. इसलिए समय की मांग है कि मूल प्रवासी श्रमिकों की मदद के लिए सामाजिक सुरक्षा उपायों का निर्माण किया जाए.

अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अमित बसोले ने कहा कि प्रवासी मजदूरों के लिए राहत के उपाय सुनिश्चित करने के लिए सरकार के पास उनके ठिकाने के बारे में जानकारी और डेटा होना चाहिए.

ये भी पढ़ें- कोरोना संकट के बीच ऊबर ने 600 कर्मचारियों को नौकरी से निकाला

"पिछले कुछ हफ्तों में सामने आए प्रवासी संकट के परिणामस्वरूप जो एक महत्वपूर्ण सबक सीखा गया है, वह यह है कि हमें देश भर में श्रमिकों के आंदोलनों पर सूचना और डेटा के मामले में बहुत तैयार रहने की आवश्यकता है."

एक सटीक डेटाबेस होने के लाभों पर बात करते हुए, प्रोफेसर बसोले ने कहा, "अच्छी गुणवत्ता वाले डेटा होना बेहद जरुरी है ताकि सरकार मजदूरों के गृह राज्य जान सकें और इसके साथ ही उन्हें किसी भी तरह की मदद पहुंचाने में मदद कर सकें."

प्रोफेसर ने यह भी कहा कि प्रवासी मजदूरों की वर्तमान दुर्दशा ने सरकार और नीति निर्माताओं को एक महत्वपूर्ण सबक सिखाया है.

उन्होंने कहा, "इसलिए आगे जाकर मुझे लगता है कि सीखा गया एक महत्वपूर्ण सबक उस तरह का डेटाबेस बनाने में सक्षम है जो राज्य सरकारों और स्थानीय सरकारों की मदद से विकेंद्रीकृत तरीके से किया जा सकता है और नीति निर्माताओं के लिए कार्य करने के लिए उपलब्ध है."

मजदूरों का समान वितरण

अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट में एसोसिएट प्रोफेसर रहे अमित बसोले ने भी कहा कि प्रवासी मजदूरों के आंकड़ों की उपलब्धता मजदूरों के समान वितरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी. मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु, हैदराबाद और चेन्नई जैसे शहरों में आमतौर पर देश में अधिक मजदूर होते हैं. यदि डेटा उपलब्ध है तो मजदूरों का संगठित प्रवाह किया जा सकता है.

(ईटीवी भारत रिपोर्ट)

बेंगलुरु: दो महीने से अधिक के लॉकडाउन ने देश की श्रम शक्ति प्रबंधन में खामियों को उजागर किया है. हालांकि अध्ययनों से पता चला है कि देश का लगभग 90% कार्यबल असंगठित क्षेत्र में है. इसलिए समय की मांग है कि मूल प्रवासी श्रमिकों की मदद के लिए सामाजिक सुरक्षा उपायों का निर्माण किया जाए.

अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अमित बसोले ने कहा कि प्रवासी मजदूरों के लिए राहत के उपाय सुनिश्चित करने के लिए सरकार के पास उनके ठिकाने के बारे में जानकारी और डेटा होना चाहिए.

ये भी पढ़ें- कोरोना संकट के बीच ऊबर ने 600 कर्मचारियों को नौकरी से निकाला

"पिछले कुछ हफ्तों में सामने आए प्रवासी संकट के परिणामस्वरूप जो एक महत्वपूर्ण सबक सीखा गया है, वह यह है कि हमें देश भर में श्रमिकों के आंदोलनों पर सूचना और डेटा के मामले में बहुत तैयार रहने की आवश्यकता है."

एक सटीक डेटाबेस होने के लाभों पर बात करते हुए, प्रोफेसर बसोले ने कहा, "अच्छी गुणवत्ता वाले डेटा होना बेहद जरुरी है ताकि सरकार मजदूरों के गृह राज्य जान सकें और इसके साथ ही उन्हें किसी भी तरह की मदद पहुंचाने में मदद कर सकें."

प्रोफेसर ने यह भी कहा कि प्रवासी मजदूरों की वर्तमान दुर्दशा ने सरकार और नीति निर्माताओं को एक महत्वपूर्ण सबक सिखाया है.

उन्होंने कहा, "इसलिए आगे जाकर मुझे लगता है कि सीखा गया एक महत्वपूर्ण सबक उस तरह का डेटाबेस बनाने में सक्षम है जो राज्य सरकारों और स्थानीय सरकारों की मदद से विकेंद्रीकृत तरीके से किया जा सकता है और नीति निर्माताओं के लिए कार्य करने के लिए उपलब्ध है."

मजदूरों का समान वितरण

अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट में एसोसिएट प्रोफेसर रहे अमित बसोले ने भी कहा कि प्रवासी मजदूरों के आंकड़ों की उपलब्धता मजदूरों के समान वितरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी. मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु, हैदराबाद और चेन्नई जैसे शहरों में आमतौर पर देश में अधिक मजदूर होते हैं. यदि डेटा उपलब्ध है तो मजदूरों का संगठित प्रवाह किया जा सकता है.

(ईटीवी भारत रिपोर्ट)

Last Updated : May 26, 2020, 3:55 PM IST
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