बिजनेस डेस्क, ईटीवी भारत: सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के मुताबिक कोविड-19 महामारी का युवाओं की नौकरियों पर सबसे ज्यादा असर पड़ा है.
सीएमआईई की रिपोर्ट के अनुसार जिन लोगों की नौकरी गई उनमें सबसे ज्यादा युवा शामिल हैं. अगर सिर्फ जुलाई माह की बात करें तो इस महीने में ही 50 लाख लोगों की नौकरियां चली गईं.
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सीएमआईई डेटा कहता है कि भारत में 20 से 29 साल के बीच की उम्र के कामकाजी लोगों के लिए जुलाई 2020 तक देश में कुल नौकरी के नुकसान का 81 प्रतिशत हिस्सा था क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था कोरोना वायरस प्रेरित मंदी से जूझ रही थी.
सीएमआईई ने कहा कि 20-24 वर्ष के उम्र समूह की कुल रोजगार में हिस्सेदारी भले ही 9 फीसदी से कम है लेकिन जुलाई 2020 तक रोजगार गंवाने वालों में उनकी हिस्सेदारी 35 फीसदी तक जा पहुंची है. वहीं बेरोजगारों में 25-29 वर्ष के उम्र वाले युवाओं की हिस्सेदारी 46 फीसदी हो चुकी है जबकि कुल रोजगार में उनकी हिस्सेदारी 11 फीसदी तक है.
सीएमआईई के प्रबंध निदेशक महेश व्यास ने बताया कि हालांकि लॉकडाउन ने अप्रैल में हर आयु वर्ग में नौकरी के नुकसान को जन्म दिया, लेकिन बाद के महीनों में उम्र के ब्रैकेट में नौकरियों की रिकवरी ने ऐसी स्थिति पैदा की.
व्यास ने कहा कि श्रम बाजारों में बदलाव जून में लगभग नाटकीय रहा और इससे नौकरियों में सुधार देखने को मिला. हालांकि, जुलाई में वसूली कम और भेदभावपूर्ण थी.
युवाओं के रोजगार खोने के पीछे कारण
कुल मिलाकर, वर्ष 2019-20 में औसत रोजगार के अनुपात में अप्रैल से जुलाई 2020 के दौरान 1.1 करोड़ लोगों को रोजगार गंवाना पड़ा. लेकिन इन बेरोजगार लोगों में भी 40 साल से कम उम्र वाले कामगारों की तादाद 1.96 करोड़ के साथ काफी अधिक रही है. असल में तीन कारक युवा कामगारों के खिलाफ काम करते हुए नजर आ रहे हैं.
पहला, एक शिथिल पड़ती अर्थव्यवस्था में श्रमबल की मांग भी कमजोर होने लगती है. अब उद्यम अपना विस्तार कम कर रहे हैं, लिहाजा अतिरिक्त श्रम की जरूरत भी कम पड़ रही है. अतिरिक्त श्रम की इस मांग को अमूमन युवा ही पूरा करते हैं. लेकिन आर्थिक सुस्ती आने से इस नए युवा श्रम की मांग भी कमजोर पड़ चुकी है. इसकी वजह से श्रमशक्ति की उम्र प्रोफाइल सापेक्षिक रूप से अधिक उम्र वाले कामगारों के पक्ष में होती जा रही है.
दूसरा, किसी उद्यम में काम कर रहे युवा तुलनात्मक रूप से कम अनुभवी होते हैं, लिहाजा उन्हें आसानी से हटाया जा सकता है. शुरुआती वर्षों में उद्यम युवा श्रम को उपयोगी बनाने के लिए उनमें निवेश करते हैं. लेकिन मुश्किल वक्त में उद्यम ऐसा निवेश करने को उतना तैयार नहीं हैं. इसका नतीजा यह होता है कि छंटनी की तलवार अपेक्षाकृत युवा कामगारों पर जल्द गिर जाती है.
तीसरा कारक, लॉकडाउन के दौरान उद्यम नए लोगों को न तो आसानी से रोजगार दे सकते हैं और न ही उन्हें प्रशिक्षण ही दिया जा सकता है. यह एक नए तरह का अवरोध है लेकिन यह अपने आप में बेहद गंभीर है. इसका कारण यह है कि कोविड महामारी से उपजी बाधाएं काफी लंबी खिंच गई हैं. इस रोजगार परिदृश्य में यह बात याद रखनी होगी कि युवाओं की बड़ी आबादी वाले देश में श्रमशक्ति का उम्रदराज होते जाना काफी अजीब है. इसके दुष्प्रभाव आने वाली पीढिय़ों पर पड़ सकते हैं.
उन्होंने यह भी कहा कि लॉकडाउन ने उद्यमों को नए लोगों को आसानी से नियुक्त और प्रशिक्षित करना मुश्किल बना दिया है. यह एक नई बाधा है. लेकिन यह बहुत गंभीर बाधा है क्योंकि यह अब काफी लंबा है.